- हम तुम्हें यूं भुला ना पाएंगे…रामनगरी के अवध विश्वविद्यालय के अड़तालिसवें स्थापना दिवस पर
ओम प्रकाश सिंह
आज डॉक्टर राममनोहर लोहिया अवधविश्वविद्यालय में भले ही राष्ट्रपति प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री और राज्यपाल की तस्वीरें लगी हों लेकिन उसके पीछे कारण हैं श्यामाचरण और राममूर्ति सिंह और उनके तमाम सहयोगी।
विश्वविद्यालय स्थापना के लिए पुलिस की लाठियां खाने व जेल जाने वाले जांबाजों की तस्वीरों की कौन कहे विश्वविद्यालय प्रशासन स्थापना दिवस पर सम्मान देने से भी गुरेज करता है।
ताजमहल की खूबसूरती हर कोई देखता है नींव के पत्थरों की चर्चा नहीं होती,यही हाल है डॉक्टर राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय का।
सत्तर का दशक भारतीय राजनीति में हमेशा याद किया जाएगा और उसी दशक में छात्र राजनीति अपने चरम पर थी आदर्शों के साथ,जानिए कैसे स्थापित हुए जनपद फैजाबाद में दो विश्वविद्यालय.,.
खेड़वा जरुआ सया अंबेडकर नगर का एक दलित छात्र 1970 में साकेत महाविद्यालय में उच्च शिक्षा के लिए आता है,छात्र समस्याएं भारी थी विश्वविद्यालय गोरखपुर था।
राम मूर्ति सिंह छात्रसंघ अध्यक्ष थे और ये दोनों नौजवान डॉक्टर लोहिया और नेता जी के नाम से मशहूर राज नारायण जी के विचारों से प्रभावित।
अपना विश्वविद्यालय, बस इसी विचार ने क्रांति को जन्म दिया। साझा मंच तैयार हुआ। समाजवादी युवजन सभा, विद्यार्थी परिषद, कम्युनिस्ट पार्टी की युवा शाखा और हजारों नौजवानों के साथ।
आंदोलन की चिंगारी फूटी तो तत्कालीन गवर्नर अकबर अली को फैजाबाद के नौजवानों ने कार्यक्रम करने नहीं दिया। बात बनते ना देख,श्यामाचरण और राममूर्ति ने वह कदम उठाया जिससे हिंदुस्तान की संसद भी हिली और मांगा एक था मिला दो विश्वविद्यालय। इन दोनों नौजवानों ने गूंगी बहरी सरकार को जगाने के लिए लोकसभा में पर्चा फेंका।
मर्यादा भंग हुई लोकसभा की तो सजा सुनाई गई छह माह की,इस सजा ने विपक्ष के नेताओं में खलबली मचा दी। तत्कालीन लोकसभा में विपक्ष के नेता ज्योतिर्मय बसु ने कहा यह लोकसभा है या परलोक सभा।
जिस क्षेत्र का सांसद गूंगा और बहरा हो वहां के नौजवान अपनी तालीमी बेहतरी के लिए सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए और क्या करते, सदन की मर्यादाओं का उल्लंघन हुआ है गुनाह भी है पर यह गुनाह वृहत्तर लोक हित में है इसलिए इन नौजवानों को सजा भी प्रतीकात्मक ही मिलनी चाहिए।
संसद में चर्चा हुई प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आश्वासन देना पड़ा कि जनपद में विश्वविद्यालय की स्थापना होगी और इसी के साथ दो विश्वविद्यालय मिले डॉक्टर राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय और आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय।
इन नौजवानों की छह माह की सजा को 6 दिन कर दिया गया, ये नौजवान तिहाड़ जेल पहुंचते,उसके पहले ही आकाशवाणी पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष आनंद प्रकाश जो कि बनारस के रहने वाले हैं ने सुना और 5000 साथियों के साथ तिहाड़ जेल के गेट पर पहुंच गए।
दिल्ली पुलिस के लिए कानून व्यवस्था का सवाल खड़ा हो गया,वायरलेस घनघनाने लगे और भारी मात्रा में फोर्स बुला ली गई लेकिन नौजवान संयमित थे, सांस्कारिक थे, और मर्यादित भी । 6 दिन जेल में कब कट गए इन नौजवानों को पता भी नहीं लगा। देश दुनिया की मीडिया वहां मौजूद रहती थी।
रिहाई के बाद जेल अधीक्षक ने कहा की बस का किराया ले लीजिए क्योंकि उस समय जॉर्ज फर्नांडिस के आव्हान पर भारतीय रेल सेवाएं ठप थी।
इन नौजवानों ने कहा जेल मैनुअल के अनुसार हम उच्चतम श्रेणी के बंदी थे तो किराया भी उसी अनुसार मिलना चाहिए दिल्ली से लखनऊ तक का फ्लाइट से और वहां से प्रथम श्रेणी का रेल किराया,अधीक्षक को कानूनन किराया देना पड़ा और इन नौजवानों को दिल्ली पुलिस ने भारी सुरक्षा व्यवस्था में गाजियाबाद में लाकर छोड़ा।
इन नौजवानों के साथ इस चिंगारी को ज्वाला बनाने में साथ दिया था जय शंकर पांडे, अनिल तिवारी, लल्लू सिंह, श्रीराम द्विवेदी, माता प्रसाद तिवारी, उदय सिंह, रामचरित पाठक, डॉक्टर विजय बहादुर सिंह, राजा राम सिंह, राम दुलारे यादव, रवींद्र शुक्ला, विजय द्विवेदी और हजारों नौजवानों ने।
कई प्रमुख साथी अब हमारे बीच में नहीं हैं उनकी यादें हैं,। M.A., LLB तक शिक्षित श्यामाचरण की योग्यता का आकलन प्रथमदृष्टया शायद ही कोई कर पाता यह उनके व्यक्तित्व की खास खूबी थी, यही हाल भाई राममूर्ति सिंह जी का भी है आपको मिल जाएंगे कहीं भी फक्कड़ की तरह।
अवध विश्वविद्यालय पुरातन छात्र सभा अध्यक्ष ओम प्रकाश सिंह की कोशिशों से विश्वविद्यालय स्थापना के आंदोलनकारियों को दो बार सम्मानित करने की पहल हुई। जरूरत है कि विश्वविद्यालय में स्थापना आंदोलन को सहेजा जाए और एक विथिका में चित्रों को लगाया जाए।