यशोदा श्रीवास्तव
नेपाल में प्रचंड सरकार की बिदाई की इबारत लिखी जा चुकी है। पिछले 24 घंटे में नेपाल में जिस तेजी से राजनीतिक घटनाएं घटी है उससे यह तय हो चुका है कि नेपाल में नेपाली कांग्रेस और एमाले की सरकार सत्ता संभालने की तैयारी कर ली है। करीब एक माह की जद्दोजहद के बाद सोम वार की रात करीब 12 बजे नेपाली कांग्रेस और एमाले के बीच सरकार चलाने पर सहमति बनी है।
एक प्रपत्र तैयार हुआ है जिसमें दोनों के बीच डेढ़ डेढ़ साल प्रधानमंत्री बने रहने की बात तय हुई। डेढ़ साल की पहली पारी एमाले के हाथ होगा जिसके प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली होंगे जबकी दूसरे डेढ़ साल की पारी में शेर बहादुर देउबा प्रधान मंत्री होंगे और सरकार नेपाली कांग्रेस की होगी। तय यह भी हुआ है कि जिस पार्टी की सरकार होगी उसके दस मंत्री होंगे और सरकार के समर्थक दल के 11 मंत्री होंगे।
नेपाल में लोकतंत्र बहाली के डेढ़ दशक से अधिक हो रहे हैं लेकिन इस नन्हें राष्ट्र को स्थाई सरकार नहीं नसीब हो सका। यहां आया राम गया राम की तर्ज पर सरकारें आती जाती रहीं जिसका खामियाजा नेपाली जनता को भुगतना पड़ रहा है। लोकतंत्र बहाली के बाद यहां तीन बार आम चुनाव हुए हैं और एक बार भी किसी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला लिहाजा बेमेल और सत्ता लोलुप गठबंधन की सरकारें आती जाती रहीं।
अभी जो दो साल पहले आम चुनाव हुआ उसमें भी किसी दल को बहुमत नहीं मिला था। इस चुनाव में एमाले और प्रचंड एक साथ चुनाव लड़ें थे जिसमें एमाले को 78 और प्रचंड को 32 सीटें मिली थीं।
कायदे से बड़ा दल होने के नाते एमाले को सरकार की अगुवाई करनी चाहिए थी लेकिन बड़ा दिल दिखाते हुए ओली ने प्रचंड को सरकार की अगुवाई का मौका दिया।
प्रचंड ने कुछ छोटे दलों को मिलाकर अपने नेतृत्व में सरकार बना ली और कुछ ही दिन बाद अपनी पार्टी माओवादी केंद्र का विलय भी एमाले में कर लिया। लेकिन यह सरकार कुछ ही महीने चल सकी। ओली पर तमाम आरोप लगाकर प्रचंड ने ओली का साथ छोड़कर नेपाली कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली और प्रधान मंत्री बने रहे। प्रचंड और नेपाली कांग्रेस की यह सरकार करीब 15 महीने तक चली।
15 माह बाद प्रधानमंत्री प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस के साथ दबाव में सरकार चलाने का आरोप लगाकर उसका साथ छोड़ फिर एमाले का हाथ थाम लिया। इस तरह दो साल के भीतर प्रचंड ने एक बार नेपाली कांग्रेस और दो बार एमाले के साथ मिलकर प्रधान मंत्री बने रहे। प्रधानमंत्री बने रहने के लिए समर्थक दलों को ठेंगा दिखाने की उनकी चाल को नेपाली कांग्रेस और एमाले दोनों समझ गए। इस बार प्रचंड जब एमाले के साथ दूसरी बार ओली के साथ गए तभी से नेपाली कांग्रेस उन्हें सबक सिखाने की रणनीति पर काम शुरू कर दी थी। नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गगन थापा लगातार ओली के संपर्क में थे। ओली वृद्ध भी हैं और किडनी के मरीज भी हैं। वे लगातार डायलिसिस पर हैं। नेपाली कांग्रेस ने उन्हें पहली पारी के प्रधानमंत्री का आफर दिया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है।
बता दें कि नेपाल प्रतिनिधि सभा के 275 सदस्यों में सरकार गठन के लिए 138 सदस्यों की जरूरत होती है। अभी नेपाली कांग्रेस के पास 89 और एमाले के पास 78 सदस्यों की संख्या है। एमाले और नेपाली कांग्रेस की सदस्य संख्या पूर्ण बहुमत से अधिक है। नेपाली राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि यद्यपि दोनों पार्टियां एक दूसरे की विचारधारा से बिल्कुल विपरीत हैं बावजूद इसके दोनों के मिलीभगत की सरकार का बड़ा लाभ यह होगा कि नेपाल को स्थाई सरकार मिल जाएगी। इस दो दलों की सरकार में क्षेत्रिय संतुलन के लिए भले ही मधेशी जैसे छोटे दलों को शामिल कर लिया जाय लेकिन अब उनके समर्थन वापसी की धौंस पट्टी नहीं चलेगी।
फिलहाल नेपाली कांग्रेस और एमाले के बीच नई सरकार के गठन की सहमति के बीच प्रचंड अपनी सरकार बचाने की कोशिशों से बाज नहीं आएंगे जबकि उनकी सरकार बचाने का कोई भी गणित उनके फेवर में नहीं है। एक दो दिन इस बात का इंतजार होगा कि प्रचंड स्वयं त्याग पत्र देकर सरकार से हट जायं। यदि ऐसा नहीं होता है तो एमाले राष्ट्रपति को प्रचंड से समर्थन वापसी का खत लिखेगा और तब प्रचंड के समक्ष दो ही सूरत बचता है,एक या तो वे स्तीफा दें या सदन में विश्वासमत हासिल करें। विश्वास मत हासिल करने पर भी उनकी सरकार जाएगी ही जाएगी क्योंकि उनके पास संख्याबल नहीं होगा।
नेपाली कांग्रेस का भारत विरोधी छवि वाले ओली के साथ सरकार बनाना भारत के लिए थोड़ी हैरानी की बात है लेकिन एमाले के ही सांसद मंगल प्रसाद गुप्ता कहते हैं कि राजनीति करने के वक्तव्य और होते हैं और संबंध निभाने के तौर तरीके अलग होते हैं। वे यह भी कहते हैं कि अपने देश की संप्रभुता की बात करना अपने पड़ोसी देश की मुखालिफत थोड़े होता है।
सत्ता की संभावित बिसात पर नेपाल में प्रचंड की भूमिका पर भी सवाल उठने लगा है। इस बाबत एक नेपाली टिप्पणीकार का कहना है कि प्रचंड कहा करते हैं कि प्रधानमंत्री बने रहना ही उनका सपना नहीं है। भारत के महान विभूतियों गांधी,जय प्रकाश, लोहिया आदि का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि ये लोग कभी प्रधानमंत्री नहीं रहे लेकिन भारत में प्रधानमंत्री पद से कहीं ऊंचा उनका स्थान है। अब प्रचंड को नेपाल का गांधी,जय प्रकाश बनके रहना चाहिए।