जुबिली स्पेशल डेस्क
बिहार की मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा को लेकर बड़ी खबर आ रही है। दरअसल उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया है।
देश की राजधानी दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। बता दे कि आज सुबह उनकी तबीयत अचानक से बिगड़ गई थी और डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर पर रखा था। इसके बावजूद उनकी सेहत में कोई खास सुधार नहीं हो रहा था और मंगलवार की रात में उन्होंने दुनिया को 72 साल की उम्र में अलविदा कह दिया।
शारदा सिन्हा बिहार की एक प्रतिष्ठित और मशहूर लोक गायिका हैं, जिनका नाम लोकगीतों और विशेषकर छठ गीतों में सम्मान के साथ लिया जाता है। उनकी आवाज़ ने न केवल बिहार और भारत के अन्य राज्यों में बल्कि विदेशों में भी लोगों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी है। वह बिहार की पारंपरिक संगीत शैली को अपने अनूठे अंदाज में प्रस्तुत करती हैं और उनकी गायकी में भोजपुरी, मैथिली और मगही जैसे भाषाओं का मिश्रण देखने को मिलता है।
करियर और योगदान
शारदा सिन्हा का जन्म 1952 में बिहार के समस्तीपुर जिले में हुआ था। उन्होंने संगीत की शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से प्राप्त की और भारतीय लोक संगीत को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया। उनकी गायकी विशेष रूप से छठ महापर्व के गीतों के लिए जानी जाती है, जैसे “केलवा के पात पर उगेल हे सूरज देव” और “हो दिनानाथ”। इन गीतों के माध्यम से उन्होंने छठ पूजा के गीतों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाया है।
उपलब्धियाँ
शारदा सिन्हा को उनके योगदान के लिए पद्म भूषण और पद्म श्री जैसे उच्चतम राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया है। इसके अलावा, उन्हें बिहार सरकार और अन्य सांस्कृतिक संस्थानों द्वारा भी कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उन्होंने फिल्मों में भी कई लोकप्रिय गीत गाए हैं, जिनमें से “हम आपके हैं कौन” का “काहे तोसे सजना” खासा प्रसिद्ध है।
शारदा सिन्हा ने बिहार की लोकसंस्कृति को बढ़ावा देने में अमूल्य योगदान दिया है और वह बिहार की सांस्कृतिक धरोहर की एक प्रतीक मानी जाती हैं। उनके गीतों में सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं का जीवंत चित्रण मिलता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के बीच लोकप्रिय बने हुए हैं।