नवेद शिकोह
आसमानी इन्कमटैक्स डिपार्टमेंट को ईद पर याद रखिएगा !
ईद के मौक़े पर धन सम्पन्न मुसलमानों पर आसमानी ईडी, इन्कमटैक्स निगाहें बनाए रखता है। अपनी आमदनी के हिसाब से आपने ग़रीबों/ज़रुरतमंदों को फितरा-जकात (दान/आर्थिक सहयोग) नहीं दिया तो आसमानी इन्कमटैक्स डिपार्टमेंट और ईडी आपके ख़िलाफ ख़ुदा को रिपोर्ट करेगा !
जो धनसंपन्न मुसलमान रमजान में ज़कात और ईद में फितरा ना देकर खुद पर पैसा उड़ाएंगे तो ऐसी ईद के जवाब में गुनाहों के पत्थरों की चोट का खतरा पैदा हो जाएगा। (कुछ लोगों की ऐसी धारणा है।)इस्लामी शरियत में फितरा,ज़कात, ख़ुम्स जैसी आर्थिक करों की अनिवार्यता भारत के कर अधिनियमों जैसी है। यानी यदि आपकी कमाई एक लिमिट से जितनी ज्यादा है उस स्लैब के हिसाब से आपको टेक्स देना चाहिए है।
कर चोरी करने पर ना सिर्फ आपको कर चोरी की सज़ा मिलती है बल्कि आपकी धन दौलत भी ज़ब्त हो सकती है। इसी तरह यदि आप धन सम्पन्न हैं और अपनी आमदनी का एक हिस्सा ग़रीबों की आर्थिक सहायता में खर्च नहीं कर रहे हैं तो इसे ईद की शराइत की नामरमानी माना जाएगा।
इस त्योहार पर यदि कोई अपने लिए चार कपड़े बनाता हैं, तरह तरह के जायकेदार खाने खाता हैं और उसका कोई पड़ोसी, रिश्तेदार या दोस्त के पास पेट भरने का या एक भी नया कपड़ा खरीदने की रकम नहीं है ऐसे व्यक्ति की ईद की खुशियां ग़ैर ज़िम्मेदाराना कहलाएगी। ज़िन्दगी की आवश्यक जरुरतें से अधिक धन या बचत है और किसी निर्धन तक फितरा (दान की रकम) नहीं पहुंचाया तो आप ईद की हिदायतों के बिना ही ईद मना रहे हैं।
कहा जाता है दान देने की अनिवार्यता पूरी करने से आपकी रोज़ी-रोटी में बरकत होती है। आमदनी बढ़ती है। कहने वाले ये भी कहते हैं कि दान का कर्तव्य निभाने से नौकरी या व्यापार में उन्नति, प्रगति व स्मृद्धि होती है। फितरे/जकात (डोनेशन) का फर्ज नहीं निभाने पर आप अपनी आमदनी, नौकरी, व्यापार में स्मृद्धि के लिए खुदा से किस मुंह से दुआ करेंगे !रमज़ान में रोजा, नमाज़, तरावीह की तरह जकात भी महत्वपूर्ण है। इसी तरह ईद का चांद निकलने से पहले फितरा देने की भी शर्तें हैं।
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फितरा होता क्या है?
धन सम्पन्न मुस्लिम लोग माली तौर से कमजोर लोगों को देते हैं। ईद की नमाज से पहले इसका अदा करना इसलिए अवश्य होता है क्योंकि गरीब लोग भी त्योहार की तैयारी कर सकें।
जकात क्या है
ज़कात देना सुन्नत है। मुसलमानों के रसूल की जीवनशैली के कुछ कार्यों को अपनाना सुन्नत होता है। सुन्नत अनिवार्य (वाजिब) नहीं है। सुन्नत कार्य करो तो बहुत अच्छा है और ना करो तो गुनाह (पाप) नहीं होगा।किसी शख्स की इनकम का 2.5 प्रतिशत भाग निर्धन को दिया जाता है। इसे जकात कहते हैं। मुसलमान अपनी जरुरते पूरी करने के बाद सौ रुपये बचाते हैं तो उसमें से 2.5 रुपये किसी गरीब को डोनेट करना होगा।
रमज़ान की इबादतों के इनाम वाली ईद की सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये त्योहार इकनॉमिक डिसबैलेंस को बैलेंस करने का प्रयास करता है ताकि गरीब का ज्यादा गरीब होना और अमीर का ज्यादा अमीर होना कम हो।
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