Monday - 28 October 2024 - 7:33 AM

उच्च शिक्षा का बजट…

प्रो. अशोक कुमार

उच्च शिक्षा किसी भी देश के विकास और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है। यह न केवल व्यक्तियों को बेहतर जीवन स्तर प्राप्त करने में मदद करता है, बल्कि देश की समग्र अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है।

उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त बजट आवंटित करना सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण निवेश है। यह शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने, शिक्षा में पहुंच और समानता को बढ़ावा देने, कुशल मानव पूंजी का निर्माण करने और देश की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने में मदद करेगा।

वर्तमान में उच्च शिक्षा में क्या बजट होना चाहिए यह सुनिश्चित करने से पहले हमें इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि उच्च शिक्षा का क्या स्वरूप हो ! वर्तमान में महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में छात्रों की उपस्थिति दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है ! हमें इस विषय में गंभीरता से सोचना पड़ेगा कि ऐसा क्या कारण है कि विद्यार्थी औपचारिक शिक्षा के प्रति आकर्षित नहीं होता है और वह कोचिंग केदो पर अपना ध्यान लगाना चाहता है !

मेरा ऐसा मानना है की वर्तमान में विश्वविद्यालय में शिक्षा का जो स्वरूप है उसमें विद्यार्थी को रोजगार की मिलने की आशा कम नज़र आ रही है ! इसलिए हमें चाहिए कि हम औपचारिक शिक्षा में रोजगारपरक शिक्षा प्रदान करें ! इस शिक्षा को प्रदान करने के लिए हमें विश्वविद्यालय में एक परिवर्तन करना पड़ेगा ! हम ऐसे रोजगार से संबंधित विषयों को जिनकी औद्योगिकी से सीधा संबंध हो , छात्रों को उत्प्रेरित करें ! हमारे विश्वविद्यालयों को विश्व स्तरीय उच्च शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में बदलने के लिए, हमें निम्नलिखित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है:

1. उद्यमिता और नवाचार केंद्रों की स्थापना:

उद्यमिता विकास केंद्र : प्रत्येक उच्च शिक्षा संस्थान में उद्यमिता विकास केंद्र की स्थापना की जानी चाहिए, जो छात्रों को उद्यमिता और स्टार्टअप के लिए प्रोत्साहित कर सके। इन केंद्रों में व्यवसायिक प्रशिक्षण, वित्तीय परामर्श, और नेटवर्किंग के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए।
इनोवेशन हब्स: विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में इनोवेशन हब्स की स्थापना की जानी चाहिए, जो छात्रों को नई तकनीकों और विचारों पर काम करने के लिए प्रेरित करें। इन हब्स में उन्नत प्रयोगशालाएं और उपकरण होने चाहिए।

2. स्टार्टअप इनक्यूबेटर्स और एक्सेलेरेटर्स:

स्टार्टअप इनक्यूबेटर्स: उच्च शिक्षा संस्थानों में स्टार्टअप इनक्यूबेटर्स की स्थापना की जानी चाहिए, जो नवाचार और स्टार्टअप को प्रारंभिक चरण में मार्गदर्शन और संसाधन प्रदान करें।
एक्सेलेरेटर्स प्रोग्राम्स: ऐसे प्रोग्राम्स की शुरुआत की जानी चाहिए जो स्टार्टअप्स को तेज़ी से बढ़ने में मदद करें। ये प्रोग्राम्स वित्तीय सहायता, मेंटरशिप, और बाजार में प्रवेश के अवसर प्रदान करें।

3. वित्तीय सहायता और निवेश: स्टार्टअप फंड:

राज्य सरकार को एक विशेष स्टार्टअप फंड की स्थापना करनी चाहिए, जो नवाचार और स्टार्टअप्स को प्रारंभिक वित्तीय सहायता प्रदान करे।
वित्तीय प्रोत्साहन: निवेशकों के लिए कर प्रोत्साहन और सब्सिडी जैसी योजनाएं शुरू की जानी चाहिए, जो वे स्टार्टअप्स में निवेश करते हैं।

4. उद्योग-शैक्षिक संस्थान साझेदारी:

सहयोग और नेटवर्किंग: उच्च शिक्षा संस्थानों को उद्योग जगत के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि छात्रों को व्यावहारिक अनुभव और बाजार की आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल मिल सके।

इंडस्ट्री प्रोजेक्ट्स और इंटर्नशिप: छात्रों को उद्योग से जुड़े प्रोजेक्ट्स और इंटर्नशिप के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए, जिससे वे वास्तविक दुनिया की समस्याओं को समझ सकें और उनके समाधान में योगदान कर सकें।निजी विश्वविद्यालय और निजी कॉलेज उच्च शिक्षा के संस्थान हैं जो सरकारों द्वारा संचालित, स्वामित्व या संस्थागत रूप से वित्त पोषित नहीं हैं। हालाँकि, उन्हें अक्सर कर छूट , सार्वजनिक छात्र ऋण और सरकारों से अनुदान प्राप्त होता है। अपने स्थान के आधार पर, निजी विश्वविद्यालय सरकारी विनियमन के अधीन हो सकते हैं।

