गौरव गोगोई ने अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के पहले दिन ही तीन सीधे सवाल पूछे.
1- मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद तीन महीने बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर क्यों नहीं गए, वहां राहुल गांधी गए, विपक्ष गया और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी गए लेकिन प्रधानमंत्री क्यों नहीं गए?
2- मणिपुर पर बोलने के लिए प्रधानमंत्री जी को 80 दिन क्यों लगे?
3- प्रधानमंत्री ने मणिपुर के मुख्यमंत्री को बर्खास्त क्यों नहीं किया?
एक राजनीतिक जानकार कहते हैं, विपक्ष को ये पता था कि अविश्वास प्रस्ताव गिरने वाला है. तो सरकार को गिराने के लिए ये प्रस्ताव नहीं था बल्कि मणिपुर पर सरकार की जवाबदेही तय करने के लिए इसे लाया गया था. तीन मई से लेकर अब तक यदि मणिपुर जल रहा है और सरकार बिना किसी गंभीरता के ये कहती है कि आप जबरदस्ती सरकार को बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं, लोगों के विश्वास को तोड़ने के लिए प्रयास कर रहे हैं.
नॉर्थ ईस्ट पर प्रधानमंत्री मोदी क्या बोले?
नरेंद्र मोदी अपने भाषण में नॉर्थ ईस्ट पर बहुत कुछ बोले. उन्होंने वहां की नाकामियों के लिए कांग्रेस को तो घेरा ही लेकिन अपने सरकार की उपलब्धियों को बताने से नहीं चूके. पीएम नरेंद्र मोदी बोले एक वक़्त था जब आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की सैलरी का एक हिस्सा उग्रवादियों को देना पड़ता था तब जा कर वहां वो रह पाते थे. तब वहां कांग्रेस की सरकार थी. मणिपुर में आए दिन ब्लॉकेड और बंद होता था लेकिन अब वो बीते दिनों की बात हो चुकी है. वहां शांति के प्रयास चल रहे हैं और आगे भी चलते रहेंगे. तो इसे राजनीति से जितनी दूर रखेंगे यह प्रयास उतना ही सार्थक होगा.
उन्होंने नॉर्थ ईस्ट के विकास की बात की और बोले जिस प्रकार से साउथ ईस्ट देशों का विकास हो रहा है, वो दिन दूर नहीं जब नॉर्थ ईस्ट सेंटर पॉइंट बनेगा. विश्व संरचना करवट ले रही है. इसलिए हमारी सरकार ने नॉर्थ ईस्ट को पहली प्राथमिकता दी है. आज आधुनिका हाइवे, रेलवे, एयरपोर्ट नॉर्थ ईस्ट की पहचान बन रहे हैं. पीएम मोदी बोले- नागालैंड से पहली महिला सांसद बनीं, पद्म पुरस्कार से सम्मानित लोगों की संख्या बढ़ी.
प्रधानमंत्री बता रहे हैं कि कांग्रेस के समय क्या हुआ. कांग्रेस ने हो सकता है बहुत ग़लत किया इसलिए तो आपको सत्ता मिली. लेकिन आपके सत्ता में बैठने के बाद भी मणिपुर जल ही रहा है तो फिर आपकी जवाबदेही बनती है कि आप इसका जवाब दें. वो कहते हैं कि मणिपुर में पांच साल से आपकी सरकार थी, डबल इंजन की सरकार है. आप जिसे पिछली सरकार का तथाकथित कुकर्म बता रहे हैं और उसे आप भी ठीक न कर पाए तो ये आपकी विफलता है.”
विपक्ष का वॉक आउट करना ग़लत रणनीति
नॉर्थ ईस्ट की जितनी भी समस्याएं हैं, जितनी भी चुनौतियां हैं उसके लिए प्रधानमंत्री ने कांग्रेस को दोषी और ज़िम्मेवार ठहराया. लेकिन चुनावी दृष्टि से बीजेपी के लिए अहमियत रखने वाली महिलाओं के मुद्दे पर क्या विपक्ष सरकार को घेरने में कामयाब हुआ?
आखिर विपक्ष ने वॉकआउट करके क्या चूक की?
अविश्वास प्रस्ताव की शुरुआत गौरव गोगोई ने की थी लेकिन वॉकआउट करने की वजह से उन्होंने अपने ‘राइट टू रिप्लाई’ के अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया. वो इस अधिकार का उपयोग करते तो उन आरोपों का खंडन करते जो प्रधानमंत्री जी ने लगाए थे कि कैसे मिज़ोरम एकॉर्ड लेकर आई थी. राइट टू रिप्लाई के ज़रिए कांग्रेस उनके हर एक पॉइंट का जवाब दे सकती थी. आगे क्या हो सकता है इस पर चर्चा हो सकती थी. क्या वहां सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल जा सकता है. क्या ऐसा होने की स्थिति में बीजेपी उसका हिस्सा बनेगी. क्या महिलाओं का प्रतिनिधि मंडल वहां जा सकता है. उन्होंने ये अवसर हाथ से गंवा दिया.”
