✍️ओम प्रकाश सिंह
कंक्रीट के उगते जंगलों ने ईश्वर प्रदत्त प्राकृतिक वातावरण का हरण कर लिया है। उन वृक्षों को काटा जा रहा है जिनमें देवता वास करते हैं। जल स्रोत सूख रहे हैं। झील, तालाब, कुएं अब इतिहास बनते जा रहे हैं। नदियों से छेड़खानी की जा रही है। भूमाफियाओं व सरकारी अमला का काकस सक्रिय है।
धार्मिक अयोध्या को हजारों करोड़ खर्च करके भव्य पर्यटन नगरी बनाया जा रहा है लेकिन जीवन के जिस हिस्से ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को भगवान बना आमजन में लोकप्रिय किया उस पर बुलडोजर चल रहा है। भले ही राम के आने का ढ़िंढ़ोरा पीटा जा रहा हो लेकिन सच्चाई यह है कि वनवासी राम के अवध क्षेत्र से प्रवासी पक्षियों ने भी दूरी बना लिया है। वन विशेषज्ञ एक बड़े अधिकारी का मानना है कि अनियमित पर्यटन से भी स्थितियां बदली हैं साथ ही सरयू की घाटबंदी से भी पक्षियों को असहजता है।
कमोवेश अयोध्या, देवीपाटन, लखनऊ मंडल को अवध क्षेत्र माना जाता है। यहां के पौराणिक ताल तलैया, झीलें प्रवासी पक्षियों को खूब रास आती थीं। बदलते वातावरण के चलते इस बार प्रवासी पक्षियों ने यहाँ से मुंह मोड़ लिया। यूरेशन टील को छोड़ दें तो इस क्षेत्र में आने वाले लगभग दर्जन भर पक्षी प्रजातियां नहीं दिखाई पड़ी।
यहां साइबेरियन सारस, ग्रेटर फ्लेमिंगो, तिदार, गुलाबी पेलिकन, एशियाई गौरयाबाज, स्वैलो, उत्तरी शावलर, गैडवाल्स आदि पक्षी प्रमुख रुप से आते थे। ये अलग अलग कोई चार हजार तो कोई बीस हजार किलोमीटर की दूरी तय करके आते हैं क्योंकि कुछ उत्तरी यूरोप, कुछ साइबेरिया, कुछ आर्कटिक तो कुछ मंगोलिया आदि जगहों से आते हैं।
पांच जनवरी को विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाया जाता है। इस दिवस पर जब कुछ पक्षी, पर्यावरण प्रेमियों ने प्रवासी पक्षियों के स्थलों को भ्रमण किया तो गंभीर मंजर सामने आया। गोंडा जनपद के हजारों एकड़ में फैले बांके ताल, भरथौली ताल और टेढ़ी नदी के कई हिस्सों पर एक भी प्रवासी पक्षी के दर्शन नहीं हुए। कई दशक से ये जल राशियां प्रवासी व स्थानीय पक्षियों से भरी होती थीं।
मत्स्य आखेट, झीलों के किनारे तक फैली खेती और मौसम में परिवर्तन इनके यहां न आने के बड़े कारण हैं। पर्यावरण एक्टिविस्ट अभिषेक दूबे कहते हैं कि बदलते मौसम के कारण प्रवासी पक्षियों की आमद कम हुई है। यहां तक कि भरतपुर में भी साइबेरियाई क्रेन अब नहीं आते हैं। जो आते हैं, उन्होंने ने भी भोजन, सुरक्षा आदि के आधार पर अपना ठिकाना बदल लिया है।
दूबे बताते हैं कि इनके आने का मकसद सर्दियों से बचना है। सर्दियों में गोलार्ध के एकदम उत्तर में तापमान शून्य से काफी नीचे पहुंच जाता है तो फिर वहां इनके खाने के लिए भोजन, प्रजनन और जीने के लिए भी अनुकूल तापमान नहीं मिल पाता तो वे दक्षिण की ओर का रुख करते हैं।
