जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना वायरस आने के बाद से दुनिया का नक्सा ही बदल दिया। इस महामारी ने दुनिया के कई नियम कानून को बदल कर रख दिया। लोगों के रोज के लाइफ स्टाईल को भी पूरी तरह से चेंज कर दिया। इसी संकट के बीच दुनियाभर की कंपनियों ने अपने कर्मचारियों ने वर्क फ्रॉम होम कराना शुरु कर दिया। क्योकि इंसान काम नहीं करेंगा तो खाएगा कहा से ऐसे में लॉकडॉउन के बीच कंपनियों के संचालन में काफी मदद मिली। अब जबकि महामारी का असर कम हो गया है, ज्यादातर कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम को खत्म करके पहले की तरह अपने ऑफिस खोलने शुरू कर दिए है। कुछ कंपनियों के दफ्तर पूरी तरह खुल चुके हैं तो कुछ मल्टीनेशनल कंपनियों के दफ्तर खुलने की प्रक्रिया में हैं। हालांकि इस बीच नीदरलैंड एक ऐसा देश है जो अपने यहां वर्क फ्रॉम होम को कानूनी अधिकार बनाने की प्रक्रिया शुरू कर चुका है।
नीदरलैंड वर्क फ्रॉम होम को बना रहा कानूनी अधिकार
आपको बता दे कि नीदरलैंड की संसद ने वर्क फ्रॉम होम को कानूनी अधिकार बनाने का फैसला ले सकती है। पिछले हफ्ते संसद के निचले सदन ने इस जुड़ा हुआ एक प्रस्ताव पारित किया था। अब इस प्रस्ताव को देश के ऊपरी सदन यानी सीनेट की मंजूरी मिलने का इंतजार किया जा रहा है। वहीं नीदरलैंड एक ऐसा देश है जहां कोरोना महामारी के पहले भी वर्क फ्रॉम होम का कल्चर प्रचलन में था। यूरोस्टैट के आंकड़ों के मुताबिक, नीदरलैंड में कोरोना से पहले भी 14% लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे।
वर्क फ्रॉम होम की डिमांड को कंपनी नहीं कर सकती खारिज
सन 2020 में कोरोना की दस्तक के बाद से इसमें रिकॉर्ड उछाल दर्ज किया गया है। आपको बता दें कि नीदलैंड में फिलहाल जो कानून लागू है उसमें कपनियों को यह अधिकार है कि अगर वे चाहें तो वर्क फ्रॉम होम के कर्मचारियों की रिक्वेंस्ट को खारिज कर सकती हैं। पर, अगर नया कानून लागू हो गया तो कंपनियां ऐसा नहीं कर सकेंगी। उन्हें कर्मचारियों को बताना होगा कि वे वर्क फ्रॉम होम की डिमांड को क्यो खारिज कर रही हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो नीदरलैंड की ग्रोएनलिंक्स पार्टी की सेना माटौग इस नए कानून के बारे में बताती हैं कि इस बिल के पास होने से कर्मचारियों को जीवन में काम और परिवार का बैलेंस बनाने में मदद मिलेगी। माटौग इस बिल को तैयार करने वालों में शामिल रही हैं।
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आइए जानते है अपने देश में वर्क फ्राम होम को लेकर क्या है नियम
भारत
दरअसल लास्ट इयर जनवरी में भारत सरकार की ओर से एक स्टैंडिंग ऑर्डर जारी किया गया था। जिसमें कहा गया था कि नियोक्ता और कर्मचारी आपसी समझौते के आधार पर काम के घंटे और सेवा की दूसरी शर्तें तय करें। सरकार के इस कदम को उस समय वर्क फ्रॉम होम की दिशा में उठाया गया एक सांकेतिक कदम माना गया क्योंकि उस समय देश में कोविड के कारण अधिकांश कंपनियों के कर्मचारी घर से ही काम कर रहे थे। खबरों की माने तो सरकार वर्क फ्रॉम होम को लेकर एक लीग फ्रेम वर्क बना सकती है जिसे वर्क फ्रॉम होगा और हाईब्रिड वर्किंग पर लागू किया जा सके। हालांकि सरकार की ओर से इस बारे में कोई टाइमलाइन नहीं तय की गई है। ऐसे में देश में अब भी वर्क फ्राम होम को लेकर कोई बाध्यकारी कानून लागू नहीं है। पर, वर्क फ्रॉम होम के तहत लिए जाने वाले काम सरकार और कंपनियों दोनों की मान्यता देंती हैं। पर सरकार ने अब तक इसके लिए कोई स्पष्ट नियम नहीं बनाए हैं। हो सकता है आनें वाले समय में सरकार इस मामले में को लेकर कोई नियम बना सकती है।
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