राजनीतिक जानकार कहती हैं, “विपक्ष को इसकी ज़्यादा तैयारी करनी चाहिए थी. पीएम ने बोला कि उन्होंने उतनी अच्छी तैयारी नहीं की है और मुझे भी उसमें दम दिखा. राहुल गांधी की बातों में ठोस चीज़ें नहीं थीं. तर्क, साक्ष्य, मणिपुर, राष्ट्रीय सुरक्षा और देश के लिए नॉर्थ ईस्ट की क्या अहमियत है वो उतनी अच्छी तरह से नहीं हुआ.” वे कहती हैं कि कुल मिलाकर वॉकआउट करना विपक्ष की ख़राब रणनीति थी.
विपक्ष की संवेदना सेलेक्टिव है
प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस की पीड़ी को सेलेक्टिव बताया और कहे कि वो देश की कठिनाइयों के बारे में नहीं सोचते. विपक्ष की संवेदना सेलेक्टिव है, प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले वहां उग्रवाद था और तब कांग्रेस सत्ता में थी. लेकिन कांग्रेस सत्ता से जा चुकी है और आज आपकी सरकार है. तो फिर कांग्रेस और आपमें फर्क क्या है?”
“कुल मिलाकर सारी दुनिया की बात की. देश की जनता पर विश्वास की बात की. उन्होंने अखंड विश्वासी समाज की बात की लेकिन यदि उन पर अखंड विश्वास होता तो कर्नाटक, हिमाचल, दिल्ली में नहीं हारते, बजरंगबली का नाम नहीं लेना पड़ता.एक तरफ कहते हैं कि विपक्ष में ताक़त नहीं है, कमज़ोर है, तैयारी नहीं करते, इनोवेटिव बातें नहीं करते. देश का विश्वास प्रधानमंत्री जी आप तोड़ रहे हैं. लोग भयभीत हैं.
क्यों वहां लोग अपने लोगों का अंतिम संस्कार नहीं कर पा रहे हैं? कुल मिलाकर प्रधानमंत्री का भाषण उन्हीं उम्मीदों के अनुरूप था कि वो मणिपुर पर उठाए गए सवालों के जवाब नहीं देंगे. वो इतिहास में जाएंगे और वर्तमान की बात नहीं करेंगे और सवर्ण भविष्य का लॉलीपॉप देंगे.
वो मुद्दे जिन पर नहीं बोले प्रधानमंत्री
वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं कि प्रधानमंत्री महंगाई, बेरोज़गारी, नूंह जैसे मामले पर कुछ नहीं बोले. राशिद किदवई कहते हैं, प्रधानमंत्री भाषण के दौरान अपनी वाकपटुता से बाज़ी मारने की कोशिश करते हैं. उन्होंने एलआईसी का उदाहरण दिया. एलआईसी का आईपीओ आया था. गिरावट के साथ उसकी शुरुआत हुई थी जो आज भी कायम है. लेकिन उन्होंने एलआईसी को ऐसे बताया जैसे जिन लोगों ने शेयर बाज़ार में पैसे लगाए उन्हें फ़ायदा हो रहा है.
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“वे टमाटर के बढ़ते दाम, महंगाई, बेरोज़गारी, रेलवे के जवान वाली घटना, नूंह की हिंसा, जैसे विषयों को छूते भी नहीं हैं. यदि मैं मणिपुर का रहने वाला व्यक्ति हूं तो आज मेरे हाथ क्या लगा. 100 दिन हो गए और केवल कोरे आश्वासन मिले. वहां आज भी वही मुख्यमंत्री हैं. साथ ही उन्होंने यह आश्चर्य भी जताया कि मणिपुर के कुकी और मैतेई सांसदों को बोलने का मौक़ा क्यों नहीं दिया गया.
घमंडिया’ गठबंधन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन को अपने भाषण के दौरान कई बार घमंडिया गठबंधन कह कर संबोधित किया. इस पर अशोक वानखेड़े पूछते हैं कि यदि विपक्ष एक हो गया तो इसमें घमंड किस बात का? वहीं राशिद किदवई कहते हैं, “आज प्रधानमंत्री के भाषण में नई बातें नहीं थीं, घमंडिया के बारे में जो बातें उन्होंने कही वो ख़ुद प्रधानमंत्री के बारे में कही जा सकती है.