जुबिली न्यूज डेस्क
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को असहमति के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर चेताया। उन्होंने कहा कि सिविल राइट्स ग्रुप्स का असहमति और अभिव्यक्ति के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल करने से विनाशकारी प्रभाव हो सकता है। सीजेआई ने कहा, ‘क्योंकि ये गैर-जिम्मेदार मेगा इकाइयां उन शक्तियों का भंडार बन जाती हैं जो पहले संविधान और मतदाताओं द्वारा नियंत्रित सरकारों को उपलब्ध थीं।’
गोपनीयता, निगरानी और मुक्त भाषण’ विषय पर जस्टिस वी एम तारकुंडे मेमोरियल लेक्चर में बोल रहे थे। सीजेआई ने कहा, ‘असहमति, एक्टिविज्म और स्वतंत्र भाषण की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में निजी स्वामित्व वाले प्लेटफार्मों को अपनाने का एक दूसरा पहलू भी है। कॉर्पोरेशंस के पास इतनी अपार शक्ति है, स्वीकार्य और अस्वीकार्य भाषण के मध्यस्थ के रूप में काम करने के लिए उन पर बहुत अधिक भरोसा किया गया है – एक भूमिका जो पहले राज्य द्वारा ही निभाई जाती थी।’
उदाहरण देकर सीजेआई ने क्या समझाया
समाज, जनता और देशों पर विनाशकारी प्रभाव की चेतावनी देते हुए, सीजेआई ने संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट का हवाला दिया। जिसमें बताया गया है कि कैसे म्यांमार की सेना ने जातीय सफाई के लिए सोशल मीडिया को एक औजार के रूप में इस्तेमाल किया। सीजेआई ने कहा कि ‘स्टेट एक्टर्स को संविधान और मतदाताओं के प्रति जवाबदेह ठहराया जाता है। इसके उलट सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म अपेक्षाकृत अनियमित हैं। यह एक और नई चुनौती है जिसका डिजिटल स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं को अनूठा हल ढूंढना होगा।’
सीजेआई ने सोशल मीडिया के एक और पहलू का जिक्र भी किया, जो तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘ट्रोल सेनाओं के आने के बाद और विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर संगठित दुष्प्रचार अभियानों के साथ, डर यह है कि ऐसी बातों की भारी बाढ़ आ गई है जो सच्चाई को तोड़-मरोड़ देती है।’
‘सबसे तेज आवाज में दब जाती है सच्चाई’
सीजेआई ने कहा, ‘प्रसार के पैमाने के आधार पर, फर्जी खबरें सच्ची जानकारी को खत्म कर देती हैं, जिससे विमर्श का चरित्र सच्चाई की जगह सबसे तेज आवाज से दब जाता है।’ उन्होंने कहा, ‘इसलिए, दुष्प्रचार में लोकतांत्रिक चर्चा को हमेशा के लिए खराब करने की शक्ति होती है, जो स्वतंत्र विचारों के बाजार को नकली कहानियों के भारी बोझ के नीचे पतन की ओर धकेल देती है।’ सीजेआई ने कहा कि दुनिया भर में – चाहे वह लीबिया हो, फिलीपींस हो, जर्मनी हो या अमेरिका – फर्जी खबरों के प्रसार से चुनाव और नागरिक समाज कलंकित हुआ है। उन्होंने कहा, ‘मुझे याद है कि जब देश दुखद कोविड-19 महामारी का सामना कर रहा था, तब इंटरनेट फर्जी खबरों और अफवाहों से भरा हुआ था।’
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CJI ने कहा, ‘मैं इस दावे को खारिज करना चाहूंगा कि सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समुदायों के लिए नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की तुलना में आर्थिक स्थिति और कल्याण अधिकारों तक पहुंच अधिक महत्वपूर्ण है। सभी व्यक्ति, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना, गोपनीयता, स्वायत्तता और अंतरंगता के अधिकार के उल्लंघन से गहराई से प्रभावित होते हैं…’