लखनऊ। विश्व के हॉकी में ड्रिबलिंग और रिवर्स फ्लिक के लिए विश्वविख्यात ओलंपियन मोहम्मद शाहिद की सातवीं पुण्यतिथि पर उनसे जुड़ी कई यादें ताजा हो गयी।
हजारों प्रशंसकों को गममीन छोड़कर दुनिया से जाने वाले मो.शाहिद के बारे में लखनऊ के पूर्व हॉकी ओलंपियन व बड़े खिलाड़ियों जैसे सैयद अली और सुजीत कुमार की माने तो उनके जैसा खिलाड़ी दोबारा होना अब शायद नामुमकिन है।
मास्को ओलंपिक 1980 में भारत को हॉकी में स्वर्ण पदक दिलाने वाले मोहम्मद शाहिद जिंदादिल आदमी थे। शाहिद का जन्म 14 अप्रैल 1960 को वाराणसी के अर्दली बाजार में एक सामान्य परिवार में हुआ था। बचपन से ही कड़ी मेहनत के बाद वह लखनऊ स्पोर्ट्स हास्टल में चयनित हुए थे। इसके बाद उन्होंने मुड़कर नहीं देखा।
वर्ष 1979 में पहली बार शाहिद भारतीय जूनियर हॉकी टीम में चुने गए और इसी साल सीनियर हॉकी टीम में भी चुन लिए गए। बनारस की तंग गलियों से निकलले इस लड़के पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया के खिलाड़ी खिलाड़ी खौफ खाते थे। मोहम्मद शाहिद से उस दौर के ज्यादातर हॉकी प्रेमियों की पहचान रेडियो के दौर की थी।
20 साल की उम्र में मास्को ओलंपिक-1980 की स्वर्ण पदक विजेता भारतीय टीम में थे शामिल रेडियो पर भी शाहिद, शाहिद शाहिद की आवाज गूंजती थी। उस समय देश-विदेश के हर हॉकी मैच की कमेंट्री रेडियो पर होती थी। उनके खेल में योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया। वर्ष 1979 से 1989 में विपक्षी उनके सामने आने से डरते थे। हॉकी में रिवर्स फ्लिक के वो महारथी थे।
हॉकी के नौनिहालों ने मो.शाहिद को अर्पित किए श्रद्धासुमन
लखनऊ। लखनऊ हॉस्टल से हाकी के गुर सीख कर देश-विदेश की धरती पर तहलका मचाने वाले और भारत सरकार से अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री से सम्मानित मोहम्मद शाहिद को उनकी सातवीं पुण्यतिथि पर गोमतीनगर के मोहम्मद शाहिद सिंथेटिक हॉकी स्टेडियम में याद कर श्रद्धांजलि दी गयी।बुधवार को राजधानी में तेज बारिश के बीच खिलाड़ियों के साथ हाकी कोच रंजीत ने मोहम्मद शाहिद को याद करते हुए उनके चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। कोच रंजीत ने हाकी के प्रशिक्षुओं को मोहम्मद शाहिद के बारे में विस्तार से जानकारी दी।