देश, काल और परिस्थितियां नित नये रूप में परिवर्तित हो रहीं है। सकारात्मकता से कहीं अधिक नकरात्मकता का बोलबाला हो रहा है। बल के घमण्ड से सत्ता कायम करने की होड लगी है।
गांव, गली और गलियारों से लेकर मुहल्लों, मुकामों और महानगरों तक में इसके ताजा उदाहरण देखने को मिल रहे हैं। जनबल, धनबल और सत्ताबल के आधार पर जुल्म की दास्तानें खुलेआम लिखी जा रहीं हैं।
बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने एक पत्रकार सम्मेलन में सीबीआई अधिकारियों के व्दारा उनके विरुध्द कार्यवाही करने पर कथिततौर पर सरेआम धमकी देने का प्रकरण सामने आया है जिसमें वे कह रहे हैं कि सीबीआई अधिकारियों के पास मां और बच्चे नहीं है, क्या उनके कोई परिवार नहीं हैं, क्या वे हमेशा सीबीआई अधिकारी रहेंगे, क्या वे सेवानिवृत्त नहीं होगे।
इस तरह की शब्दावली का प्रयोग करते हुए जब उपमुख्यमंत्री की गरिमा से लालू यादव के बेटे ने व्दारा धमकी दी जा सकती है तब आम आवाम के आपराधिक हौसले तो सातवें आसमान पर होंगे ही। यही कारण है कि बिहार में खुलेआम गोलीबारी की घटनाओं से लेकर आपराधिक वारदातें अंजाम तक पहुंच रहीं है।
असामाजिक घटनाओं की निंदा करने वाले भी दलगत खेमों के सिपाहसालारों की तरह ही मानवता का परचम फहराते हैं। जहां टुकडे-टुकडे गैंग के साथ कांग्रेस, बाममोर्चा सहित अनेक दल खडे होकर उनके राष्ट्र विरोधी कृत्यों को बच्चों की नादानी करार देने लगते हैं वहीं जातिगत समीकरणों के आधार पर अनेक क्षेत्रीय दलों के नारे बुलंद होने लगते हैं।
अधिकारियों का एक बडा तबका सजातीय मानसिकता का शिकार होकर उन्हें संरक्षण देने लगता है। ऐसे कृत्यों के पीछे एक सोची समझी दूरगामी योजना काम कर रही है, जिसे सीमापार से भरपूर सहयोग और सहायता मिलती है। खुराफाती तत्वों का ईमान चांदी के सिक्कों के तले कब का दम तोड चुका है। ऐसे लोगों को पाकिस्तान सहित अनेक मुस्लिम राष्ट्रों से धर्म के प्रचार-प्रसार के नाम पर भारी-भरकम बजट मुहैया कराया जा रहा है।
वर्तमान घटनाक्रम का विश्लेषण करें तो जहां देश की आर्थिक विकास दर ब्रिटेन को पछाडकर विश्व की पांचवी पायदान पर पहुंच गई है, वैश्विकस्तर के अनेक संगठनों में भारत की गरिमा नित नई ऊंचाइयां छू रही है, औद्योगिक उत्पादनों से लेकर खाद्यान्नों की पैदावार तक में बढोत्तरी हुई है, निर्यात के नये सोपान खुले हैं वहीं देश में आंतरिक कलह पैदा करने वालों के हौसलों को राज्य सरकारों की ढुलमुल नीतियों ने बढावा ही दिया है।
बिहार के कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने तो सार्वजनिक रूप से अपने विभाग को चोर और स्वयं को चोरों का सरदार घोषित कर दिया है। ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी राज्य के मंत्री ने वास्तविक स्थिति का सार्वजनिक खुलासा किया है।
पारदर्शितता को स्थापित करते हुए उन्होंने विभाग के आन्तरिक हालातों से आम नागरिकों को अवगत कराया है। इस घोषणा के बाद भी बिहार के कुर्सी पकड मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शर्म नहीं आई बल्कि वे स्वयं को देश का प्रधानमंत्री बनता देखने लगे, उसी अंदाज में छोटे राज्यों को विशेष दर्जा देने की बात करने लगे, देश के सत्ता विरोधी खेमे का मुखिया बनने की जुगाड करने लगे। बेशर्मी की हद से गुजर जाने के बाद ही ढीढता का झंडा ऊंचा किया जा सकता है और वही हो रहा है।
वहीं दूसरी ओर महिलाजनित अपराधों में तो बाढ सी आ गई है। इन अपराधों में मुस्लिम समाज के असामाजिक तबके का योगदान बेतहाशा बढता जा रहा है। देश में पहले आक्रान्ताओं ने गैर मुस्लिम महिलाओं को जबरन गुलाम बनाया और औलादों की फौज खडी कर दी। यह क्रम गुलामी के दौर में खुलेआम चलता रहा। स्वाधीनता के बाद संविधान में विभिन्न व्यवस्थाओं को देकर उस जुल्म को कानून के दावपेंचें में फंसा दिया गया। तिरंगे की छांव में मनमानियों को खुली छूट मिल गई।
