जुबिली न्यूज डेस्क
देश में एक के बाद एक पेपर लीक के कई मामले आ चुके. इसमें सबसे गंभीर केस मेडिकल एंट्रेस के लिए आयोजित होने वाले NEET का माना जा रहा है. फिलहाल इसमें कई खुलासे हो चुकने के बाद भी गुत्थी सुलझ नहीं सकी. कई बड़े नाम भी संदिग्ध बताए जा रहे हैं. इस बीच एक कानून की बात हो रही है, जो एंटी-पेपर लीक के लिए ही बना है. ये सवाल भी उठ रहा है कि पेपर लीक के मास्टरमाइंड और बाकी गैंग के अलावा क्या लीक्ड पेपर की तैयारी कर परीक्षा दे चुके बच्चों पर भी कानूनी कार्रवाई होगी.
एंटी-पेपर लीक कानून पारित हो चुका
इसी साल फरवरी में हमारे यहां एंटी-पेपर लीक लॉ आया. पब्लिक एग्जामिनेशन (प्रिवेंशन ऑफ अनफेयर मीन्स) एक्ट 2024 नाम से इस लॉ को खुद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दी. कानून लाने के पीछे मकसद था कि जितने भी बड़े सार्वजनिक एग्जाम हो रहे हैं, उनमें ज्यादा पारदर्शिता रहे. साथ ही युवा आश्वस्त रहें कि कोई गड़बड़ी नहीं होने पाएगी. यह कानून एक के बाद एक परीक्षाओं, जैसे राजस्थान में शिक्षक भर्ती परीक्षा, हरियाणा में ग्रुप-डी पदों के लिए सामान्य पात्रता परीक्षा (सीईटी), गुजरात में जूनियर क्लर्क के लिए भर्ती और बिहार में कांस्टेबल भर्ती परीक्षा सहित कई हालिया पेपर लीक्स को देखते हुए लाया गया.
क्या है पब्लिक एग्जामिनेशन
एंटी-लीक लॉ पब्लिक एग्जाम की बात करता है. यह वो परीक्षा है, जिसे पब्लिक एग्जामिनेशन अथॉरिटी आयोजित करवाती है, या फिर ऐसी अथॉरिटी जिसे केंद्र से मान्यता मिली हुई है. इसमें कई बड़ी परीक्षाएं शाामिल हैं, जैसे यूपीएससी, एसएससी, इंडियन रेलवेज, बैंकिंग रिक्रूटमेंट, और एनटीए द्वारा आयोजित सारे कंप्यूटर-बेस्ट एग्जाम.
क्या आता है कानून के दायरे में
इस कानून के तहत क्वेश्चन पेपर या आंसर का लीक होना जो किसी भी तरह से परीक्षार्थी की मदद कर सके, अपराध है. इसके अलावा कंप्यूटर नेटवर्क के साथ छेड़खानी भी जुर्म है, जिससे पेपर की जानकारी पहले से मिल जाए. ऐसा अपराध चाहे एक पूरा ग्रुप करे, या फिर एक व्यक्ति या संस्था, इसे क्राइम की श्रेणी में ही रखा जाएगा. पैसों के फायदे के लिए फेक वेबसाइट बनाना या फिर फेक एग्जाम कंडक्ट कराना भी इस लॉ में आता है. कई बार अपराधी सीधे पेपर लीक नहीं करते, बल्कि दूसरी तरह की हेराफेरी करते हैं, जिससे उनके परीक्षार्थी को फायदा हो. ये भी एंटी लीक में शामिल है.
डिजिटल सिक्योरिटी पर जोर
कानून के तहत हाई लेवल नेशनल टेक्निकल कमेटी बनाने की भी सिफारिश है ताकि कंप्यूटर से होने वाले एग्जाम ज्यादा सिक्योर बनाए जा सकें. साथ ही एग्जाम के दौरान इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस और फुलप्रूफ आईटी सिक्योरिटी सिस्टम की बात हो रही है.
क्या हो सकती है सजा
सार्वजनिक परीक्षा कानून के तहत इनमें से कोई भी तरीका अपनाने पर न्यूनतम तीन से पांच साल की सजा और 10 लाख का जुर्माना हो सकता है.
ऑर्गेनाइज्ड क्राइम होने पर दोषियों को पांच से दस साल की कैद और 1 करोड़ की पेनल्टी लग सकती है.
जांच कर रही एजेंसी के पास अधिकार होता है कि वे दोषियों की प्रॉपर्टी जब्त और कुर्क कर सकें ताकि एग्जाम में हुए नुकसान की मॉनिटरी भरपाई हो सके.
यह कानून किसी भी ऐसे शख्स को एग्जामिनेशन सेंटर में आने से रोकता है, जिसे एग्जाम से जुड़ा काम नहीं सौंपा गया हो, या जो उम्मीदवार नहीं हो.
कौन करता है पड़ताल
पुलिस महकमे के बड़े अधिकारी, जैसे डीएसपी या एसीपी संदिग्ध मामलों की शुरुआती जांच-पड़ताल करते हैं.
क्या स्टूडेंट्स भी आते हैं इस लॉ के दायरे में
कंपीटिटिव एग्जाम में शामिल होने वाले बच्चों के लिए इस कानून में कोई बात नहीं. संसद में फरवरी में विधेयक पारित हुआ. उस दौरान केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था कि हमने बहुत ध्यान से उम्मीदवारों को कानून से बाहर रखा, चाहे वे नौकरी के लिए एग्जाम दे रहे हों, या फिर छात्र हों. इस लॉ का मकसद केवल ऐसे लोगों को रोकना है, जो धांधली करके बच्चों और देश के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं.