यशोदा श्रीवास्तव
राजस्थान के उदयपुर में कांग्रेस के तीन दिवसीय चिंतन शिविर का कांग्रेस जनों पर क्या और कितना प्रभाव होगा इसके प्रकटीकरण में वक्त लगेगा लेकिन इसके पहले साइड इफेक्ट दिखने लगा।
जब चिंतन शिविर मे युवाओं को जोड़ने और कांग्रेस के बुजुर्गो के अनुभवों का अनुसरण करने की सीख दी जा रही थी तभी कांग्रेस के एक युवा नेता और एक बुजुर्ग नेता कांग्रेस से विदाई की तैयारी कर रहे थे।
चिंतन शिविर संपन्न होते ही गुजरात के युवा नेता हार्दिक पटेल और पंजाब के बुजुर्ग नेता सुनील जाखड़ ने पार्टी को सलाम कर लिया। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद एक से एक कांग्रेस के युवाओं का हाथ का साथ छोड़ना कांग्रेस के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं है।
राहुल गांधी जब कहते हैं कि कांग्रेस में डरकर रहने वालों की जगह नहीं है,ऐसे लोग जहां जाना चाहे जा सकते हैं,तो यह अनायास नहीं है। हां! राहुल की यह नसीहत नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती है जबकि पार्टी छोडने वालों की कांग्रेस पर लगाए गए तोहमत मीडिया की सुर्खियां बन जाती है।
दरअसल नेताओं के पार्टी छोड़ने जैसी घटनाएं अचानक नहीं होती। हकीकत यह है कि पार्टी नेतृत्व को कहीं न कहीं से यह भनक लग जाती है कि पार्टी का फलां नेता कभी भी साथ छोड़ सकता है और यह भी कि वह भाजपा या अन्य पार्टी के संपर्क में है,ऐसे में उस नेता की ओर ध्यान दिया जाना लगभग बंद कर दिया जाता है। उसे निकाला नहीं जाता,न उसके खिलाफ कोई कार्रवाई ही की जाती,अलवत्ता पार्टी में रहते हुए ही उसकी ऐसी उपेक्षा की जाती है कि वह खुद ही बोरिया बिस्तर बांध लें।
शायद पार्टी से दगा करने वाले नेताओं को किनारे लगाने का कांग्रेस का यही तरीका हो। हार्दिक पटेल गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े युवा नेता की छवि रखते हैं।
]2019 में उन्होंने गुजरात की भाजपा और केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ करीब पांच लाख पाटीदार समाज की रैली कर भाजपा को बड़ी चुनौती दी थी। इस रैली के बाद परिस्थितियां बनी और हार्दिक पटेल कांग्रेस में दाखिल हो गए।
मौजूदा समय में वे गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष थे। मात्र दो ढाई साल पहले पार्टी में दाखिल हुए किसी सख्श को इतना बड़ा पद देना, पार्टी में उपेक्षा तो नहीं ही कहा जा सकता लेकिन इस पद पर रहते हुए हार्दिक उपेक्षित थे।
हार्दिक पटेल का कांग्रेस से अलग करने की पटकथा जिसने भी लिखी,बहुत सोच समझकर व पूरी तैयारी के साथ लिखी। राजनीति के मौजूदा दौर में हर कोई कांग्रेस के साथ खड़ा नहीं रह सकता। ऐसा व्यक्ति तो कत्तई नहीं जिसके ऊपर कोई मुकदमा या एफ आई आर हो।
हार्दिक पटेल के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का केस चल रहा था। कुछ दिन पहले उनके ऊपर से यह केस हटा लिया गया। जाहिर है गुजरात सरकार के स्तर से यह कार्रवाई दरिया दिली के तहत नहीं,किसी डील के तहत ही हुई होगी। उसके बाद से कांग्रेस के प्रति हार्दिक के सुर बदलने लगे।
उन्हें पार्टी और उसके शीर्ष नेताओं में हजार कमियां दिखने लगी और इसी के साथ उनके भीतर राम भक्ति, राष्ट्र भक्ति, गुजरात भक्ति और अडानी अंबानी की भक्ति सब एक साथ हिलोरें मारने लगा। ऐसा पार्टी छोड़ने के बाद मीडिया में दिए गए उनके बयानों से साफ झलकता है। अंततः उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया। वे अभी कोई पार्टी ज्वाइन नहीं किए लेकिन किस पार्टी में जाएंगे यह बताने की जरूरत नहीं।
कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले हार्दिक पटेल अकेले युवा नेता नहीं हैं। हो सकता है आने वाले दिनों में एक दो और युवा नामचीन चेहरे पार्टी में न रहें जैसा कि राजस्थान, पंजाब और महाराष्ट्र से खबरें आ रही है। हार्दिक पटेल और उनके पहले अन्य युवा नेताओं का कांग्रेस छोड़ने की कहानी एक जैसी है। कांग्रेस पर उनके लगाए आरोपों में दम नहीं है लेकिन पंजाब के वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुनील जाखड़ ने जिस तरह तथ्यपरक ढंग से अपनी बात रखते हुए पार्टी छोड़ी वह कांग्रेस को कुछ सोचने को जरूर मजबूर की होगी।
पंजाब में कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हारी है। उसके मुख्य मंत्री चन्नी और प्रदेश अध्यक्ष सिद्धू भी हारे। इस हार का ठीकरा न तो चन्नी पर फोड़ा गया और न ही सिद्धु पर,सुनील जाखड़ को क्यों निशाना बनाया गया यह बात समझ से परे है। कैप्टन अमरिंदर सिंह को बदलने से लेकर चन्नी को सीएम या सिद्धू को प्रदेश प्रधान बनाए जाने तक के मामले में सुनील जाखड़ की भूमिका सिर्फ खामोशी की थी। सिद्धू और कैप्टन तथा चन्नी और सिद्धू के बीच के विवाद सदैव मीडिया की सुर्खियां बनती थीं, पंजाब को लेकर कांग्रेस के ढुलमुल रवैए की हंसाई होती थी और नोटिस जाखड़ को? कांग्रेस छोड़ते वक्त सुनील जाखड़ ने अपने परिवार और कांग्रेस के पचास सालों के रिश्ते की बड़ी मार्मिक व्याख्या की।
उनके इस बात से असहमति होने की कोई गुंजाइश नहीं है कि उन्हें ऐसे व्यक्ति (तारिक अनवर)के दस्तखत से नोटिस दी गई जिसने सोनिया गांधी को एक विदेशी महिला कहकर पार्टी छोड़ दी थी।
कहना न होगा जहां कांग्रेस छोड़ने वाले अन्य तमाम लोग बे-सिर-पैर का आरोप लगाकर कांग्रेस छोड़ रहे हैं वहीं सुनील जाखड़ ने वाजिब और हृदय स्पर्शी कारणों को बताकर गुडलक कांग्रेस और गुडबाय कांग्रेस बोला। जाखड़ अब भाजपा में हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि 2024 की लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा पंजाब की राजनीति में कैप्टन अमरिंदर और सुनील जाखड़ का भरपूर उपयोग करेगी।
हार्दिक और सुनील जाखड़ और कैप्टेन अमरिंदर के पहले कांग्रेस छोड़ने वाले नामों की लंबी फेहरिस्त है। यूपी में बीजेपी के मौजूदा हुक़ूमत में जितिन प्रसाद पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर हैं।
ये जनाब यूपीए के दस वर्षों की सरकार में केंद्रीय मंत्री थे। विधानसभा चुनाव के पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी। जितिन प्रसाद शाहजहां पुर ब्राम्हण राजघराने के युवराज हैं। इनके पिता स्व जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे। प्रधानमंत्री रहे स्व. राजीव गांधी और स्व. पीवी नरसिंहा राव के राजनीतिक सलाहकार थे। यूं कहिए कि गांधी परिवार के खासमखास थे। जितिन प्रसाद कांग्रेस में बड़ा ब्राम्हण चेहरा थे,जो अब भाजपा के पास है। केंद्रीय उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बीजेपी में शामिल होने तक हरियाणा के प्रभारी रहे लेकिन बतौर प्रभारी हरियाणा कभी गये ही नहीं।
विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त कांग्रेस छोड़ने वाले आरपीएन सिंह भी यूपीए की सरकार में मंत्री थे। चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने उन्हें झारखंड का प्रभारी बनाया था।इसके पहले यूपी के अमेठी राजघराने से गांधी परिवार के खासमखास डा. संजय सिंह और प्रतापगढ़ की राजकुमारी रत्ना सिंह ने भी कांग्रेस छोड़ दी है।
उन्नाव से दो बार कांग्रेस सांसद रहीं अनु टंडन ने पार्टी छोड़ कर सपा ज्वाइन कर ली थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे जगदंबिका पाल ने भी कांग्रेस छोड़ भाजपा ज्वाइन की है।
एक से एक कद्दावर नेताओं के पार्टी छोड़ने को लेकर कांग्रेस क्या सोचती है,यह तो वही जाने लेकिन जो लोग कांग्रेस को सत्ता में न सही,एक मजबूत विपक्ष के रूप में देखना चाहते हैं,वे इससे निराश जरूर हैं। एक आम नागरिक की प्रतिक्रिया काबिले गौर है कि उदयपुर के चिंतन शिविर में जहां सोनिया गांधी कांग्रेस के नेताओं से आवाहन करती हैं कि कांग्रेस ने तमाम नेताओं को बहुत कुछ दिया है,अब वक्त आ गया है कि वे भी पार्टी को कुछ दें वहीं पार्टी नेताओं का हाथ का साथ छोड़ना चिंता का विषय है।