जुबिली स्पेशल डेस्क
उत्तर प्रदेश की कांवड़ यात्रा को लेकर लगातार विवाद देखने को मिल रहा है। इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब कांवड़ रूट पर पडऩे वाली दुकानों पर मालिक का असली नाम लगाने के लिए सरकार ने फरमान जारी किया।
इसके बाद योगी सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई। इसको लेकर लगातार हंगामा देखने को मिल रहा है। अब सरकार के इस फैसले पर अब जमीयत उलेमा ए हिंद ने भी चुप्पी तोड़ी है और कोर्ट जाने की बात कही है। \
इसको लेकर जमीयत उलेमा ए हिंद ने कहा कि इस फरमान को कोर्ट में चुनौती दी जाएगी क्योंकि धर्म की आड़ में नफरत की राजनीति की जा रही है। यह ‘भेदभावपूर्ण और सांप्रदायिक’ फैसला है तथा इससे संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का हनन होता है।
जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने एक बयान में कहा, ‘यह एक भेदभावपूर्ण और सांप्रदायिक फैसला है. इस फैसले से देश विरोधी तत्वों को लाभ उठाने का अवसर मिलेगा और इस नए आदेश के कारण सांप्रदायिक सौहार्द को गंभीर क्षति पहुंचने की आशंका है।
‘ मदनी ने कहा, ‘देश के सभी नागरिकों को संविधान में इस बात की पूरी आजादी दी गई है कि वे जो चाहें पहनें, जो चाहें खाएं, उनकी व्यक्तिगत पसंद में कोई बाधा नहीं डालेगा, क्योंकि यह नागरिकों के मौलिक अधिकार के विषय हैं।’ उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा संबधी आदेश मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला है।
बता दे कि इस बीच उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में कांवड़ मार्गों पर खाने-पीने की दुकानों पर नेमप्लेट वाला नियम अब पूरे प्रदेश में लागू होगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में कांवड़ मार्गों पर खाने-पीने की दुकानों के मालिकों को नेमप्लेट लगाने का आदेश जारी किया है। इस आदेश में कहा गया है कि कांवड़ मार्गों पर खाद्य सामग्री बेचने वाले दुकानों पर संचालक मालिक का नाम और पहचान लिखना होगा। कुल मिलाकर इस पूरे मामले पर जमकर राजनीति हो रही है। विरोधी लगातार इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं।