Friday - 25 October 2024 - 5:21 PM

निकाय चुनाव: भाजपा-सपा में कड़ी टक्कड़, क्या लोकसभा चुनाव पर होगा असर

जुबिली न्यूज डेस्क

दिल्‍ली नगर निगम चुनाव के परिणामण उत्‍तर प्रदेश पर खास असर डाल सकता है। उत्‍तर प्रदेश में भी निकाय चुनाव होने वाले हैं. इसलिए दिल्‍ली के परिणाम उत्‍तर प्रदेश के बॉर्डर इलाकों में असर डाल सकते हैं। उत्‍तर प्रदेश के बॉर्डर इलाकों में रहने वाले लाखों लोग रोजाना दिल्‍ली काम पर जाते हैं। इनका ज्‍यादातर समय दिल्‍ली में बीतता है। ये लोग देर शाम या रात में घर पहुंचते हैं और सुबह फिर काम से दिल्‍ली निकल जाते हैं। दिल्‍ली का चुनाव परिणाम इन रोजाना जाने वाले लोगों पर असर डाल सकता है। इसलिए दिल्‍ली निगम चुनाव परिमाण उत्‍तर प्रदेश निकाय चुनाव में असर डाल सकते हैं।

अब नगर निकाय चुनाव का काउंट डाउन शुरू हो गया है। इसके लिए कुछ दिनों में अधिसूचना जारी हो सकती है.दरअसल बीजेपी अब तक जहां प्रदेश में होने वाले उपचुनाव में व्यस्त थी, वहीं यूपी बीजेपी के पदाधिकारी गुजरात चुनाव में जिम्मेदारी निभा रहे थे। ऐसे में उपचुनाव को लेकर शुरुआती रणनीति के अलावा मंथन नहीं हो पाया। हालांकि पार्टी के ‘माइक्रो मैनेजमेंट’ के पुराने फॉर्म्युले पर अमल करते हुए सभी सीटों के लिए प्रभारी और सह प्रभारी पहले ही तय कर दिए थे लेकिन अब सीटों का आरक्षण घोषित होने के बाद फाइनल रणनीति पर मंथन और उसे जिलों तक पहुंचाने की बारी है। मेयर की सीटों के लिए जो आरक्षण घोषित हुआ है, उसको देखते हुए भी चर्चा बैठक में होगी।

कहने को तो मात्र एक लोकसभा और दो विधानसभा सीट के उपचुनावों के नतीजे हैं लेकिन तीनों ही सीटों का जनादेश, सभी दलों को बड़ा संदेश देने वाला है। चाहे सत्ताधारी भाजपा हो या फिर मुख्य विपक्षी पार्टी सपा, दोनों ने ही उपचुनाव में एक-दूसरे को बड़े झटके दिए हैं। नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे उपचुनाव के मैदान से दूर रही बसपा और कांग्रेस के लिए तो निकाय चुनाव ही नहीं लोकसभा चुनाव की राह भी और कठिन होती दिख रही है।

उपचुनाव का जनादेश सभी दलों को बड़ा संदेश

80 लोकसभा और 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा का ही दबदबा रहा है। चाहे लोकसभा का चुनाव रहा हो या फिर विधानसभा का, भाजपा ही सत्ता में वापसी करती रही है।चूंकि उपचुनाव से बसपा और कांग्रेस दूर रही इसलिए सीधी लड़ाई में भाजपा और सपा अपनी-अपनी जीत दर्ज कराकर नगरीय निकाय और लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा संदेश देना चाहती थी। इसके लिए सत्ताधारी भाजपा और सपा ने उपचुनाव में पूरी ताकत लगाई। भाजपा जहां सपा के कब्जे वाली मैनपुरी लोकसभा और रामपुर विधानसभा सीट पर अबकी जीत दर्ज कराकर यह संदेश देना चाहती थी कि उसकी डबल इंजन की सरकार के बेहतर कामकाज से भविष्य के चुनाव में भी विपक्ष कहीं टिकने वाला नहीं है वहीं सपा अपनी इन दोनों सीटों को बरकरार रखने के साथ ही खतौली विधानसभा सीट को भाजपा से छीनकर यह बताना चाह रही थी कि चाहे किसान हो या आम जनता सभी सरकार से परेशान हैं।

नतीजों से साफ है कि दोनों ही दल अपने मकसद में कुछ हद तक ही कामयाब हो सके हैं। कांग्रेस और बसपा की गैर मौजूदगी में हुए उपचुनाव की सीधी लड़ाई में सपा-रालोद गठबंधन के हाथों खतौली सीट गंवाना भाजपा के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। मुजफ्फरनगर की खतौली सीट पर जमीनी मुद्दों के दम पर जीत का परचम लहराकर सपा-रालोद गठबंधन यह संदेश देने में कामयाब रहा कि भाजपा के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राह आज भी आसान नहीं है।खतौली के मतदाताओं ने गठबंधन के प्रत्याशी को जिताकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि कहीं न कहीं वे सरकार के कामकाज से खुश नहीं हैं। दूसरी तरफ भाजपा ने सपा की परम्परागत मुस्लिम बहुल सीट रामपुर में पहली बार भगवा फहराकर बता दिया है कि अब मुसलमानों के लिए भाजपा अछूत नहीं है। खासतौर से पसमांदा (पिछड़े) मुसलमान अब उसके साथ हैं। ऐसे में मुस्लिम सिर्फ सपा या बसपा-कांग्रेस के साथ अब नहीं रहने वाले हैं।

गौरतलब है कि रामुपर लोकसभा सीट के उपचुनाव में भी भाजपा ने पहली बार जीत दर्ज कराई थी। मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।बसपा की गैर मौजूदगी में दलितों में सेंध लगाने में भी सपा कामयाब दिख रही है। उपचुनाव के नतीजों से यह संदेश भी मिलता है कि अगर अखिलेश ने पूर्व के विधानसभा चुनाव से लेकर उपचुनाव में भी शिवपाल को अब की तरह तव्वजो दी होती तो शायद तस्वीर कुछ और ही होती।

वहीं खतौली सीट जीतकर सपा ने यह भी बता दिया है कि वह भाजपा को हराने में सक्षम है। पूर्व के उपचुनाव में सपा के हारने पर बसपा प्रमुख मायावती कहती रही हैं कि भाजपा को हराने में सपा सक्षम नहीं है। विदित हो कि आजमगढ़ लोकसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा से हारने पर सपा ने बसपा को जिम्मेदार ठहराया था। अब सपा के जीतने से मुस्लिम समाज के साथ ही अन्य भाजपा विरोधियों का भी उसकी तरफ ही झुकाव बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है जिससे बसपा और कांग्रेस के लिए नगरीय निकाय व लोकसभा चुनाव की राह और कठिन होती दिख रही है।

क्या पश्चिमी यूपी में कमजोर हो रही बीजेपी

एक लोकसभा और दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव ने सपा और बीजेपी के लिए नई परिस्थितियां तैयार कर दी हैं। सपा और RLD खतौली सीट बीजेपी से छीनने की वजह से उत्साहित है। वहीं मैनपुरी लोकसभा में डिंपल यादव की बड़ी मार्जिन से जीत ने सपा के कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने का काम किया है। हालांकि बीजेपी के खाते में पहली बार रामपुर विधानसभा की सीट गई है। पार्टी के लिए यह सफलता है लेकिन पश्चिमी यूपी की खतौली सीट पर हार पार्टी के लिए चिंता की बात है। ये सीट बीजेपी से छीनी है तो इसे पश्चिमी यूपी में बन रहे नए सियासी समीकरण और पार्टी के लिए कमजोर होती जमीन की आहट के तौर पर भी देखा जा सकता है। हालांकि पार्टी के एक पदाधिकारी का कहना है कि एक सीट पर उपचुनाव के नतीजे से नगर निकाय चुनाव को नहीं जोड़ा जा सकता लेकिन इतना तय है कि पार्टी के रणनीतिकारों के लिए यह चिंता की बात है।

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शिवपाल के सपा में जाने से बीजेपी मुश्किल में

पार्टी की एक चिंता अखिलेश और शिवपाल सिंह यादव के साथ आने की भी है. उससे पहले सपा से दूरी बनाने वाले शिवपाल ने नगर निकाय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी लेकिन मैनपुरी चुनाव के बाद अब शिवपाल पूरी तरह सपा के हो चुके हैं। ऐसे में बीजेपी को जमीनी स्तर पर इस स्थिति का भी सामना करना है। जाहिर है पार्टी की रणनीति इन बातों को ध्यान में रखकर तैयार की जाएगी।

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