जुबिली न्यूज डेस्क
लखनऊ: उत्तर प्रदेश ने लोगों के जीवन स्तर को उठाने में बड़े स्तर पर प्रयास किया है। प्रदेश में बढ़ते औद्योगीकरण, युवाओं को मिल रहा रोजगार और गरीबों के लिए चलाई जा रही योजनाओं से गरीबी कम हुई है। नीति आयोग के डिस्कशन पेपर ‘मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इन इंडिया सिंस 2005-06’ के निष्कर्ष से यह सकारात्मक तस्वीर सामने आई है।
रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में पिछले नौ साल के दौरान 5.94 करोड़ लोग मल्टीडाइमेंशनल यानी स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर के मामले में गरीबी से बाहर आए हैं। पूरे देश की बात करें तो 2013-14 से 2022-23 के बीच 24.82 करोड़ लोग मल्टीडाइमेंशनल गरीबी से बाहर निकले हैं।
गरीबों को मिला योजनाओं का लाभ
नौ साल में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के गरीबी रेखा से बाहर आने की बड़ी वजह सरकारी योजनाओं में लीकेज बंद होना है। इससे लाभार्थियों तक योजनाओं का लाभ सीधे पहुंचा। 2017 में प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद प्रदेश में केंद्र की योजनाएं प्राथमिकता से लागू की गईं। लोगों को काफी संख्या में आवास मिले। 1.50 करोड़ से अधिक घरों तक मुफ्त में बिजली पहुंचाई गई। गरीब कल्याण की योजनाएं पूरे प्रदेश में प्रभावी ढंग से लागू की गईं।
बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर निकला यूपी
नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर आकर देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन रहा है। उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हुई है। आंकड़ों के मुताबिक, कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण बीते 2-3 साल पूरे विश्व और देश में आर्थिक मंदी रही। इसके बावजूद प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार कायम रही।
ऐसे तय होते हैं आंकड़े
नीति आयोग ने कहा कि राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर के मोर्चे पर स्थिति को मापती है। यह 12 सतत विकास लक्ष्यों से संबद्ध संकेतकों के माध्यम से दर्शाए जाते हैं। इनमें पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृत्व स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते शामिल हैं।
नीति आयोग का राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) गरीबी दर में गिरावट का आकलन करने के लिए ‘अलकायर फोस्टर पद्धति’ का उपयोग करता है। हालांकि, राष्ट्रीय एमपीआई में 12 संकेतक शामिल हैं जबकि वैश्विक एमपीआई में 10 संकेतक हैं।