Sunday - 27 October 2024 - 9:18 PM

एक ही जिस्म में कितने आदमी समेटे थे अमृत लाल नागर

प्रदीप कपूर

अमृत लाल नागर जी को उनके जन्मदिन पर याद करते हुए कुछ पुराने संस्मरण आपके साथ साझा कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कपूर

आदरणीय अमृत लाल नागर जी को बचपन में हम अपने पिता बिशन कपूर के साथ आगरा में मिले थे। लखनऊ आने से पहले हमलोग आगरा में रहते थे और नागर जी की ससुराल और ननिहाल भी आगरा में थे इसलिए उनका भी वहां आना जाना रहता था। जब हमलोग लखनऊ आए तो पहले नेपियर रोड कॉलोनी में रहे तो चौक में नागर जी घर लगातार आना जाना रहता था।

घर पर नागर जी पत्नी जिनको सबलोग बा कहते थे उनकी भी स्नेहमई मुस्कान याद है। बाकी घर के सभी सदस्यों से अपनापन का रिश्ता था। मेरे पिता लखनऊ को जानने समझने के लिए अमृत लाल नागर जी के पास बराबर जाते रहते थे।

मुझे याद है अक्सर नगर जी फोन आता था की वे सिल बट्टे पर बैठने वाले है और बैठकी का आयोजन होने वाला है और भगवती बाबू और फला फला आने वाले है। मेरे पिता तुरंत नागर जी फोन को बड़े भाई का आदेश मानकर पहुंच जाते जहां ठंडाई के साथ सबका स्वागत होता था। मुझे भी अपने पिता के साथ कुछ बैठकी देखने का अवसर प्राप्त हुआ।

जब कभी हम अपने पिता के साथ चौक घूमने जाते तो अक्सर नागर जी अपने पोते परिजात जिनको हम संजू कहते थे मिल जाते थे। नागर जी ज्ञान के भंडार थे और बहुत स्नेह से मिलते थे इसलिए उनसे मिलने का बहाना ढूंढते थे। उनका घर भी किसी म्यूजियम से कम नहीं था ।बहुत मेहनत से तरह तरह की चीजें जुटाई थी नागर जी ने।

मेरे पिता ने 1974 मैं नागर जी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में लखनऊ रवींद्रालय मैं  आईपीटीए का सम्मेलन आयोजित किया था। प्रदेश के तमाम जिलों की भागीदारी थी और उद्घाटन तत्कालीन गवर्नर एम चेन्ना रेड्डी ने किया था और विधान सभा स्पीकर प्रोफेसर बासुदेव सिंह अध्यक्षता किए थे तथा नागर जी मुख्य वक्ता थे।

हम यहाँ 1974 में प्रदेश इप्टा समारोह के उद्धघाटन समारोह की फोटो साझा कर रहे हैं जिसमें मंच पर तत्कालीन राज्यपाल एम चेन्ना रेड्डी के साथ मेरे पिता बिशन कपूर,प्रो वासुदेव सिंह और अमृत लाल नागर जी हैं।

अमृत लाल नागर जी कितने संवेदनशील थे इसका पता मुझे पता चला जब एक दिन सुबह उनका फोन फोन आया की निराला नगर में जो मूर्ति लगी थी वे उन महाकवि निराला जी नहीं जिनको वे जानते थे। नागर जी विरोध के बाद वो मूर्ति बदली गई।

नागर जी कोई भी किताब लिखने से पहले उस सब्जेक्ट पर कितनी रिसर्च करते थे यह बात उनके साथ रहनेवालों को ही पता है। एक बार मैं अपने पिता के मित्र पदम कुमार जैन जी के साथ नागर जी से मिलने गया । पदम कुमार जैन जी मेरे पिता के लिए बड़े भाई थे और आगरा से देहरादून शिफ्ट कर गए थे। पुराने कम्युनिस्ट थे और मेरे पिता को पार्टी में लाने वाले वे ही थे। नागर जी पदम कुमार जैन जी को बताया था कि अपनी पुस्तक मानस का हंस लिखने के लिए मथुरा वृंदावन की गलियों में घूम कर तमाम पांडुलिपि इक्ट्ठा किया तब जाकर किताब लिख पाए।

चौक के पुराने निवासी और नागर जी के पुराने मित्र लालाजी जी ने अपने जीवन का बहुत समय नागर जी साथ बिताया। टंडन जी बताया नागर जी ने हरिजनों पर किताब लिखने से पहले वे स्वयं हरिजन बस्ती रोज जाते थे और वहां रहकर जो अनुभव लिए तब जाकर पुस्तक तैयार की । इसी तरह से लखनऊ के कोठेवालियां लिखने से पहले कोठों की खाक सानी ।

टंडन जी ने बताया कि एक बार नागर जी के निर्देशन में खुदाई हो रही थी पुरातत्व विभाग के लोग भी थे और वे स्वयं कॉलेज जा रहे थे। तभी नागर जी ने कहा लालजी जरा नीचे कूद जाओ कुछ खास चीज दिखाई दे रही है। अब नागर जी कहना तो लालजी टंडन जी तुरंत नीचे कूद गए और जो कहा वो निकाल लिया। लेकिन ऊपर आने मैं जो समस्या हुई उसे टंडन जी खूब मुस्करा कर बताते थे।

टंडन जी ने बताया कि होली पर चौक में निकालनेवाला जूलूस की प्रेरणा अमृत लाल नागर जी ने दी थी।

कुछ साल पहले लखनऊ लिटरेरी फेस्टिवल जो अमृत लाल नागर जी को समर्पित था उसका उद्घाटन आदरणीय लालजी टंडन जी ने किया था। अपने उद्घाटन संबोधन में टंडन जी अमृत लाल नागर जी की जिंदगी के अनछुए पहलुओं और उनके साथ अपने संबंधों पर जो बताया सबलोग मंत्रमुग्ध हो कर सुनते रहे।

मेरे पिता की मृत्यु के बाद 1981 मैं उनकी लिखी किताब ताज की नगरी का विमोचन आदरणीय अमृत लाल नागर जी ने प्रेस क्लब में किया था। तब नागर जी ने मेरे पिता के साथ पुराने रिश्तों की बात की थी।

एक बार काफी हाउस में बैठकी चल रही थी तब जस्टिस हैदर अब्बास रजा के साथ हिंदी की तीन महान हस्तियों यशपाल अमृत लाल नागर और भगवती बाबू को याद किया गया। जस्टिस हैदर अब्बास इन तीनों महान हस्तियों के साथ कॉफी हाउस में बैठते रहे। हैदर भाई ने बताया कि पचास के दशक में अमृत लाल नागर ने आईपीटीए के नाटक ईदगाह का निर्देशन किया किया था जिसमें उन्होंने बच्चे हमीद का रोल किया जो अपनी दादी के लिए चिमटा लेकर आता है। हैदर भाई ने बताया कि नाटक का रिहर्सल डा फरीदी के दवाखाने की छत पर होता था। जब रिफाये आम क्लब में पहली बार मंचन हो रहा था तो पुलिस ने बीच में रोक दिया फिर मामला कोर्ट गया जहां जस्टिस आनंद नारायण मूल्ला ने तारिकी फायदा सुनाया और उसके बाद नाटक का फिर से मंचन हुआ।

 

 

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com