डिजिटल और तकनीकी बुनियादी ढांचा:

स्मार्ट क्लासरूम्स और ई-लर्निंग: उच्च शिक्षा संस्थानों में स्मार्ट क्लासरूम्स और ई-लर्निंग प्लेटफार्म्स की स्थापना की जानी चाहिए, जो छात्रों को डिजिटल शिक्षा और वैश्विक ज्ञान से जोड़ सकें।

ऑनलाइन कोर्सेज और सर्टिफिकेशन: विभिन्न क्षेत्रों में ऑनलाइन कोर्सेज और सर्टिफिकेशन प्रोग्राम्स शुरू किए जाने चाहिए, जो छात्रों को नवीनतम तकनीकों और कौशल में महारत दिला सकें।

6. अनुसंधान और विकास (R&D):

अनुसंधान अनुदान: उच्च शिक्षा संस्थानों को अनुसंधान के लिए विशेष अनुदान प्रदान किए जाने चाहिए, जिससे वे नवीनतम खोजों और नवाचारों में योगदान कर सकें।
अनुसंधान केंद्र: प्रमुख विश्वविद्यालयों में अनुसंधान केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिए, जो विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा दें।
इन सभी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करके, हम राजस्थान में उच्च शिक्षा को एक नए स्तर पर ले जा सकते हैं और हमारे युवाओं को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सक्षम बना सकते हैं।

उच्च शिक्षा में क्या बजट होना चाहिए?

सारी दुनिया ने शिक्षा में बजट को बढ़ाया है। नेशनल एजुकेशन पालिसी में भी यह प्रावधान किया गया है । हमने हमारे शिक्षा बजेट मे जीडीपी का 6% का प्रावधान किया था लेकिन आज भी हमारे देश में जीडीपी का 3% ही खर्च किया गया है।

अगर हम इसको अपने बजट (आय) का 6% ला सके तो बेहतर होगा। जीडीपी की शुरुआत केन्द्रीय सरकार से होनी चाहिए।
दूसरे इस बजट को और ज्यादा प्रभावशाली करने के लिए राज्य सरकार को अलग से भी सोचना चाहिए । शिक्षा मे जहां पिछड़ापन पहले से ही ज्यादा इसमें जीडीपी की प्रतिशत बढ़ानी पड़ेगी ! राज्य सरकारों को अपने स्रोतों से भी इसको लागू करें !

हमें यह निर्धारित करना होगा कि जो बजट है उसकी क्या प्रथिमिकताएं हैं । हर राज्य मे उच्च शिक्षा में विभिन्न भोगोलिक परीस्थितियाँ हैं । हमारी शिक्षा में साइंस, आर्ट्स, कामर्स की अलग-अलग दशा है। हम आधारभूत संरचना की बात करें तो बुनियादी ढांचे , बेसिक इंफ्रास्ट्स और आवश्यक बुनियादी ढांचे भी बहुत ज्यादा अंतर है और वो भी अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग है ! इसलिए हमे एक सीधा सीधा अनुपात मे हर क्षेत्र को बांटने की जगह पर आवश्यकता के अनुरूप उसका वितरण जब तक नहीं करेंगे बजट बढ़ाने का फायदा नहीं होगा।

विश्वविद्यालय के स्तर पर भी निश्चित रूप से अपने स्रोतों के बारे मे बड़े पैमाने पर सोचना होगा : एक , आय बढ़ा कर के दूसरा व्यय घटा करके। अगर हम आय नहीं बढ़ाते हैं तो व्यय ही घटा लें। तब भी हमारा बहुत सारा लक्ष्य पूरा हो सकता है !

बजट के सही उन्नयन के लिए, सही उपयोग के लिए, हम व्यवसायिक प्रोफेशनल बॉडीज और टेक्निकल बॉडीज का सहारा लेना चाहिए , जो भी हमारे पास हैं । कम हो वो हम प्रोफेशनल तरीके से प्रोफेशनल मार्गदर्शन के तहत ही उसको क्रियान्वित करें । विश्वविद्यालय को इसमें भी पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए अपनी आवश्यकता के अनुरूप उपयोग करें ना की रूसा (आरयूएसए) की तरह !

विश्वविद्यालय प्रणाली में सार्वजनिक निजी भागीदारी को मजबूत किया जा सकता है।कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग जैसी आंतरिक क्षमताओं को विभाजित करके वेब डिजाइनिंग, वेब रखरखाव और विभिन्न अन्य तकनीकी कार्यों का काम अपने हाथ में ले लें। पोर्टल के प्रबंधन के लिए समर्थ जैसी सरकारी एजेंसियों पर अपनी निर्भरता बढ़ाएं, जिससे कंप्यूटर विक्रेताओं को दिए जाने वाले भारी खर्च को बचाया जा सके।

(लेखक पूर्व कुलपति कानपुर, गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय)

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