प्रो. अशोक कुमार
2020 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जारी की, जो देश की शिक्षा प्रणाली में एक क्रांतिकारी बदलाव लेकर आई । यह नीति पिछले 34 सालों में भारतीय शिक्षा प्रणाली में सबसे बड़ा बदलाव लिया है। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य शिक्षा को छात्र-केंद्रित, बहु-विषयक और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है। इसी क्रम में, स्नातक कार्यक्रमों की अवधि को 4 वर्ष करने का निर्णय लिया गया है।
4 साल की अवधि छात्रों को अपने विषय का गहन अध्ययन करने का अवसर प्रदान करती है। इससे छात्रों को व्यापक ज्ञान और कौशल प्राप्त करने में मदद मिलेगी। लेकिन यह जान कर आश्चर्य हुआ की हाल ही मे यूजीसी ने अगले सत्र से स्टूडेंट्स समय से पहले ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर पाएंगे।
यूजीसी ने आईआईटी मद्रास के डायरेक्टर वी कामकोटि के नेतृत्व वाली कमेटी के द्वारा सिफारिश को मंजूर कर दिया , जिसके तहत अब स्टूडेंट्स तय समय से पहले स्नातक की डिग्री हासिल कर सकेंगे।
इसमें 4 वर्ष वाले स्टूडेंट्स को 3 वर्ष में और 3 वर्ष वाले स्टूडेंट्स को 2.5 वर्ष में डिग्री हासिल करने का मौका रहेगा। इसके साथ ही 3 वर्ष वाले छात्र चाहें तो 4 वर्षीय डिग्री प्रोग्राम में इसे बदल सकेंगे। यूजीसी ने यह बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 के तहत किया है।
अगले सत्र से डिग्री प्रोग्राम में एंट्री और एक्जिट प्वाइंट का प्रावधान किया जायेगा। इसके तहत ऐसे छात्र जो जो जल्दी सीखने और समझने की क्षमता रखते हैं वे आसानी से इस योजना का लाभ उठाकर समय से पहले डिग्री प्राप्त कर पायेंगे। इससे मेधावी छात्रों को समय बचत होगी। इस बदलाव के कई फायदे हैं, जैसे कि छात्र कम समय में अपनी डिग्री पूरी कर पाएंगे, जिससे वे जल्दी नौकरी या उच्च शिक्षा के लिए आवेदन कर सकते हैं। डिग्री की अवधि कम होने से छात्रों को कम फीस देनी होगी। छात्र अपनी पढ़ाई को अपने अनुसार ढाल सकते हैं और अपनी रुचि के अनुसार विषयों का चयन कर सकते हैं।
हालांकि, इस बदलाव के कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जैसे कि: डिग्री की अवधि कम होने से पाठ्यक्रम में कमी आ सकती है, जिससे छात्रों को सभी महत्वपूर्ण विषयों को नहीं पढ़ने का मौका मिल पाएगा। जल्दी डिग्री पूरी करने के चक्कर में शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। अन्य देशों में ग्रेजुएशन की अवधि आमतौर पर तीन या चार साल होती है, इसलिए भारतीय डिग्री की मान्यता को लेकर कुछ सवाल उठ सकते हैं।
क्या यह बदलाव सही है?
यह एक जटिल सवाल है जिसका जवाब व्यक्तिगत राय पर निर्भर करता है। कुछ लोगों का मानना है कि यह बदलाव छात्रों के हित में है क्योंकि इससे उन्हें समय और पैसा बचेगा। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि यह बदलाव शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।
यह बदलाव क्यों?
वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारतीय छात्रों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार करना। रोजगार के अवसर: छात्रों को जल्दी रोजगार प्राप्त करने में मदद करना।उच्च शिक्षा में सुधार: उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार करना।
इस बदलाव के क्या प्रभाव हो सकते हैं?