गणतंत्र के शुरूआती दौर में लुके छिपे ढंग से गैर मुस्लिम बच्चियों, बालिकाओं और युवतियों को जाति छुपाकर बहलाया-फुसलाया जाता रहा। समय के साथ गुण्डागिरी और राजनैतिक संरक्षण ने लव जेहाद को खुलकर हवा दी गई। स्कूली छात्राओं से लेकर कामकाजी महिलाओं तक को शिकार बनाया गया। जाल में फंसाकर पहले शारीरिक संबंध बनाये गये, अश्लील वीडियो और फोटो तैयार किये गये, फिर इन्हीं की दम पर ब्लैकमेल करके धर्म परिवर्तन कराया गया। इस तरह की घटनाओं को जीवन जीने की आजादी का नाम दिया जाता रहा जिसे अनेक राजनैतिक दलों ने तुष्टीकरण के आधार पर खुलकर समर्थन दिया।
अपराधियों में कानून का डर समाप्त करने में जहां राजनैतिक दलों का भरपूर योगदान रहा है वहीं सजातीय अधिकारियों ने भी महती भूमिका का निर्वहन किया है। समय के साथ अपराधियों के हौसले बुलंद होते चले गये। राष्ट्र विरोधी षडयंत्र करने वालों ने जुनूनी युवाओं के खतरनाक गिरोह तैयार कर के एक चुस्त नेटवर्क तैयार कर लिया। कानून की धाराओं के साथ खेलने वाले माहिरों का जत्था इन गिरोहों के संरक्षण हेतु नियुक्त किया गया। सीमापार से आने वाले हवाला से पैसों की आमद तेज की गई और आज खुलेआम घरों में घुसकर जुल्म किया जा रहा है।
पेट्रोल डालकर बच्चियों को जलाया जा रहा है, बलात्कार करके पेडों पर लटकाया जा रहा है, सरेआम अपहरण करके मनमानियां की जा रहीं हैं। यह सारा जुल्म आक्रान्ताओं की तरह गैर मुस्लिम परिवारों पर हो रहा है। ज्यादा हायतोबा होने के बाद कानून व्यवस्था को सम्हालने वाले जिम्मेवार लोग, अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का स्थानांतरण या फिर लाइन अटैच करके अपने कर्तव्यों पर परायणता का दमगा चमकाने लगते हैं। झारखण्ड के दुमका में नईम, शाहरूख, अरमान अंसारी, रांची में अंसारी, फिरदौस, जमील, तौफीर, सुहैल, लखीमपुर में सौहेल, जुनैद, हफजुरहमान, करीमुद्दीन, आरिफ, यूसुफ जैसे अनगिनत आरोपियों के हौसले बुलंद हैं। घरों में घुसकर, राह चलते, स्कूलों के अंदर, सार्वजनिक स्थानों पर इस तरह के जुल्म खुलकर हो रहे हैं।
गैर मुस्लिम बच्चियों के साथ जुल्म करने वालों को कानून का डर जाता रहा है तिस पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री इस तरह की घटनाओं को साधारण मानते हैं। जुल्म के चाबुक से इस्लाम के प्रचार-प्रसार का यह तरीका पूरी दुनिया में एक साथ लागू किया जा रहा है। संसार के लगभग सभी आतंकी संगठन पूरी तरह से इस्लाम के झंडे के नीचे फलफूल रहे हैं।
इस्लाम की परिभाषाओं में खासा बदलाव किया जा रहा है। अतीत गवाह है कि सन् 1989 में ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह रुहोल्ला खुमैनी ने सोवियत संघ के आखिरी नेता गोर्बाचेव को एक पत्र लिखा था, जिसे लेकर एक विशेष प्रतिनिधि मण्डल मास्को गया था। इस्लाम अपनाने की सलाह देने वाले इस पत्र में खुमैनी ने लिखा था कि कम्युनिज्म की जगह अब दुनिया के राजनैतिक ऐतिहासिक संग्रहालय के अंदर है। वक्त की नजाकत को देखते हुए इस्लाम अपना लो, सारी मुश्किलें खत्म हो जायेंगी।
इस तरह के पत्रों से भयावह स्थिति का डर दिखाने, उसके निजात का एकमात्र रास्ता इस्लाम को बताने और फिर समस्या के समाधान में योगदान का आश्वासन देने के प्रयास हमेशा से ही होते रहे हैं परन्तु आक्रान्ताओं की तरह मनमानियों का व्यवहारिक स्वरूप जिस तरह से देश-दुनिया के सामने आ रहा है उससे व्यवस्था, सौहार्द और शान्ति की स्थापना का निकट भविष्य में होना कठिन ही प्रतीत हो रहा है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।