जुबिली न्यूज डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने एक रीयल एस्टेट फर्म M3M के डायरेक्टरों से जुड़े मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) को सख्त नसीहत देते हुए कहा है कि किसी भी मामले में बदले की भावना से कार्रवाई न की जाए। ईडी अपनी जांच पारदर्शी तरीके से करे। कोर्ट ने M3M के दो डायरेक्टरों को मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले से बरी कर दिया।
जस्टिस एएस बोपन्ना और संजय कुमार की बेंच ने दो डायरेक्टरों, पंकज और बसंत बंसल को बरी कर दिया है। ईडी ने दोनों डायरेक्टरों को 14 जून को पूछताछ के लिए बुलाया था। उसी दिन उन्हें एक दूसरे केस में गिरफ्तार किया गया था। दोनों ने पीएमएलए के सेक्शन 19 के तहत गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका फाइल की थी। उनकी दलील थी कि इस गिरफ्तारी में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को भी किनारे कर दिया गया।
मौखिक रूप से कारण बताया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईडी ने दोनों डायरेक्टरों को मौखिक रूप से गिरफ्तारी का कारण बता दिया। उन्हें कोई लिखित दस्तावेज नहीं दिया गया। इस रवैये से ईडी की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होते हैं। यह तब और भी गंभीर मामला है, जब एजेंसी को देश की आर्थिक सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है। ईडी को किसी के साथ बदले की भावना से कार्यवाही करने की जगह पूरी पारदर्शिता और निष्पक्ष रवैये से काम करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी को गिरफ्तार करने के दौरान उसकी वजह की एक लिखित कॉपी सौंपनी जरूरी है। लिखित कारणों के बुनियाद पर कोई भी आरोपी अपने वकील की मदद ले सकता है।
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#BREAKING #SupremeCourt judgment criticising the Enforcement Directorate uploaded.
"The ED mantled with far-reaching powers, is not expected to be vindictive in its conduct & must be seen to be acting with utmost probity and with the highest degree of dispassion and fairness" pic.twitter.com/cHisTjNMQj
— Live Law (@LiveLawIndia) October 4, 2023
ईडी ने लगाए हैं गंभीर आरोप
ईडी का आरोप है कि अलग-अलग शेल कंपनियों से 400 करोड़ रुपये डायवर्ट किए गए। इसके अलावा यह भी आरोप है कि एम3एम कंपनी ने दूसरे रियलिटी फर्म IREO ग्रुप के साथ मिलकर कोर्ट की कार्यवाही को मैनिपुलेट करने की कोशिश की। ईडी ने जज सुधीर परमार को अप्रत्यक्ष तरीके से रिश्वत देने का आरोप लगाया था। जज को 27 अप्रैल को ही निलंबित कर दिया गया है। ईडी के वकील का कहना है कि दोनों पर गंभीर आरोप हैं और वे जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं।