- पौराणिक स्वर्गद्वार का नाम बदल, कर दिया लक्ष्मणघाट..
- पुराणों में स्वर्गद्वार को कहा गया है अयोध्या का छोर …
ओम प्रकाश सिंह
अयोध्या। उत्तर प्रदेश में राजकीय स्तर पर स्थानों का नाम बदलने का उन्माद चल रहा है। इसी उन्माद की चपेट में अयोध्या की पहचान भी आ गई है। अयोध्या की पहचान के साथ की गई दृष्टता कोई सामान्य गलती नहीं है बल्कि यह अयोध्या के पौराणिक पहचान से जुड़ी है।
प्रदेश की योगी सरकार का दावा है कि वह सांस्कृतिक महत्व के स्थानों का गौरव पुनर्स्थापित कर रही है जिसके चलते उनके पुराने नाम अधिकृत किये गए हैं। लेकिन रामनगरी में तो नाम बदलने की इस मुहिम की आड़ में नगर की पौराणिक पहचान ही बदल दी गई। पुराणों में अयोध्या के प्रथम छोर को स्वर्गद्वार कहा गया है। इसके प्रमाण कई पुराणों व साहित्यों में मिलते हैं।
मालूम हो कि अयोध्या नगर निगम के अंतर्गत वार्डों का परिसीमन करके नए नाम निर्धारित किये गए हैं जिसमे से एक वार्ड स्वर्गद्वार का नाम परिवर्तित करके लक्ष्मणघाट कर दिया गया है। जो कि ऐतिहासिकता एवं धार्मिकता के लिहाज से उचित नही है स्वर्गद्वार जिसे अयोध्या नगरी के प्रारंभिक रूप में देखा जाता है। यदि अयोध्या के प्रारंभ को देखे तो उत्तर में सर्वप्रथम स्वर्गद्वार का होना आज की नही बल्कि आदि काल से ही पौराणिक मान्यता एवं साक्ष्य में 18 पुराणों में से एक स्कन्द पुराण में बताया गया है की सरयू जल धारा से उत्तर में 636 धनुष में स्थित स्वर्गद्वार तीर्थ स्थित है।
पुराण में लिखा है कि सहस्रधारा तीर्थ से छ सौ छत्तीस धन वा पूर्व श्री सरयू जल में में यह स्वर्गद्वार तीर्थ है। सर्व प्रथम यह तीर्थ सरयू जल में प्रकट हुआ। इस तीर्थ के समान कोई तीर्थ न हुआ न होगा।
इस तीर्थ में स्नान करने से मनुष्यों का पुनर्जन्म नही होता है। ऐसा मुक्ति दायक एक ही मुख्य तीर्थ है। यहीं से श्री राम चन्द्र जी और राजा हरिश्चन्द्र जी अयोध्यापुरी का उद्धार कर मनुष्यों को दिव्यदेहि बनाकर अपने साथ स्वर्ग धाम को ले गए। इसी से इस तीर्थ का नाम स्वर्गद्वार है। चंद्रमा ने भी इस जगह तीर्थ यात्रा करके अपनी मनोकामना पूर्ण की थी , वैसे ही भावयुक्त होकर यात्रार्थी यात्रियों को विधियुक्त यात्रा करनी चाहिए।
अयोध्या के सबसे प्राचीन मुहल्ले में से एक स्वर्गद्वार में ही अयोध्या में उपस्थित सप्तहरी में से अधिकतम दो विष्णुहरि एवं चंद्रहरी उपस्थित होने के साथ श्री राम जी के पुत्र महराज कुश द्वारा स्थापित नागेश्वरनाथ जी का भव्य मंदिर भी उपस्थित है। जिसका साक्ष्य शास्त्रों में वर्णित है कि ‘स्वर्गद्वारे नरः स्नात्वा दृष्टवा नागेश्वरं शिवम । पूजयित्वा च विधिवत सर्वान कामन्वप्यूनुयात ।
इसके अलावा प्रसिद्ध कालेराम मंदिर (विष्णुहरि ) , त्रेतानाथ , हनुमत सदन, कटारी मंदिर , वामन जी , गौहई धाम , विश्वकर्मा मंदिर , नेपाली मंदिर , प्रजापति मंदिर अड़गड़ा मस्जिद आदि पौराणिक पीठ के साथ प्राचीन तीर्थ पुरोहितों का निवास स्थान इसी स्वर्गद्वार में उपस्थित होने के कारण यहां की प्राचीनता को पुष्ट करता है ।
बारहवीं शताब्दी में भी अयोध्या में सिर्फ पांच मंदिरों का वर्णन मिलता है जिसमे से दो स्वर्गद्वार का चंद्रहरी एवं धर्महरी यहीं पर स्थित हैं । पंद्रहवीं शताब्दी के लगभग तुलसीदास जी द्वारा लिखित रामचरित मानस का भी कुछ अंश स्वर्गद्वार के घाट पर लिखने का प्रमाण मिलता है ।
वर्तमान काल मे स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात की बात करें तो पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद भी यह मुहल्ला स्वर्गद्वार ही रहा इसके स्वरूप से कोई छेड़छाड़ नही की गई । 1995 में निकाय के नए परिसीमन में स्वर्गद्वार से ही अलग नए वार्ड लक्ष्मनघाट को बनाया गया और अस्तित्व में आया ।नगर निगम गठित होने के बाद अयोध्या के पंद्रह वार्डों में भी स्वर्गद्वार मुहल्ला रहा परंतु कुछ दिन पूर्व हुए नए परिसीमन में स्वर्गद्वार का ऐतिहासिक धार्मिक वार्ड का नाम बदलकर लक्ष्मनघाट कर दिया गया जो सर्वथा उचित नही है ।
अयोध्या के स्वर्गद्वार मुहल्ले को यूनेस्को की टीम ने हेरिटेज के लिए चिन्हित किया है क्योंकि यहां अति प्राचीन स्थल एवं अनेक ऐतिहासिक धरोहर होने का प्रमाण मिला है। स्वर्गद्वार अयोध्या की धार्मिक पहचान का मुख्य स्थल है।
स्वर्गद्वार का हेरिटेज स्ट्रक्चर पुनः स्थापित करने के लिए शासन द्वारा प्रस्ताव मांगा गया था। भारतीय परंपरा रही है कि कुछ नया बनाना है तो पुराने से बेहतर बने लेकिन नाम बदलने के खेल में अयोध्या नगरनिगम की प्रशासनिक व्यवस्था ने उल्टा रुख अपना लिया। नाम बदलने के निर्णय के खिलाफ शिवम मिश्र सहित सैकड़ों लोगों ने प्रमुख सचिव नगर विकास को पत्र भेजकर विरोध जताया है। सोशल मीडिया पर भी हजारों लोगों ने इस निर्णय की खिलाफत कर वार्ड का नाम स्वर्गद्वार करने की मांग किया है।