डा. सीमा जावेद
वर्ष 2050 तक कार्बन डाइऑक्साइड के एमिशन को शून्य तक पहुंचाने की कार्रवाई को लेकर किसी मुगालते की गुंजाइश नहीं इन दिनों चल रहे COP28 के मौक़े पर जारी ग्लोबल टिपिंग पॉइंट्स रिपोर्ट – दुनिया की तबाही और बर्बादी की कगार पर पहुँचने की दास्तान बयान करती है।
इस बीच जलवायु पर शोध करने वाले दुनिया भर के 100 से ज्यादा अनुसंधानकर्ताओं के हस्ताक्षर से जारी एक पत्र में यह निष्कर्ष निकाला है की विज्ञान साफ तौर पर बताता है कि नेट ज़ीरो दुनिया के लिए हमें कब क्या और कैसे करना है।
इस ख़त में कहा गया है की आईपीसीसी के आंकलन के अनुसार, इस सदी में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बनाए रखने की संभावना के लिए 2050 तक नेट जीरो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन तक पहुंचना ज़रूरी है।इस खत पर दस्तखत करने वालों में आईपीसीसी रिपोर्ट के कई लेखक भी शामिल हैं।
वहीं दूसरी तरफ़ इस रिपोर्ट से पता चलता है कि ग्लोबल वार्मिंग ने इस धरती पर मौजूद सभी समुद्री और ज़मीनी सिस्टम (प्रणालीयों) को नष्ट होने की कगार पर ला खड़ा किया है और अगर हालात जल्दी नहीं बदले तो वह दिन दूर नहीं जब यह नष्ट हो जायेंगी और इनके साथ साथ समुद्र और ज़मीन पर पाये जाने वाला जीवन भी नष्ट हो जायेगा।
ग़ौरतलब है कि पृथ्वी के विभिन्न घटक जैसे वातावरण, समुद्र, क्रायोस्फीयर, भूमंडल और जीवमंडल के बीच जटिल संबंधों शामिल है। साफ़ ज़ाहिर है कि अगर बायोस्फ़ीयर( एक जैव-भौगोलिक इकाई जो पारिस्थितिकी तंत्र के सभी पोषण स्तरों का प्रतिनिधित्व कर रहे जीवों की संख्या को बनाए रखे) और क्रायोस्फ़ीयर (यानी पृथ्वी पर बर्फ और बर्फ से ढके क्षेत्र) दोनों नहीं बचेंगे।
ज्ञात हो कि एशिया में दो अरब लोग उस पानी पर निर्भर हैं जो यहां के ग्लेशियरों और बर्फ में मौजूद है, ऐसे में क्रायोस्फीयर को खोने के परिणाम इतने व्यापक हैं कि सोचा भी नहीं जा सकता। अगर ये दोनों नहीं बचे तो इंसान ख़ुद अपना अस्तित्व किस तरह बचा पाएगा।
अगर ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह बरकरार रही तो वह दिन दूर नहीं जब जब ग्रीनलैंड की आइस शीट से लेकर हिमालय की बर्फीली चोटियां, अंटार्कटिक पर छायी बर्फ की चादरें गर्म पानी में पाए जाने वाली कोरल रीफ, बोरियल और मैंग्रोव के जंगल, आमेजन का जंगल, ग्रासलैंड, सारा की सारा अर्थ सिस्टम ख़त्म हो जाएगा। अब दुनिया एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है।
यह रिपोर्ट बेजोस अर्थ फंड के साथ साझेदारी में, एक्सेटर विश्वविद्यालय द्वारा समन्वित 200 से अधिक शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा तैयार की गई थी।
2°C ग्लोबल वार्मिंग के होने से – ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर, पश्चिमी अंटार्कटिक की बर्फ की चादरें, वार्म वाटर कोरल रीफ / गर्म पानी में पायी जाने वाली कोरल की चट्टानें, उत्तरी अटलांटिक के सबपोलर जाइर सर्कुलेशन और पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र समाप्त हो जाएँगे। जैसे-जैसे दुनिया डेढ़ डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग को पार कर रही है, तापमान के बढ़ने से – बोरियल वन, मैंग्रोव और समुद्री मीडो /घास के मैदान सब नष्ट हो जाएँगे ।
दो डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग और उससे आगे तापमान के बढ़ने से -पूर्वी अंटार्कटिका ग्रीनलैंड और पश्चिमी अंटार्कटिक आइस शीट्स / बर्फ की चादरों में अमेजॉन, वर्षावन, सबग्लेशियल क्षेत्र नहीं बचेगा । रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे में दुनिया के अरबों लोगों का भविष्य अब फ़ोसिल फ्यूल के फेज आउट यानी ख़त्म करने की गति और नेट जीरो समाधानों पर निर्भर है।