सकारात्मक प्रभाव: छात्रों को जल्दी रोजगार मिल सकता है। उच्च शिक्षा अधिक किफायती हो सकती है।उच्च शिक्षा में अधिक विविधता आ सकती है। नकारात्मक प्रभाव: शैक्षणिक गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। कुछ छात्रों को जल्दबाजी में डिग्री पूरी करने के लिए दबाव महसूस हो सकता है।विभिन्न विश्वविद्यालयों में नए नियमों का क्रियान्वयन अंतर-विश्वविद्यालय भिन्नता: विभिन्न विश्वविद्यालयों ने यूजीसी के नए नियमों को अलग-अलग तरीकों से अपनाया है।
कुछ विश्वविद्यालयों ने इन नियमों को पूरी तरह से लागू कर दिया है, जबकि अन्य ने अभी भी कुछ बदलावों को लागू करना शुरू किया है। पाठ्यक्रम में बदलाव: कई विश्वविद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रमों में बदलाव किए हैं ताकि वे कम समय में अधिक से अधिक विषयों को कवर कर सकें। सेमेस्टर सिस्टम: कई विश्वविद्यालयों ने सेमेस्टर सिस्टम को अपनाया है ताकि छात्रों को अधिक लचीलापन मिल सके और वे अपनी पढ़ाई को अपने अनुसार ढाल सकें।ऑनलाइन शिक्षा: कई विश्वविद्यालयों ने ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा दिया है ताकि छात्र कहीं से भी और कभी भी पढ़ सकें।
समर्थन में तर्क
लचीलापन और छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण: कई विशेषज्ञों का मानना है कि ये नियम उच्च शिक्षा को अधिक लचीला और छात्र-केंद्रित बनाएंगे। छात्र अपनी गति से पढ़ाई कर सकेंगे और अपनी रुचि के अनुसार विषयों का चयन कर सकेंगे।
समय और धन की बचत: विशेषज्ञों का मानना है कि इन नियमों से छात्रों का समय और धन दोनों बचेगा। वे कम समय में अपनी डिग्री पूरी कर पाएंगे और जल्दी नौकरी या उच्च शिक्षा के लिए आवेदन कर सकेंगे।
अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये नियम भारतीय उच्च शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाएंगे।
नवाचार को बढ़ावा: ये नियम विश्वविद्यालयों को नए पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे, जिससे नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
आलोचना में तर्क
शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होना: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इन नियमों से शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी। छात्रों को कम समय में अधिक पाठ्यक्रम पूरा करना होगा, जिससे उनकी समझ कमजोर हो सकती है।पाठ्यक्रम में कटौती: डिग्री की अवधि कम होने से कई महत्वपूर्ण विषयों को पाठ्यक्रम से हटाना पड़ सकता है।अन्यायपूर्ण प्रतिस्पर्धा: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये नियम उन छात्रों के लिए अन्यायपूर्ण होंगे जो धीमी गति से पढ़ते हैं या जिनकी व्यक्तिगत परिस्थितियां उन्हें पूरी तरह से पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने से रोकती हैं। अंतरराष्ट्रीय मान्यता: कुछ विशेषज्ञों को चिंता है कि इन नियमों से भारतीय डिग्री की अंतरराष्ट्रीय मान्यता कम हो सकती है।
छात्रों की प्रतिक्रिया : मिश्रित प्रतिक्रियाएं: छात्रों की प्रतिक्रियाएं मिश्रित रही हैं। कुछ छात्रों को लगता है कि नए नियमों से उन्हें समय और पैसा बचेगा, जबकि अन्य छात्रों को लगता है कि शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी। चुनौतियाँ: कई छात्रों को पाठ्यक्रम में बदलाव और अधिक काम के बोझ के कारण मुश्किलें आ रही हैं। अवसर: कुछ छात्रों को नए नियमों के कारण नए अवसर मिल रहे हैं, जैसे कि जल्दी नौकरी या उच्च शिक्षा के लिए आवेदन करने का मौका।
अन्य देशों में उच्च शिक्षा के लिए समय सीमा
अधिकांश विकसित देशों में ग्रेजुएशन की अवधि तीन या चार साल होती है। हालांकि, कुछ देशों में दो साल की ग्रेजुएट डिग्री भी उपलब्ध हैं। यहां कुछ उदाहरण दिए गए हैं:संयुक्त राज्य अमेरिका: अधिकांश अमेरिकी विश्वविद्यालयों में ग्रेजुएशन की अवधि चार साल होती है।यूनाइटेड किंगडम: यूके में कई विश्वविद्यालय तीन साल की ग्रेजुएट डिग्री प्रदान करते हैं।
ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया में भी अधिकांश विश्वविद्यालय तीन साल की ग्रेजुएट डिग्री प्रदान करते हैं।भारत की तुलना: भारत में ग्रेजुएशन की अवधि कम करने से भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली अन्य देशों की उच्च शिक्षा प्रणाली से अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकती है।
मान्यता: हालांकि, यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारत की डिग्री को अन्य देशों में मान्यता मिलती है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता क्या है।
यूजीसी के नए नियमों पर विशेषज्ञों की राय
यूजीसी के नए नियमों को लेकर विशेषज्ञों की राय काफी विविध है। कुछ विशेषज्ञ इन नियमों का समर्थन करते हैं तो कुछ इनकी आलोचना करते हैं।
आइए जानते हैं विभिन्न विशेषज्ञों के क्या विचार हैं
विभिन्न मत: विशेषज्ञों की राय भी इस मामले में विभाजित है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नए नियम छात्रों के हित में हैं, जबकि अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी।
चिंताएं: कई विशेषज्ञों को इस बात की चिंता है कि जल्दी डिग्री पूरी करने के चक्कर में छात्रों को व्यावहारिक अनुभव और कौशल हासिल करने का पर्याप्त मौका नहीं मिलेगा।
सुझाव: विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि विश्वविद्यालयों को नए नियमों को लागू करते समय छात्रों की जरूरतों और क्षमताओं को ध्यान में रखना चाहिए।
निष्कर्ष
यूजीसी के नए नियमों ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक नई बहस छेड़ दी है। यह बदलाव छात्रों, विश्वविद्यालयों और विशेषज्ञों सभी के लिए एक चुनौती है। यह समय के साथ ही पता चलेगा कि ये नए नियम छात्रों के लिए फायदेमंद साबित होते हैं या नहीं। यह छात्रों, विश्वविद्यालयों और समाज पर दीर्घकालिक प्रभाव डालेगा।
(पूर्व कुलपति कानपुर, गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय)