जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। यूपी के उपचुनावों में बहुजन समाज पार्टी पूरी तरह से फिसड्डी साबित हुई। विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव में मायावती की पार्टी कोई कमाल नहीं कर सकी।
अब उपचुनाव में उसकी हालत काफी खराब रही है। इससे साफ होता हुआ नजर आ रहा है कि उसका जनाधार गिर चुका है औ जनता पर उनकी पकड़ कमजोर पड़ गई है।
मुख्य वोट बैंक दलित समुदाय रहा है लेकिन हाल के दिनों में दलित समुदाय ने बसपा से मुंह फेर लिया है।
इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने इस वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बसपा के वोट बैंक पर सपा और बीजेपी ने सेंध लगा डाली है। इसका नतीजा ये हुआ कि बसपा पूरी तरह से कमजोर हो चुकी है।
दूसरी तरफ मायावती भी पूरी तरह से सक्रिय राजनीति से दूर नजर आ रही है। चुनावी जनसभा में उनका अब कम आना जाना होता है।
इसके अलावा उपचुनावों में पार्टी का सक्रिय रूप से हिस्सा न लेना और ठोस रणनीति की कमी की वजह से बसपा पूरी तरह से कमजोर रही है। वहीं बसपा के पास कोई लोकल लेवल पर कोई भी बड़ा नेता भी मौजूद नहीं है। स्वामी प्रसाद मौर्य से नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे बड़े चेहरों ने पार्टी छोड़ दी। इसका नतीजा ये हुआ कि बसपा के पास अब मायावती को छोडक़र कोई बड़ा चेहरा नहीं है।
जमीनी स्तर पर संगठनात्मक ढांचा पूरी तरह से कमजोर पड़ चुका है। लोकल लीडर अब सक्रिय नहीं है और जनता में उनको लेकर उत्साह नहीं है।
ऐसे में राजनीति के जानकारों की माने तो नए और युवा नेतृत्व को आगे लाकर और जनता के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके पार्टी अपनी स्थिति में सुधार कर सकती है। आकाश आनंद जैसे युवा नेताओं को आगे लाने की जरूरत है। वही मायावती को भी फिर से सक्रिय होना पड़ेगा।