Monday - 28 October 2024 - 3:31 PM

गावों में बढ़ रहा है अस्वास्थ्यकर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड भोजन का चलन

जुबिली न्यूज़ डेस्क

एक अध्ययन से पता चला है कि भारत के वंचित और आर्थिक रूप से कमजोर लोग काफी मात्रा में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और पैकेज्ड फूड का सेवन कर रहे हैं। एक ऐसे देश में जो कुपोषण के मामले में दुनिया के सबसे गंभीर दोहरे बोझ का सामना कर रहा है, सबसे कम आय वर्ग के लोग भूख का सामना करने से अस्वास्थ्यकर स्नैक्स पर निर्भर हो गया है।

यह अध्ययन इस बात को बतलाता है कि खराब पोषण के वजह से भारत में आहार से संबंधित गैर-संचारी रोगों (DR-NCDs) की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है, जिससे लाखों लोग, जिसमें शामिल सभी सामाजिक-आर्थिक श्रेणियों के बच्चों को जोखिम का सामना करना पड़ रहा है ।

20 मार्च, 2023 को कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में सांसदों के गोलमेज सम्मेलन में अध्ययन का विमोचन पीपुल्स विजिलेंस कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स (पीवीसीएचआर) और पीआईपीएएल ने जारी किया. संसद के वरिष्ठ सदस्यों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों ने बाजार में स्वस्थ खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने एवं पैकेज्ड फूड पर स्पष्ट चेतावनी लागू करने के लिए तत्काल नीतिगत उपायों की मांग की जिससे की उपभोक्ता को स्वस्थ विकल्प चुनने में मदद मिल सके.

भारत में लगभग 45 मिलियन ऐसे बच्चे हैं जो अविकसित हैं और 15 मिलियन ऐसे बच्चे हैं जो मोटापे के शिकार हैं। इसके अलावा वयस्कों में भी मोटापे मधुमेह और हृदय से जुड़े बीमारियों को देखा जा सकता है । हर साल NCDs के कारण 65% मौतें होती हैं, इसलिए भारत एक आहार संबंधित स्वास्थ्य आपदा की कगार पर है। विशेषज्ञों के अनुसार, उच्च मात्रा में चीनी, सोडियम, और वसा युक्त अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत के चलते खराब पोषण एक मुख्य जोखिम का कारण बनता जा रहा है।

कार्यक्रम में बोलते हुए, भाजपा से वरिष्ठ राज्य सभा सांसद डॉ अशोक बाजपेयी ने कहा, “अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड और पेय पदार्थ सस्ते और तत्काल उपलब्ध होते हैं, जिससे दैनिक मजदूरों को खर्च और समय दोनों की बचत होती है। इस महत्वपूर्ण अध्ययन से यह साबित होता है कि दलित परिवार या पिछड़े वर्गों से संबंधित परिवारों की आमदनी कम होती है,

वे स्वस्थ्य पर इसके नकारात्मक प्रभाव को समझने के बजाय आसानी से मिलने वाले खाद्य पदार्थों पर अधिक निर्भर होते जा रहे हैं। हम जनता के प्रतिनिधि के रूप में, बाजार में उपलब्ध पैकेज फूड स्वस्थ होने का सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और इसमें नकारात्मक पोषक तत्वों की सुरक्षित सीमाएं हों।”

पीपल (पीपल्स इनिशिएटिव फॉर पार्टिसिपेटरी एक्शन ऑन फूड लेबलिंग), ने उत्तर प्रदेश और बिहार के दो जिलों – वाराणसी और गया में यह सर्वेक्षण किया। अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और पैकेज्ड फूड के सेवन पर पूछे गए 90% से अधिक लोगो की दैनिक आय 400 रुपये या उससे कम है, और लगभग 40% दलित (मुसहर) समुदाय से हैं। सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश लोग साक्षर नहीं हैं।

सर्वेक्षण में पाया गया कि दलित परिवार अपनी आय का 94% भोजन पर खर्च कर रहे हैं और उस व्यय का लगभग 10-15% चॉकलेट, कार्बोनेटेड पेय, जेली, बिस्कुट और चिप्स जैसे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों पर खर्च होता है। इसकी तुलना में, स्वास्थ्य और शिक्षा पर उनका खर्च नगण्य 1.3% और 0.5% है। निष्कर्ष इस तथ्य की ओर भी इशारा करते हैं कि कम साक्षरता वाले परिवारों के पैकेज्ड फूड पर अधिक निर्भरता है।

पीपल्स विजिलेंस कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स (पीवीसीएचआर) के संस्थापक और सीईओ डॉ लेनिन रघुवंशी ने सर्वेक्षण जारी करते हुए कहा, “अति-प्रसंस्कृत खाद्य और पेय पदार्थों का प्रतिकूल प्रभाव उन बच्चों पर और भी अधिक स्पष्ट होता है जो अविकसित हैं या अपने जीवन की शुरुआत में अपर्याप्त पोषण प्राप्त किया।