रिपोर्ट में कार्बन एमिशन को पूरी तरह ख़त्म करने की सिफारिएसएचओ के साथ साथ दुनिया से एक समन्वित कार्रवाई करने का आह्वान किया गया है। इसमें यह निष्कर्ष निकाल गया है अगर दुनिया में “बिज़नेस ऐज़ यूजअल” यानी सब कुछ इसी तरह चलता रहा जैसे फ़िलहाल चल रहा है तो वह दिन दूर नहीं जब ग्लोबल वार्मिंग डेढ़ डिग्री सेल्सियस के पार पहुँच जाये और एक एक करके हर दुनिया में मजूद बायो स्फीयर व क्रयो स्फीयर नष्ट हो जाये।
इस विनाश को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए। रिपोर्ट ऐसा करने के लिए एक ब्लूप्रिंट पेश करती है।वहीं दूसरी तरफ़ चूँकि काॅप 28 में विज्ञान सुर्खियों में है, इसलिए पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं ने ताजातरीन आईपीसीसी रिपोर्ट और उनके पीछे के साक्ष्यों द्वारा उल्लिखित आवश्यक कार्रवाइयों का सारांश शामिल किया है।
पत्र के मुताबिक अगर प्रदूषणकारी तत्वों के एमिशन में बड़े पैमाने पर तेजी से कटौती नहीं की जाती है तो डेढ़ डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने के लिए बचा हुआ कार्बन बजट इसी दशक में खत्म हो जाएगा। एमिशन में जरूरी कटौती का लक्ष्य हासिल करने का मतलब यह होगा कि फ़ोसिल फ्यूल पर आधारित कोई भी मूलभूत अवसंरचना और विकास का कार्य बिल्कुल भी ना हो। यह तभी होगा जब मौजूदा प्रदूषणकारी ढांचे को इस्तेमाल से बाहर कर दिया जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि मौजूदा ढांचा ही अपने जीवन काल में बचे हुए कार्बन बजट को हजम कर जाएगा।
यही वजह है कि ऐसे परिदृश्य जो लक्ष्य के अस्थाई अतिरेक के साथ या उसके बगैर ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोत्तरी को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखते हैं, वे यह दिखाते हैं कि बेधड़क इस्तेमाल किया जा रहे कोयले के प्रयोग को धीरे-धीरे खत्म कर दिया गया है। वहीं, एमिशन में जरूरी कटौती लाने के लिए वर्ष 2050 तक तेल और बेरोकटोक इस्तेमाल हो रही गैस के प्रयोग में 60 से 90 प्रतिशत तक की कमी लानी होगी।
वर्ष 2050 तक ज़ीरो एमिशन का लक्ष्य हासिल करने और 2050 के बाद तनिक भी एमिशन नहीं होने देने के लिए यह सभी तरह के परिदृश्य कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस) तथा कार्बन डाइऑक्साइड के खात्मे (सीडीआर) पर निर्भर करते हैं। ये दोनों 1.5 डिग्री सेल्सियस के लिए जरूरी पैमाने के आसपास भी नहीं हैं और स्थायी भंडारण और अन्य समस्याओं को लेकर पैदा चिंताओं से ग्रस्त हैं। इन अनिश्चित और हासिल करने के लिहाज से दुरूह समाधानों से किसी तरह की उम्मीद रखना खतरनाक है।
पत्र में लिखा गया है, “सिकुड़ते कार्बन बजट के बारे में निश्चितता और सीडीआर की मापनीयता के बारे में व्यापक अनिश्चितता को देखते हुए ग्लोबल वार्मिंग को रोकने और नेट जीरो के लक्ष्य तक पहुंचने का एकमात्र ठोस तरीका फ़ोसिल फ्यूल एमिशन को जरूरी न्यूनतम स्तर तक कम करना है। साथ ही अपशिष्ट फ़ोसिल फ्यूल एमिशन की बाकी मात्रा की भरपाई के लिए सीडीआर में निवेश करना है।”
पत्र में भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहा गया है, “विज्ञान स्पष्ट है : वर्ष 2050 तक कार्बन डाइऑक्साइड के एमिशन को शून्य तक पहुंचाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए जरूरी कार्रवाई को लेकर किसी भी तरह के मुगालते की कोई गुंजाइश नहीं है।”