डा. सी.पी राय
जिस भी देश में किसी धर्म विशेष का राज हुआ , धर्म विशेष के सर्वोत्तम होने के नाम पर और धर्म विशेष का ठेका लेने वाले कट्टरपंथी लोग राज पर क़ाबिज़ हो गए उन देशो को क्या क्या मिला ?
- संगठन विशेष का आदेश की संविधान और क़ानून बन जाता है
- उस संगठन को ना मानने वाले दुश्मन घोषित कर दिए जाते है और दुश्मन को माफ़ करना इस व्यवस्था के ख़िलाफ़ होता है
- उस देश की स्त्रियों पर पाबंदियाँ थोप दो जाती है की – -वो पढ़ नही सकती -वो गा या नाच नही सकती -वो संगठन विशेष के लोगो के अलावा किसी के सामने बेपर्दा नही हो सकती -वो क्या पहनेगी ये वही संगठन तय करेगा
- उस देश में किसको इंसान माना जाएगा या नही माना जाएगा वो संगठन तय करता है
- उन दशो में न्याय उस संगठन विशेष के हाथ में होता है । वो जब चाहे किसी को गोली से उड़ा दे या चौराहे पर फाँसी लटका दे या कुचल कर मार दे
- उन देशी की पुलिस और फ़ौज उस संगठन विशेष के हाथ में होते है और वो केवल बोलने और लिखने वाली को कुचलने तथा समाज को बर्बाद करने के काम आते है
- ऐसे देश अन्ततः बुरी तरह बर्बाद हो जाते है
- ऐसे देश दुनिया के साथ चलने के बजाय कही आदिकाल के गौरव के सपने में चलते है
- ऐसे देश दुनिया से कट जाते है
- जहाँ कोई दूसरा नही होता वहाँ वो अपनों में ही नफ़रत के लिए लोग तय कर देते है और लग जाते है इन अपनो का विनाश करने में
- ऐसा देश और समाज वीभत्स और विकृत तानाशाही का शिकार होता है
इसीलिए लोकतत्र और संवेदनशील लोकतंत्र जो बहुमत नही बल्कि सर्वानुमती से चलता है उसे बेहतर माना गया है. इसीलिए एकरंगी समाज के बजाय बहुरंगी समाज को बेहतर माना गया है.
एक समय पश्चिम के देशों को भी लगा की वो श्रेष्ठ है और सब पर उनका राज होना चाहिए , सबको उनकी बात मानना चाहिए पर बर्बाद होकर सच समझ गए और लिबरल होकर सबके लिए दरवाजे खोल दिया और लोकतंत्र को मजबूती से पकड़ लिया.
अब भी जिनका खुमार बाक़ी है वो भी समझ जाएँगे पर ख़ुद को बर्बाद करके कुछ तो बर्बाद हो भी रहे है. वैसे नेपाल हिंदू राष्ट्र रहा है और देशो की भीख या भारत में चौकिदारी कर ज़िंदा रहने वाले की छवि से मुक्त होने को छटपटा रहा है, इसलिए तय तो करना पड़ेगा की एक चिंतनशील ,विवेकशील , दुनिया से अच्छा मिलता हो वो लेने और ख़ुद के पास जो अच्छा हो वो बाटने वाला विकसित राष्ट्र बनना है या किसी कूप मंडूक संगठन की तानाशाही और क्रूरतापूर्ण बर्बरता वाला राष्ट्र बनना है.
आज ही तक कर लिया तो भविष्य बच जाएगा अन्यथा फिर पछताए होत का वाली कहावत ही हाथ आएगी । फ़िलहाल तो इसी मिले जुले समाज और खुले लोकतंत्र के साथ सैकड़ो साल की ग़ुलामी और अंग्रेजो द्वारा चूस लिए जाने के बावजूद केवल ७० साल में देश दुनिया की हर बड़ी ताक़त के सामने सम्मान से खड़ा है.
बराबरी के साथ ,सैन्य ताक़त , आर्थिक ताक़त और अंतरिक्ष की ताक़त के साथ अगर कुछ और दिनो में कंगाल नही कर दिया गया और बेच नही दिया गया कंगाल करने वाले और बेचने वाले ही एकरंगी निरंकुश तानाशाही का सपना पाल हुए है और अपनी तानाशाही के लिए सुनहरे सपने दिखा रहे है.
ख़ास तरह के लोगों को, पर राम कृष्ण बुद्ध महावीर का देश गांधी नेहरू सुभाष भगत और आज़ाद का देश स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद सरस्वती का देश इनके चंगुल में स्थाई रूप से फँस जाएगा ऐसा लगता तो नही है और थोड़ा भी फँसता है तो भारत की इन महान आत्माओं पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा होगा कि कैसा कमजोर समाज बना गए ये लोग ?
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं) इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि JubileePost या Jubilee मीडिया ग्रुप उनसे सहमत हो…इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है…