वे ओबेसिटी के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं और वयस्क बनने पर उन्हें एनसीडी का अधिक जोखिम हो सकता है। एक ऐसे देश जो कुपोषण का दोहरा बोझ उठा रहा है, हमारे बच्चों के लिए एक स्वस्थ कल सुनिश्चित करने के लिए सबसे अच्छा नीतिगत समाधान चीनी, सोडियम और संतृप्त वसा की उच्च सामग्री के बारे में स्पष्ट चेतावनी देना होगा, जो सभी पैकेज्ड फूड के सामने अनिवार्य है।

यह कमजोर और गरीबों को पैकेज्ड फूड से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान के बारे में बताएगा और उनके चयन के फैसले को प्रभावित करेगा। उम्मीद है कि यह अत्यधिक लाभदायक और तेजी से बढ़ते खाद्य उद्योग को भी अपने उत्पादों को स्वस्थ बनाने के लिए प्रेरित करेगा।

भारत में खाद्य और पेय उद्योग 34 मिलियन टन की बिक्री के साथ दुनिया के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है। यूरोमॉनिटर के आंकड़ों के अनुसार, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत 2020 तक दुनिया में पैकेज्ड फूड के लिए तीसरे सबसे बड़े बाजार के रूप में उभरने के लिए तैयार है।

भाजपा संसद सदस्य बी पी सरोज,, ने कहा कि, “उत्तर प्रदेश में, विशेष रूप से वाराणसी में, प्रवासी श्रमिकों में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड तैयार भोजन के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है क्योंकि इसे जल्दी से गर्म किया जा सकता है और जिनके पास ना ही समय है और ना ही संसाधन है कि वह अपना भोजन खुद तैयार कर सके जिसके चलते वह अल्ट्रा-प्रोसेस्ड भोजन को प्राथमिकता दे रहे हैं.”

सलाहकार समिति, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के सदस्य, श्री सरोज ने आगे कहा कि, “यह नीति निर्माताओं के लिए एक सही समय है जो लोगों को स्वस्थ विकल्प चुनने और जीवन बचाने के लिए सशक्त कदम उठा सकते हैं। भारत सहित दुनिया भर के साक्ष्य यह बतलाता है कि फ्रंट-ऑफ़-पैक लेबल जो स्वास्थ्य के लिए हानि पहुंचाने वाले पदार्थों के बारे में लोगों को चेतावनी देता है, का सबसे अधिक प्रभाव होगा।

हम FSSAI को अपना समर्थन देते हुए एक ऐसा FOPL विनियमन की प्रतीक्षा करते हैं, जो इस देश के लोगों के लिए अच्छा हो और यही समय की मांग है।”कार्यक्रम में आगे इमरान प्रतापगढ़ी, संसद सदस्य, राज्यसभा, स्वास्थ्य संसदीय स्थायी समिति के सदस्य ने कहा कि, “ महिला और बाल स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए चेतावनी लेबल लाने के लिए अपना पूरा समर्थन देना सुनिश्चित करते हैं।

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एक स्वस्थ खाद्य प्रणाली एक मुहिम के साथ पीवीसीएचआर और पीपल ने राजधानी में इस परामर्श का आयोजन की, इसे चालू संसद सत्र के साथ समयबद्ध कर किया। विचार-विमर्श के दौरान औरंगाबाद निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ सांसद सुशील कुमार सिंह, बदायूं सांसद संघमित्रा मौर्य व स्वास्थ्य संसदीय स्थायी समिति के सदस्य, सकल दीप राजभर, सलाहकार समिति, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के सदस्य और नेफेड के निदेशक अशोक ठाकुर सहित रॉबर्ट्सगंज निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले पकौड़ी लाल कोल और अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्षा नेट्टा डिसूजा, पूर्व सांसद कमल किशोर कमांडो ने इस संवाद में सक्रिय भूमिका निभाते हुए वार्निंग लेबल को आने वाले पीढ़ी के स्वास्थ्य को लेकर समर्थन दिया|

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गृह मंत्रालय के पूर्व सहायक निदेशक राजेश प्रताप सिंह, डॉ. ओ पी व्यास-पूर्व संयुक्त रजिस्ट्रार , NHRC और नागरिक समाज की श्रुति नागवंशी, पंडित विकास महाराज, प्रसिद्ध सरोद वादक, वरुण पाठक, मजिस्ट्रेट बाल कल्याण समिति की पीठ के अध्यक्ष और प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुण गुप्ता उपस्थित थे।

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