Tuesday - 5 November 2024 - 4:46 AM

हत्या के दोषी ने सुप्रीम कोर्ट से लगाई गुहार, जानिए क्या कहा…

जुबिली न्यूज डेस्क 

स्वामी श्रद्धानंद, जो संपत्ति के लिए अपनी पत्नी की हत्या करने के मामले में दोषी है और उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. उसने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से अपनी रिहाई के लिए गुहार लगाई और कहा राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों के साथ समानता की मांग की, जिन्हें हाल ही में रिहा किया गया था.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक श्रद्धानंद के वकील वरुण ठाकुर ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष दलील दी कि दोषी को हत्या के लिए एक भी छूट या पैरोल के बिना आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और वह पहले ही 29 साल जेल में बिता चुका है, यहां तक ​​कि एक दिन की पैरोल भी नहीं ली है.

राजीव गांधी की हत्या के सभी दोषी रिहा

अधिवक्ता वरुण ठाकुर ने शीर्ष अदालत के समक्ष तर्क दिया कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के सभी दोषी 30 साल की कैद के बाद पैरोल पर रिहा कर दिए गए हैं, श्रद्धानंद के वकील ने कहा कि ‘यह समानता के अधिकार के उल्लंघन का एक उत्कृष्ट मामला है’. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ सुनवाई के लिए याचिका को जल्द सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई. जल्द सुनवाई की अपनी अर्जी में ठाकुर ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की उम्र 80 साल से ज्यादा है और वह मार्च 1994 से जेल में है. मौत की सजा के दोषी के रूप में, उसे तीन साल के लिए बेलगाम जेल के एकांत कारावास में रखा गया था और वह कई बीमारियों से भी पीड़ित था.

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स्वामी श्रद्धानंद ने की थी पत्नी की हत्या

मैसूर के एक पूर्व दीवान सर मिर्जा इस्माइल की पोती शकरेह ने 21 साल के अपने पति अकबर खलीली, जो ऑस्ट्रेलिया और ईरान में भारत के पूर्व दूत थे, को तलाक देने के एक साल बाद 1986 में श्रद्धानंद से शादी की थी. यह अपराध शकरेह की 600 करोड़ रुपये की संपत्ति हड़पने के लिए किया गया था, जिसे अप्रैल-मई 1991 में किसी समय नशीला पदार्थ देकर जिंदा दफन कर दिया गया था. उसके शव को कब्र खोदकर निकाला गया और 30 अप्रैल, 1994 को श्रद्धानंद को गिरफ्तार कर लिया गया. साल 2000 में एक ट्रायल कोर्ट ने श्रद्धानंद को मौत की सजा सुनाई. 2005 में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सजा की पुष्टि की. श्रद्धानंद की अपील पर, सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में उसकी मौत की सजा को ‘बिना किसी छूट के आजीवन कारावास’ में बदल दिया था.

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