अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर देश की साख निरंतर बढती जा रही है।
विश्व समुदाय के मध्य भारत की मौजूदा नीतियां शीर्षगामी हो रही हैं। ईरान के व्दारा विगत 17 अप्रैल को जप्त किये पुर्तगाली झंडे वाले जहाज एमएससी एरीज के चालक दल के 17 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया था।
इस कन्टेनर जहाज का इजरायल के साथ संबंध होने के कारण ईरान की इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड काप्र्स नेवी ने होर्मुज जलडमरू मध्य के निकट घेर कर कब्जे में ले लिया था।
चालक दल में 6 भारतीय थे जिसमें एक महिला चालक दल सदस्या को भारत की कूटनीति के कारण तत्काल रिहा कर दिया गया था और अब शेष बचे 5 भारतीय भी छोड दिये गये हैं।
देश का बढता सम्मान निरंतर शीर्षोन्मुख हो रहा है। अभिनन्दन की पाकिस्तान से वापिसी से लेकर यूक्रेन से भारतीय छात्रों को जंग के मध्य रास्ते देने की घटनायें समय-समय पर सामने आती रहीं है जबकि अतीत में विमान अपहरण के बहाने आतंकियों को छुडाने जैसी ब्लैक मेलिंग देखने को मिलती रही है। अमेरिका के आगे काले गेहूं के लिए हाथ फैलाये जाते रहे हैं। पा
किस्तान के आतंकी प्रहारों का रोना विश्व समुदाय के सामने रोया जाता रहा है। दंगों, विस्फोटों और खूनी झडपों के तांडव से देश कराहता रहा है। राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का सैलाब नित नये गुल खिलाता रहा है।
कहीं तिरंगे को लाल-हरा झंडों ने दागदार करने की कोशिश की गई तो कहीं छदम्मवेशधारियों ने बहुरूपिये मुखौटे पहनकर व्यवस्था को धूल धूसित किया।
समय के साथ बदलाव की आंधी आई और नकारात्मकता को रौंदने का हौसला लेकर विकास ने कदमताल करना शुरू कर दिया। अमेरिका और रूस के साथ संतुलन स्थापित किया।
इजराइल और ईरान के साथ सामंजस्य बनाये रखा। अनेक मुस्लिम राष्ट्रों का विश्वास जीता। विश्वगुरु के सिंहासन पर पुन: आसीन होने के लिए भागीरथी प्रयास तेज किये गये।
परिणामस्वरूप यूक्रेन और रूस दौनों ही भारत पर विश्वास करते हैं। इजराइल और ईरान दौनों ही भारत का सम्मान करते हैं। नये भारत के परिपेक्ष में परिणामों की बानगी का सूक्ष्म विश्लेषण नूतन अध्याय की नवीन भूमिका परिलक्षित करा रही है।
ऐसे में देश की लोकसभा निर्वाचन प्रक्रिया पर नजरें गडाये बैठा समूचा संसार अब अप्रत्यक्ष में इसे अपने ढंग से प्रभावित करने का प्रयास भी कर रहा है। मित्र राष्ट्रों का समर्थन देश की समृध्दि के साथ है तो शत्रु देशों की जमात विनाशकारी तत्वों के समर्थन में कूद पडी है।
मां भारती की गोद में किलकारी भरती दलगत राजनीति के अनेक लाडले अब राष्ट्रभक्ति की भावना को तिलांजलि देकर स्वार्थ को अंगीकार करने लगे हैं। विकास के वास्तविक मापदण्डों से परे जाकर मगृमारीचिका के पीछे मतदाताओं को दौडाने की होड लगी है।
लुभावने वादों, मुफ्तखोरी की घोषणाओं और संपन्नता के सपनों से वर्ग-संघर्ष की चालें चलीं जा रहीं है।
लालू का मुस्लिम आरक्षण, ममता की सीएए न लागू होने देने की घोषणा, राहुल की जातिगत जनगणना, अखिलेश की वर्ग विशेष को सुविधायें, मायावती का खास लोगों के उत्थान का वायदा, केजरीवाल की लिंग भेदी सुविधा, मणिशंकर का पाकिस्तानी बम, ओवैसी की आतंकी धमकी, सैम पित्रोदा की पैत्रिक सम्पत्ति, महबूबा का पाक प्रेम, फारूख का कश्मीर विशेष और मोदी का विकसित राष्ट्र आज मतदाताओं के मध्य शंखनाद कर रहा है।
दूरगामी परिणामों वाले षडयंत्र की किस्तों में परिणति करने वाली पार्टी का असली चेहरा पिछले कुछ सालों में नागरिकों दिखने लगा है। पैत्रिक परम्पराओं का निर्वहन करने वाली पार्टी के दिग्गजों ने देश के अन्दर और बाहर एक साथ मातृभूमि को अपमानित करने का ही काम किया है। कभी लंदन में देश को कोसा तो कभी अमेरिका में मनगढन्त कहानियां सुनाकर आंसू बहाये।
कभी देश के टुकडे-टुकडे करने के मंसूबे वाली जमात में खडे हुए तो कभी सेना के साहस पर प्रश्नचिन्ह अंकित किये। इसी पार्टी पाठशाला से पढकर निकले लोगों ने कभी बंगाल में घुसपैठियों की दम पर आतंक फैलाया तो कभी महाराष्ट्र में विभेदकारियों को संरक्षण दिया। झंडा, डंडा और कंडा की तिपाई पर चढकर देशवासियों को खूनी दावानल में झौंकने वाले अब चुनावी दौर में निरंतर रंग बदल रहे हैं, अस्थिरता पैदा कर रहे हैं और कर रहे हैं राष्ट्रघाती प्रयास। शब्दों की मर्यादा तो कब की तार-तार हो चुकी है। बेशमी भरे वाक्यों की सरेआम नुमाइश लग रही है। आपत्तिजनक भाषा ने निर्लज्यता के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिये हैं। सम्प्रदायगत, जातिगत, भाषागत, क्षेत्रगत, लिंगगत खाई खोदने वालों ने चुनावी मंचों पर, मीडिया के कैमरों के सामने और वक्तव्यों की गूंज से देश में आग लगाने की पुरजोर कोशिश की है।
कहीं भाई को सालार का बेटा बताकर तोप का नाम दिया जा रहा है तो कहीं जांच एजेन्सी पर हमला करने वालों को बचाने हेतु उच्चतम न्यायालय तक दौड लगाई जा रही है। कही सब्जबाग की खेती लहलहा रही है तो कहीं लालच की लपसी से ललचाने की कबायत चल रही है।
ज्यों-ज्यों निर्वाचन के दौर आगे बढ रहे हैं त्यों-त्यों सत्ता के लालचियों का सब्र टूटता जा रहा है। डर, भय और अनहोनी की भविष्यवाणियों से वातावरण को प्रभावित करने वाले निकट अतीत के परिणामों के साथ इतिहास की तुलना करने से परहेज कर रहे हैं।
संविधान निर्माण से लेकर उसकी समसामयिक समीक्षा तक के चरणों को झुठलाया जा रहा है। वर्तमान परिस्थितियों, सामूहिक सोच और कुटिलता की चालों का विश्लेषण किये बिना ही राष्ट्र की बागडोर सौपने के निर्णय को किसी भी हालत में सुखद नहीं कहा जा सकता। पाकिस्तान की कंगाली का जीवन्त उदाहरण अपनी हकीकत खुद बयान कर रहा है।
स्वाधीनता के बाद से चन्द लोगों ने अपने सोचे-समझे षडयंत्र के तहत बहुत ही चालाकी से देशवासियों की सुकोमल भावनाओं का किस्तों में कत्ल किया, अपनी कुटिलता से जहर को चीनी की चासनी में लपेटकर औषधि के नाम पर खिलाया और फिर समय-समय पर कानूनों में संशोधन करके देश को आन्तरिक कलह, वर्ग-संघर्ष तथा विभाजन के मुहाने तक पहुंचा दिया।
आवश्यक है वर्तमान की रोशनी में अतीत की समीक्षा अन्यथा राजनैतिक दलों के व्दारा निर्मित किये गये भ्रामक वातावरण में उत्पन्न बनावटी कथानकों के दु:खद अन्त की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।