जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की सबसे बड़ी चुनौती थी और यह आफत केवल जर्मन सरकार पर नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर टूटी थी. वर्ष 2020 की शुरुआत में कोरोना महामारी ऐसी फैली कि पूरी दुनिया कुछ मूलभूत सुविधाओं-अधिकारों से वंचित होने के साथ लॉकडाउन के लिए मजबूर हो गयी. बच्चों के स्कूलों के साथ ही बड़े उद्योग भी अस्थायी रूप से बंद कर दिये गये. इसके बाद 2021 के मध्य में जब वैक्सीन बनाने में सफलता मिली तब इस बात का दबाव बढ़ा कि सभी को टीकाकरण करवाना आवश्यक है.
ऐसे में कोरोना को लेकर जर्मन सरकार फिर से जांच करना चाहती है. अब, चार साल के बाद जर्मनी में एक नयी चर्चा छिड़ चुकी है कि कोरोना के दौरान लिए गये राजनीतिक निर्णयों से क्या बदलाव हुए और उससे निपटने के लिए क्या उपाय किए गए. कई नेता इसके लिए जांच आयोग के गठन की मांग भी कर रहे हैं, ऐसी समिति जिसे बुंडेस्टाग बनाए, जिसके सदस्य सांसद और विशेषज्ञ हों. इसकी जांच में सामने आये तथ्यों को सार्वजनिक किया जाए.
हम एक दूसरे को माफ कर सकें
अंगेला मैर्केल की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री और क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) के वरिष्ठ सदस्य येंस स्पान ने महामारी के दौरान 2020 में बुंडेस्टाग में कहा था, अगले कुछ समय में हमारे पास ऐसा बहुत कुछ होगा जिसके लिए हम एक दूसरे को माफ कर सकें. उसी समय येंस को पता था कि महामारी के भयंकर परिणाम हो सकते हैं.
वास्तव में कोविड के नकारात्मक प्रभाव हमें आज भी देखने को मिल रहे हैं. आज भी कई लोग लॉन्ग कोविड के लक्षणों से जूझ रहे हैं. कई लोगों के छोटे-बड़े उद्योग लॉकडाउन में ठप्प हुए और आज तक दोबारा शुरू नहीं हो सके. नेताओं ने तो जैसे एक अनकहे समझौते को अपना लिया जिसके तहत वे बच्चों और युवाओं समेत आम जनता के साथ कड़ाई के साथ ही पेश आएंगे.
ग्रीन पार्टी के नेता, सांसद और डॉक्टर यानोष डामेन ने एक मीडिया चैनल को बताया, “उम्रदराज आबादी होते हुए भी महामारी के दौरान जर्मनी का प्रदर्शन बेहतर रहा. जब टीका उपलब्ध नहीं था और बचाव के साधन भी बहुत सीमित थे तब पहली लहर के दौरान कड़े नियम अपनाए गये. इससे लोगों की जानें बचाई जा सकीं. ”
डामेन ने यह भी बताया कि जर्मन एथिक्स काउंसिल जैसे कई शोध संस्थानों ने महामारी की समीक्षा पहले ही करके कई रिपोर्टें तैयार की हुई हैं. ऐसे में बुंडेस्टाग की ओर से नई समिति का कोई तुक नहीं बनता. वह कहते हैं, “एनक्वेट कमीशन या कोई अन्य विशेष आयोग, जिसमें कोई विशेषज्ञ हैं ही नहीं, उनका इस्तेमाल महज सियासी दांवपेच के लिए किया जा सकता है. इसके अलावा यह किसी भी तरह से मददगार नहीं होगा.”
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि महामारी के दौरान 3.9 करोड़ लोग संक्रमित हुए और लगभग एक लाख 83 हजार लोगों की मौत हो गयी. मिस्टर वाइडिंगर ने कहा, “यह एक कठिन परिस्थिति थी. इसमें किसी के पास कोई उचित समाधान नहीं था, लेकिन निर्णय तो लेना ही था. मुझे लगता है कि आइसोलेशन के दौरान घर पर सबसे अलग रहना काफी कठिन था.” इन सबसे अलग जैकलीना ने टीके के समर्थक और विरोधी खेमे की बात याद आने पर कहा, “टीके लगवाने से मना करने वाले मेरे जैसे लोगों को संदेह की दृष्टि से देखते हुए उनके साथ सार्वजनिक तौर पर बुरा व्यवहार किया गया.”
राजनेता सार्वजनिक मूल्यांकन चाहते हैं
वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री कार्ल लाउटरबाख कहते हैं कि वह जांच की प्रक्रिया में बाधा नहीं डालना चाहते. ग्रीन पार्टी के नेता और अर्थव्यवस्था मंत्री रॉबर्ट हाबेक भी इस बात से सहमति रखते हैं. उन्होंने बर्लिन में कहा, महामारी की समीक्षा और पुनर्मूल्यांकन की जरूरत है.
अगर जर्मनी महामारी से होने वाले नुकसान की समीक्षा शुरू करता है तो ऐसा करने वाला यह पहला देश होगा. दो सप्ताह पहले संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने बर्लिन में एक रिपोर्ट पेश की थी जिसमें दुनिया के गरीब देशों में महामारी के असर पर चर्चा की गयी थी. यूएनडीपी के निदेशक अचिम स्टीनर ने रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, “कोविड हम सभी के लिए एक झटका था, जिसके कारण अर्थव्यवस्था और सामाजिक संतुलन अस्त-व्यस्त हो गया. उसके बाद भी हम आगे बढ़े. लेकिन, विश्व के आधे से अधिक गरीब देश अब भी इससे उबर नहीं पाए हैं. वे अब भी आपदापूर्व स्थिति के स्तर से पीछे हैं और कई तो उस हालात से भी अधिक पिछड़ गए हैं.”