डा सीमा जावेद
भारत और बांग्लादेश की सीमाओं को छूता विशाल सुंदरबन जंगल दुनिया में मैंग्रोव वनों के सबसे बड़े खंडों में से एक है। भारत और बांग्लादेश में यह मैंग्रोव वन पारिस्थितिकी तंत्र के, नकारात्मक प्राकृतिक और मानव जनित प्रभाव और प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन के कारण गंभीर नुकसान हुआ है।
सुंदरबन को हो रही क्षति और हानि पर चर्चा करने के लिये शुक्रवार को भारत और बांग्लादेश के विशेषज्ञों की एक परिचर्चा आयोजित की गयी, जिसमें अनेक विशेषज्ञों ने वर्चुअल माध्यम से हिस्सा लिया।
तेज़ी से फैलता झींगा पालन उद्योग, अवैध कटान, वन क्षेत्रों के अतिक्रमण और वन्यजीवों के अवैध शिकार के कारण मैंग्रोव वन खतरनाक दर से जैव विविधता खो रहा है। जलवायु परिवर्तन से उपजी ग्लोबल वार्मिंग के चलते समुद्र स्तर में हो रही वृद्धि से खतरे और गहरा रहे हैं।
लोगों की बढ़ती आवश्यकता को पूरा करने के लिए वनों का अत्यधिक दोहन सुंदरबन की मुख्य समस्याओं में से एक है। जंगलों से अवैध रूप से लकड़ी निकालना और स्थायी प्रबंधन पद्धतियों का न होना क्षेत्र में वन संरक्षण सम्बन्धी प्रमुख समस्याएं हैं। मैंग्रोव आंशिक रूप से खुलना जिले में हैं, जहां एक सरकारी कागज मिल भी मौजूद है। अवैध लकड़हारे जंगल के अंदरूनी क्षेत्रों में घुसपैठ कर रहे हैं। लकड़ी, ईंधन की लकड़ी, पशु चारे, देशी दवाओं और भोजन (मछली, शंख, शहद और जंगली जानवर) के लिए सुंदरबन का सदियों से शोषण किया जाता रहा है लेकिन बढ़ती जनसंख्या के दबाव ने शोषण की दर को बहुत बढ़ा दिया है।
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया के निदेशक संजय वशिष्ठ ने सुंदरबन के संरक्षण के लिये भारत और बांग्लादेश दोनों के समन्वित प्रयास की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, ‘‘मेरा मानना है कि सुंदरबन भारत और बांग्लादेश के लिये उतना ही महत्वपूर्ण जैसे लैटिन अमेरिका के लिये अमेजॉन है। जलवायु परिवर्तन का इस पर गम्भीर असर पड़ा है।
बंगाल की खाड़ी में आने वाले चक्रवाती तूफानों के प्रभाव को कम करने में सुंदरबन का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है, लेकिन इसकी हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। हम देख रहे हैं कि लॉस एंड डैमेज (हानि और क्षति) किस तरह से सुंदरबन में असर डाल रहा है। ऐसे में यह बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत और बांग्लादेश सुंदरबन को संरक्षित करने के लिए साथ मिलकर काम करें।
उन्होंने कहा कि दोनों देशों को अंतरराष्ट्रीय सहयोग का इंतजार करने के बजाय खुद आगे बढ़कर इस दिशा में काम करना चाहिए और अलग-अलग के बजाय एक ‘क्षेत्रीय रणनीति’ बनानी होगी।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा, ‘‘मैं जलवायु परिवर्तन के भौगोलिक राजनीति (जियो पॉलिटिक्स) के पहलुओं को देख रही हूं। भारत और बांग्लादेश सुंदरबन के मामले में एकीकृत योजना के तहत आगे बढ़े हैं। आगामी सीओपी28 की बैठक में ‘करो या मरो’ के कई अवसर होंगे लेकिन जियो पॉलिटिकल रुकावटों की वजह से गड़बड़ हो रही हैं।’’
बांग्लादेश के सांसद साबेर हसन चौधरी ने भारत और बांग्लादेश के लिये सुंदरबन के महत्वपूर्ण को रेखांकित करते हुए कहा, ‘‘हम सुंदरबन को एक वैश्विक महत्व वाले प्राकृतिक संसाधन के रूप में देखते हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव का जंगल है और कार्बन सिंक के रूप में भी इसकी बहुत ज्यादा अहमियत है। वर्ष 2011 में जलवायु परिवर्तन शायद उतना गंभीर वैश्विक मुद्दा नहीं था, जितना आज है।
उन्होंने कहा, ‘‘ अगर हम समग्र रूप से सुंदरबन और लॉस एण्ड डैमेज के बारे में बात करने जा रहे हैं तो फिर यह बेहद चिंताजनक होने वाला है क्योंकि लॉस एण्ड डैमेज का मतलब स्थायी हानि है और मुझे यकीन है कि हममें से कोई भी सुंदरबन को उस स्थिति में नहीं देखना चाहता। मान लीजिए कि आपका विस्थापन हुआ। यह एक स्थायी क्षति है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती। इसलिए हम निश्चित रूप से इसे उस स्तर पर नहीं देखना चाहेंगे, तो अनुकूलन से जुड़ा दूसरा पहलू यह है कि क्या हम अनुकूलन को प्रभावी ढंग से कर सकते हैं।’’
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क के विशेषज्ञ हरजीत सिंह ने सुंदरबन के संरक्षण का जिक्र करते हुए ऐसे द्वीपीय समुदायों के मुद्दों को उठाने के लिये एक ‘आईलैंड फोरम’ बनाने की वकालत की। उन्होंने कहा, ‘‘हम अपने मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में और ज्यादा दिखने वाला बना सकते हैं। मुझे लगता है कि हमें द्वीप समुदायों का एक अंतरराष्ट्रीय मंच बनाना चाहिए, जो देश से परे हो। द्वीपीय राष्ट्रों ने तो अपने मुद्दों को उठाने के लिए बहुत कुछ किया लेकिन उन द्वीपों का क्या जो बड़े समुदायों का हिस्सा हैं और जिनके पास कोई मंच नहीं है।
उन्होंने आगे कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 20 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ एक बैठक आयोजित की थी, जिसमें मैंने भाग लिया था। यह देखकर काफी निराशा हुई कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान अभी भी स्थिति की गंभीरता और अपनी भूमिका को समझ नहीं पाए हैं। वे अब भी अंधेरे में तीर चला रहे हैं. वे चीजों को केवल कर्ज देने के दायरे तक ही देखना चाहते हैं।
ये भी पढ़ें-जलवायु क्षति के लिए कैलिफ़ोर्निया स्टेट करेगा बिग ऑयल कंपनियां पर मुक़दमा
बांग्लादेश के जल संसाधन प्रबंधन एवं जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ ऐनुन निशात ने जलवायु परिवर्तन की मौजूदा रफ्तार के सुंदरबन पर भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘सुंदरबन पर इसके बहुत सारे प्रतिकूल प्रभाव होंगे। हम कह सकते हैं कि समुद्र का जलस्तर 25 सेंटीमीटर तक बढ़ गया है। ऐसी जनसंख्या में वृद्धि हुई है जिसके पास पीने का पानी नहीं है।
बांग्लादेशी अर्थशास्त्री काजी खोलीकुज्जमां अहमद ने सुंदरबन के संरक्षण के लिये अंतरराष्ट्रीय समुदाय को साथ लाने पर जोर देते हुए कहा, ‘‘हमें वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को शामिल करना चाहिये। बांग्लादेश और भारत जलवायु परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप के लाभार्थी नहीं बल्कि भुक्तभोगी हैं।