Monday - 28 October 2024 - 9:06 AM

मस्जिद में पहली बार योग शिविर

डॉ. लुबना कमाल

जाति, पंथ या धर्म से परे योग सभी के लिए स्वास्थ्यवर्धक है। मैने होम्योपैथिक नेफ्रोलॉजिस्ट के रूप में अपने 25 वर्षों के अनुभव में पाया कि किडनी फेलियर के दो प्रमुख कारण उच्च रक्तचाप और मधुमेह है। ये दोनों विकार कई अन्य प्रमुख जानलेवा रोगों जैसे हृदय रोग, मस्तिष्क आघात, कैंसर आदि के कारक होते हैं।

मासाहारी भोजन खासकर बीफ का सेवन, जब इसे अधिक मात्रा में मसालों, नमक और वसा के साथ पकाया जाता है, और शारीरिक गतिविधि की कमी के साथ उच्च रक्तचाप, मधुमेह और डिस्लिपिडेमिया का एक प्रमुख कारण बन जाता है, जिसमें रक्त में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड का स्तर बढ़ जाता है।

डॉ. लुबना कहती हैं कि मुसलमान, खासकर भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य पूर्व आदि में रहने वाले लोग सदियों से सबसे अस्वास्थ्यकारी तरीके से मांसाहारी भोजन खा रहे हैं।

पहले जब तक लोग साइकिल चलाते थे और सड़क पर पेट्रोल से चलने वाले वाहन कम थे, तब तक आम लोग पैदल चलते थे, जिससे कुछ हद तक व्यायाम की नियमित ज़रूरत पूरी हो जाती थी।

आजकल पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियां और गैजेट्स की वजह से रोज़मर्रा की ज़िंदगी में शायद ही कोई शारीरिक गतिविधि होती हो।

डॉ. लुबना, जो नैनो होम्योपैथी इंस्टीट्यूट ऑफ़ रिसर्च एंड वेलफ़ेयर की सचिव भी हैं।

इस संगठन का उद्देश्य किडनी फेलियर के बारे में जागरूकता फैलाना और रक्तचाप और रक्त शर्करा को नियंत्रित करके इसकी रोकथाम करना है, ख़ास तौर पर प्राकृतिक तरीकों, योग, व्यायाम और ध्यान के ज़रिए। वे पिछले कई महीनों से लखनऊ की कई मस्जिदों के इमामों से बातचीत कर रही थीं, ताकि समुदाय को स्वस्थ रखने के लिए रोज़ाना फ़ज्र की नमाज़ के बाद योग शिविर आयोजित किया जा सके।

उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा, क्योंकि योग को हिंदू धर्म से जुड़ा माना जाता है।

ॐ या मंत्रों का जाप, सूर्य नमस्कार करना शिर्क से जुड़ा हुआ माना जाता है और इसलिए समुदाय द्वारा बड़े पैमाने पर इसका पूरी तरह से बहिष्कार किया जाता रहा है।

ज़्यादातर मुसलमान या आम लोग यह नहीं जानते कि योग में विशेष क्या है कि इसे मध्य पूर्व सहित पूरी दुनिया ने अपनाया है।

योग व्यायाम का सबसे सुरक्षित रूप है खास तौर से तब जब इसे योग शिक्षक की निगरानी में किया जाए।

दूसरा, श्वास क्रिया योग को इतना विशिष्ट बनाती है। नियमित रूप से योग करने वाले रोगियों ने कोविड के दौरान बेहतर परिणाम दिखाए। तीसरा, आप जिम में सालों तक मशीन पर कसरत करके भी हो सकता है कि अस्सी साल के योगाभ्यास करने वाले व्यक्ति की तरह लचीले नहीं हो पाए।

योग, श्वास क्रिया का अभ्यास बिना किसी शिर्क या ओम का जाप किए बिना और इस्लाम की मूल सिद्धांतों का हनन किए बिना किया जा सकता है। किसी भी पार्टी या समुदाय के धार्मिक या राजनीतिक नेता, योग से जुड़ी महत्वहीन बातों को उजागर करके, वास्तव में अपने निहित स्वार्थों के लिए आम लोगों को अपार लाभों से वंचित कर रहे हैं।

इसलिए आम लोगों को उनके झांसे में नहीं आना चाहिए। भारत में डॉक्टर-रोगी अनुपात दुनिया में के सबसे कम देशों में से एक है और सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, इस अंतर को पाटने में अभी लंबा रास्ता तय करना है।

इसलिए घातक बीमारियों को रोकना इलाज से बेहतर है। आयरिश कैथोलिक पादरी पैट्रिक पेटन ने “जो परिवार एक साथ प्रार्थना करता है, वह एक साथ रहता है” वाक्यांश को लोकप्रिय बनाया था। चूंकि हम “वसुधैव कुटुम्बकम” में विश्वास करते हैं, अर्थात विश्व एक बड़ा परिवार है, इसलिए परिवार को अपने मतभेदों को दूर रखते हुए, एक साथ मिलकर वह सब करना चाहिए जो एकता में किया जा सकता है।

योग प्रार्थना के समान है। मुसलमानों के लिए बेहतर समझने के लिए नमाज़ जो है वो योग, ध्यान और जाप का संयुक्त रूप है। नमाज़ की अधिकांश मुद्राएँ योगिक मुद्राओं के समान हैं। इसलिए, जब सभी लोग एक साथ योग का अभ्यास करेंगे हैं, तो यह भाईचारे के बंधन को मजबूत करेगा।

अब बहुत से लोग तर्क देंगे कि दिन में पाँच बार नमाज़ पढ़ना स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त होना चाहिए।

हाँ, बिल्कुल, यह पर्याप्त होगा, लेकिन केवल तभी जब इसे दिन की अन्य सुन्नतों के साथ किया जाए। अकेले भोजन करने की 11 से अधिक सुंदर सुन्नतें हैं।

क्या हम प्रतिदिन इसका पालन करते हैं? क्या हम केवल दो अंगुलियों और एक अंगूठे का उपयोग करके निवाला खाते हैं, मुँह भर कर नहीं? क्या हम भोजन करते समय तशह्हुद मुद्रा में बैठते हैं? हमारे मौलवी दिन में पाँच बार नमाज़ पढ़ते हुए हर समय मस्जिदों में रहते हैं, फिर भी उनमें से अधिकांश का पेट निकल आता है। कभी सोचा है क्यों?

ऐसा इसलिए है क्योंकि इस्लाम का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए, न कि एक डिपार्टमेंटल स्टोर की तरह जहाँ आप अपनी पसंद की कुछ चीज़ें चुन लें और बाकी को छोड़ दें।

हदीस में घर के बाहर खेले जाने वाले चसती फुर्ती वाले खेलों का आह्वान है, जिसका तात्पर्य है कि शरीर स्वस्थ और आकर्षक बना रहे और शतरंज जैसे इनडोर गेम पर बहुत ज़्यादा समय बर्बाद करने से मना किया गया है। पैगम्बर मुहम्मद स. 50 साल की उम्र में हज़रत आयशा र. के साथ दौड़ लगाते थे। आज 50 साल की उम्र वाले कितने मुसलमान ऐसा कर पाएँगे?

डॉ. लुबना ने पाया है कि तनाव, रक्तचाप और रक्त शर्करा को नियंत्रण में रखने के लिए योग बहुत उपयोगी है।

क्रोनिक रीनल फ़ेल्योर से पीड़ित उनके मरीज़ भी योग का अभ्यास करके बेहतर हुए, लंबे समय तक जीवित रहे और बाकियों की तुलना में मज़बूती से बीमारी का सामना किया।

जीवनशैली संबंधी विकारों की निरंतर महामारी के इस युग में गतिशीलता की बहुत ज़रूरत है। उन्हें लगता है कि इसे दुनिया के बाकी हिस्सों और ख़ास तौर पर उनके समुदाय तक बढ़ाया जाना चाहिए।

पिछले साल विश्व किडनी दिवस पर उन्होंने 21 दिवसीय रथ यात्रा निकाली थी, जिसमें उन्होंने लखनऊ के कोने-कोने में योग शिविर आयोजित किए थे और साथ ही गुर्दे की विफलता के लिए निःशुल्क जांच भी की थी।

रथ यात्रा ने लखनऊ के अधिकांश प्रमुख मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और चर्चों तक अपनी सेवाएं दीं, क्योंकि धार्मिक प्रमुख द्वारा जारी किया गया निर्देश एक आदेश बन जाता है, जिसे कोई भी आस्थावान व्यक्ति उल्लंघन करने से नहीं डरता।

साथ ही डॉक्टर लुबना निरंतर भारत के प्रधानमंत्री को पत्राचार के माध्यम से भारत की विभिन्न स्वस्थ समस्याओं और उनके समाधान के बारे में लिखती रही हैं। उन्होंने कोविड की लहर का सामना करने के बारे में भी पंद्रह प्वाइंट की चिट्ठी लिखी थी। रथ यात्रा और उसमे पाए गए परिणामों के बारे में बताते हुए उन्होंने प्रधान मंत्री को ये सुझाव दिए की सरकारी दफ्तरों में कुर्सी पर बैठे बैठे कैसे सरकारी कर्मचारी पंद्रह मिनट के लिए चेयर योग कर सकते हैं और इस से दीर्घकालिक कितना लाभ हो सकता है।

सौभाग्य से इस 10वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर, जो शुक्रवार 21 जून 2024 को पड़ रहा है, लखनऊ के चिनहट में मस्जिद ने अपने परिसर में योग शिविर आयोजित करने की अनुमति दी है।

मस्जिद और दरगाह परिसर के प्रमुख सैयद अतीक शाह और उनकी पत्नी डॉ. जिया शाह ने भी मस्जिद में नमाज अदा करने आने वाले मुसलमानों, आस-पास के मदरसे के छात्रों, दुकानदारों, पड़ोसियों और बाकी लोगों को मस्जिद से नियमित घोषणाओं के माध्यम से शिविर में शामिल होने और नियमित रूप से योग करने के लिए प्रोत्साहित किया।

सभी समुदायों के लोगों ने एकजुट होकर योगाभ्यास किया, जिसके बाद प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान श्री अब्दुल्ला चतुर्वेदी ने योग के माध्यम से मानवता की एकता और इसके शिर्क न होने के बारे में उपदेश दिए।

स्वामी धीरेन्द्र पाण्डेय ने भी योग के लाभों और स्वस्थ रहने के बारे में बताया तथा बताया कि किस प्रकार इसे सभी समुदायों द्वारा अपनाया जा सकता है। योगाचार्य प्रशांत शुक्ला, योग शिक्षक श्रीमती सीता गौर, श्रीमती अंशु देवा, श्री महमूद, श्रीमती दीपाली, डॉ अहमद तथा प्रतिभागियों के प्रयासों से यह कार्यक्रम अत्यंत उपयोगी तथा सफल रहा।

(लेखक जानी-मानी होम्योपैथिक नेफ्रोलॉजिस्ट है)

 

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