जुबिली न्यूज डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को योगी सरकार को बड़ा झटका दिया. कोर्ट ने कांवड़ रूट पर दुकानदारों को नाम लिखने के आदेश के अमल पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने कहा, दुकानदार खाने का प्रकार लिखें. अपना नाम लिखना जरूरी नहीं.
इससे पहले सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील ने आदेश का जिक्र कर कहा कि पहले दो राज्यों ने किया. अब दो और राज्य ऐसा फैसला करने जा रहे हैं. नगरपालिका की जगह पुलिस कार्रवाई कर रही है. अल्पसंख्यक और दलितों को अलग-थलग किया जा रहा है. वकील ने सबसे पहले मुजफ्फरनगर पुलिस का आदेश पढ़ा. इस पर जस्टिस ऋषिकेश राय ने पूछा कि यह आदेश है या प्रेस रिलीज.
वकील ने कहा, मैं प्रेस रिलीज से पढ़ रहा हूं. इसमें लिखा है कि अतीत में कांवड़ यात्रियों को गलत चीजें खिला दी गईं, इसलिए विक्रेता का नाम लिखना अनिवार्य किया जा रहा है. आप शाकाहारी, शुद्ध शाकाहारी, जैन आहार लिख सकते हैं, लेकिन विक्रेता का नाम लिखना क्यों जरूरी है?
बात को बढ़ा-चढ़ा कर पेश न करें- सुप्रीम कोर्ट
इस पर सिंघवी ने कहा, दुकानदार और स्टाफ का नाम लिखना जरूरी किया गया है. यह exclusion by identity है. नाम न लिखो तो व्यापार बंद, लिख दो तो बिक्री खत्म. इस पर जस्टिस भट्टी ने कहा, बात को बढ़ा-चढ़ा कर नहीं रखना चाहिए. आदेश से पहले यात्रियों की सुरक्षा को भी देखा गया होगा.
जज ने कहा, हमने याचिकाकर्ताओं की तरफ से सभी वरिष्ठ वकीलों को सुना. उन्होंने 17 जुलाई के मुजफ्फरनगर पुलिस के निर्देश को चुनौती दी है. इसके बाद हुई पुलिस कार्रवाई का भी विरोध किया है. जज ने कहा, इस निर्देश के चलते विवाद हुआ है. हमने हिंदी में जारी निर्देश और उसके अंग्रेजी अनुवाद को देखा. इसमें लिखा है कि पवित्र सावन महीने में गंगाजल लाने वाले कांवड़िया कुछ प्रकार के खानों से दूर रहना चाहते हैं. कई लोग प्याज-लहसुन भी नहीं खाते. जज ने कहा, दुकानदारों को अपना और कर्मचारियों का नाम लिखने को कहा गया है. याचिकाकर्ता इसे धार्मिक आधार पर भेदभाव भरा और छुआछूत को बढ़ावा देने वाला बता रहे हैं. उनका कहना है कि सिर्फ शाकाहारी और शुद्ध शाकाहारी लिखना पर्याप्त है.
जज ने कहा, उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे आदेश का कोई कानूनी आधार नहीं. यह देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को नुकसान पहुंचाता है, जो संविधान की प्रस्तावना का हिस्सा है. यह भी बताया गया कि कई कर्मचारियों को काम से हटा दिया गया है.