यशोदा श्रीवास्तव
अखिलेश यादव ने यूपी विधानसभा में माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर कम से कम पूर्वांचल के ब्राम्हणों को साधने की कोशिश की है साथ ही रायबरेली से सपा विधायक रहे मनोज पांडेय को भी चिढ़ाया है कि यदि वे पार्टी में रहते तो यह ओहदा उनके हिस्से आता।
इसके अलावा जो तीन अन्य पदों के लिए मुस्लिम और बैकवर्ड की नियुक्ति की गई उसे आसन्न उप चुनाव की दृष्टि से देखा जा रहा है।
यूपी में विधानसभा की दस सीटों पर उपचुनाव होने हैं जो सपा और भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा परक है। इसमें सपा की अपनी पांच सीटें हैं जबकि भाजपा की अपनी पांच सीटें हैं।
सपा और भाजपा लगातार इस कोशिश में हैं कि एक दूसरे न की सिमटें झटकने में कामयाब हो जायें। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसे लेकर लगातार मीटिंगें कर रहे हैं वहीं सपा भी अंदर अंदर अपनी रणनीति बना रही है।
विधान सभा में ब्राम्हण चेहरे के रूप में माता प्रसाद पांडेय,दो पदों पर मुस्लिम और मुख्य सचेतक के रूप में आरके वर्मा की नियुक्ति के पीछे कहीं न कहीं यूपी का उपचुनाव भी है।
माता प्रसाद पांडेय यूपी के सिद्धार्थनगर जिले के इटवा विधानसभा क्षेत्र से कई बार के विधायक हैं। मुलायम सिंह सरकार में दो बार मंत्री रहे और एक बार विधानसभा अध्यक्ष भी रहे हैं। पहली बार वे 1980 में विधायक चुने गए थे। 2022 में उन्होंने यूपी सरकार के बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री सतीश द्विवेदी को हराया था।
हाल ही संपन्न लोकसभा चुनाव में वे अकेले ब्राम्हण चेहरा के रूप में कमान संभाले हुए थे। उन्हीं के पैरवी पर पूर्वांचल के माफिया नामधारी स्व.हरिशंकर तिवारी के बड़े बेटे भीष्म शंकर तिवारी को सिद्धार्थनगर जिले के डुमरियागंज संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का टिकट मिला था।
बाहरी होने के आरोपों से घिरे भीष्म शंकर तिवारी यदि भाजपा के कद्दावर नेता जगदंबिका पाल को कड़ी टक्कर दे पाए तो इसके पीछे माता प्रसाद पांडेय की कड़ी मेहनत ही थी। डुमरियागंज से चार बार के सांसद जगदंबिका पाल अपने चौथे लोकसभा चुनाव में सबसे कम करीब 44000 वोटों से ही जीत पाए थे।
माता प्रसाद पांडेय ने डुमरियागंज के अलावा बस्ती,अयोध्या,घोसी,अंबेडकरनगर सहित पूर्वांचल के एक दर्जन लोकसभा क्षेत्रों में सपा उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार किया था। इसमें अयोध्या,बस्ती,घोसी,अंबेडकरनगर सीटों पर सपा उम्मीदवारों की जीत हुई है। माता प्रसाद पांडेय संभवत:विधानसभा में सबसे अधिक उम्र के अनुभवी विधायक होंगे। उन्हें सदन चलाने से लेकर बतौर नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने का अच्छा अनुभव है। मुखर वक्ता के रूप में उनकी पहचान रही है। उनके तेवर आक्रमक भले न हों लेकिन जनता से जुड़े मुद्दों को उठाकर सरकार को घेरने में वे माहिर हैं।
बता दें कि 2022 के चुनाव बाद विधानसभा में सपा ने मनोज पांडेय को मुख्य सचेतक की कमान सौंपी थी। वे विधानसभा में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव के बगल की कुर्सी पर विराजते थे।
उन्हें अखिलेश का भरोसे मंद माना जाता था लेकिन लोकसभा चुनाव के पहले मनोज पांडेय अखिलेश का साथ छोड़ भाजपा में चले गए। रविवार को अखिलेश यादव ने जब बतौर नेता प्रतिपक्ष के रूप में विधानसभा अध्यक्ष को चिट्ठी लिखी तो सपा के अंदर ही यह सुगबुगाहट उठी कि मनोज पांडेय यदि अखिलेश का साथ न छोड़े होते तो यह कुर्सी आज उनकी होती।