साइबेरियन क्रेन और ग्रेटर फ्लैमिंगो प्रवासी पक्षी है जो आमतौर पर सर्दियों के मौसम में भारत में देखे जाते हैं। एशियाई गौरैयबाद सर्दियों के दौरान भारत और म्यांमार की ओर प्रवास करते हैं। स्वैलो जो एक छोटा पक्षी है दक्षिणी इंग्लैंड से दक्षिणी अफ्रीका की ओर प्रवास करता है।
पंक्षी प्रेमी आजाद सिंह कहते हैं कि ठंडी कम पड़ने से भी प्रवासी पंक्षी हिमालय के तुरंत बाद ही कई क्षेत्रों मे रुक गए हैं और कई नए आशियाने भी बने हैं। कुछ शिकारी भी सक्रिय है जिनसे ये दूरी भी बना ले रहे। अयोध्या के मांझा क्षेत्र में बहुत संख्या में सुरखाब आते थे पर इनका क्षेत्र अब विकास की भेंट चढ़ चुका है जो कि बहुत दुखद है पर कहीं कोई सुनने वाला नहीं है।
देवीपाटन मंडल प्राकृतिक रुप से ज्यादा समृद्ध हैं लेकिन यहां स्थित और चिंताजनक है। बघेल ताल, सीताद्वार झील, सुहेलवा के बीच पहाड़ी नालों को रोककर बनाए गए विभिन्न कृत्रिम जलाशय, सुहेला ताल, बांके ताल, पार्वती और अरगा झील, कोंडर झील, भरतौली ताल, अर्थानी ताल, कुकही ताल आदि जगहों पर भारी संख्या में प्रवासी पक्षी आते थे। इसमें से अरगा बाकियों से बेहतर स्थिति में है क्योंकि एक तो ये सोहेलवा वन्यजीव प्रभाग के संरक्षित क्षेत्र में है और दूसरा इसका रेंज ऑफिस झील के किनारे ही है तो मत्स्य आखेट पर बड़ी सख्ती है।
बघेल ताल है बहराइच जिले में लेकिन श्रावस्ती वन प्रभाग में आता है। इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ रहा। बघेल के बीच की ही भूमि तालाब में दर्ज है, जबकि किनारे की हजारों एकड़ ग्राम समाज की भूमि का खेती के लिए पट्टा है, जो बड़ा विनाशकारी है। बघेल का पानी निकलने के लिए टेढ़ी नदी का मार्ग उलट दिया गया। बरसाती नाले बाधित कर दिए गए।
पर्यावरण प्रेमियों का सुझाव है कि प्रवासी पक्षी आएं इसके लिए वेटलैंड को उसके पुराने स्वरूप में लाना होगा। तालाबों में विदेशी और हाइब्रिड मछलियों को डालना बंद कराया जाए। तालाबों में बंधिया न लगे। तालाबों के बाढ़ क्षेत्र को चिन्हित कर उन्हें संरक्षित किया जाए और उसके इर्द गिर्द खेती में कीटनाशक व रासायनिक खाद को रोका जाए। तालाब के किनारे स्थानीय घासें व वृक्षों को उगने दिया जाए ताकि मिट्टी का कटाव और रसायनों का बहाव रुके।
जल के पुनर्भरण के प्राकृतिक तंत्र अर्थात पानी आने का मुहाना, जुड़ने वाले प्राकृतिक नाले बहाल किए जाएं। तालाबों के किनारे निर्माण, शोर, अत्यधिक प्रकाश पर रोक लगे। तालाब के किनारे जलीय पक्षियों के बैठने हेतु सुसंगत वृक्ष जैसे सेमल, जामुन, महुआ, इमली, पीपल, बरगद, पाकड़, गूलर आदि को बढ़ावा दिया जाए। तालाबों में गिराए जा रहे अपशिष्ट जल वाले नाले रोके जाएं, सिर्फ एसटीपीएस से ट्रीट किया एकदम शुद्ध जल ही छोड़ा जाए। तालाबों के किनारे बनाए बंधे हटाए जाएं।