जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
दिल्ली . गाँधी पीस फांउडेशन, दिल्ली में आयोजित एक राष्ट्रीय संवाद में भारत के कई राज्यों से जुटे हुए औद्योगिक व सीविल सोसायटी प्रतिनिधि, राजनीतिक नेताओं और विचारकों ने एकसाथ डिब्बाबंद खाद्य व पेय पदार्थों में अनिवार्य और विज्ञान समर्थित फ्रंट ऑफ पैक चेतावनी लेबल (एफओपीएल) का समर्थन किया।
उन्होंने एफएसएसएआई से बिना समय गवाए सही निर्णय लेने और लाखों भारतीयों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाले लेबल को अपनाने का आह्वान किया। इस कार्यक्रम में, उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने भी वारनिंग लेबल वाला एफओपीएल पॉलिसी को अपनाने मे अपना समर्थन दिया, जो उनके अनुसार देश के नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करेगा।
पीपल, मानवाधिकार जन निगरानी समिति, सावित्री बाई फुले महिला पंचायत, जल जन जोड़ो अभियान, इम्पैक्ट एंड पालिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट और आईकांगो के सहयोग से किया गया|
वरिष्ठ सांसदों, उद्योग प्रतिनिधियों और सीविल सोसायटी का यह संवाद ऐसे समय हुआ है जब राष्ट्रीय व अन्तर्राष्टीय स्वास्थ्य और पोषण विशेषज्ञ एफएसएसएआई से ‘हेल्थ स्टार रेटिंग’ की बजाय ‘चेतावनी लेबल’ को एफओपीएल के तौर पर लागू करने की मांग कर रहे हैं, जो कई वैज्ञानिक शोध और अध्य्यन पर आधारित है।
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नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -5) के परिणामों को खतरे की घंटी बताते हुए, एम्स के ऋषिकेश डॉ प्रदीप अग्रवाल ने कहा, “भारत जल्द ही मधुमेह और बच्चों में मोटापे की वैश्विक राजधानी बनने का अंवाछनिय उपलब्धि हासिल करने वाला है। देश में सभी प्रकार के एनसीडी तेजी से बढ़ रहे हैं। एम्स द्वारा भारत के चारों कोनों से किए गए एक अवलोकन अध्ययन में पाया गया है कि लोगों को चेतावनी लेबल से सबसे ज्यादा फायदा होगा।”
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) जैसे अति महत्वपूर्ण सर्वेक्षणों के लिए जाने वाले भारत के प्रमुख अनुसंधान और शिक्षण संस्थान, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस) द्वारा हाल ही में किए गए यादृच्छिक नियंत्रण क्षेत्र प्रयोग का हवाला देते हुए, डॉ एसके सिंह ने कहा, “यहां लोगों ने वही बातें कही हैं,जिसकी विज्ञान पुष्टि करता है। स्पष्ट रूप से दिखने वाले, सरल, नकारात्मक चेतावनी लेबल किसी उत्पाद की स्वास्थ्यप्रदता के बारे में जानकारी देंगे और साथ ही साथ खरीद निर्णयों को प्रभावित करेंगे। चेतावनी लेबल ही एकमात्र एफओपीएल थे जिसके कारण स्वस्थ उत्पादों के प्रति उपभोक्ता खरीद निर्णय में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। इसमें पोषण संबंधी जानकारी को सबसे प्रभावी ढंग से प्रसारित किया जा सकता है और जैसा कि हम पिछले साक्ष्यों से जानते हैं, इस संदेश ने हमेशा व्यवहार में बदलाव लाने का काम किया है।”
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इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि श्री अशोक ठाकुर, डायरेक्टर भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (नेफेड) ने कहा कि “पूरी दुनिया देख रही है जब भारत एफओपीएल पर निर्णय लेने वाला है। भारतीयों के स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा क्या चुनना चाहिए, यह चुनने में हम और अधिक समय नहीं गंवा सकते। शीर्ष डॉक्टरों सहित विशेषज्ञों ने पुष्टि की है कि स्पष्ट चेतावनी लेबल उपभोक्ताओं का मार्गदर्शन करने और उन्हें हानिकारक भोजन विकल्प बनाने से बचाने के लिए सर्वोत्तम संभव उपाय होंगे।”
भारत में खाद्य और पेय उद्योग 34 मिलियन टन की बिक्री के साथ दुनिया के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है। अध्ययनों से पता चला है कि भारतीय घरों में – शहरी और ग्रामीण दोनों में, 53% बच्चे सप्ताह में औसतन दो बार से अधिक नमकीन पैकेज्ड फूड जैसे चिप्स और इंस्टेंट नूडल्स का सेवन करते हैं, 56% बच्चे चॉकलेट और आइसक्रीम जैसे मीठे पैकेज्ड फूड का सेवन करते हैं और 49% बच्चे चीनी-मीठे पैकेज्ड पेय का सेवन करते हैं।
विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि इस तरह का सेहत को हानि पहुंचाने वाले आहार किसी भी अन्य जोखिमों की तुलना में दुनिया भर में अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार हैं, और यह मोटापा, मधुमेह और हृदय रोग का एक प्रमुख कारण है।
कार्यक्रम में उपस्थित खाद्य उद्योग के प्रतिनिधियों ने इस तरह के उपाय की आवश्यकता को सही ठहराते हुए, स्वस्थ भोजन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दिखाया।
अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के उपाध्यक्ष श्री शैलेन्द्र दुबे ने कहा, “दुनिया भर में खाद्य उद्योग यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा रहे है कि उनके उत्पाद उपभोक्ताओं के लिए सुरक्षित और स्वस्थ हों। यदि सरकार चेतावनी लेबल अपनाने का निर्णय लेती है, तो हम उस निर्णय के साथ चलने के लिए तैयार हैं। अध्ययनों ने संकेत दिया है कि खाद्य और पेय पदार्थों को स्वस्थ बनाने के लिए सुधार से व्यापार के हित प्रभावित नहीं होते हैं और न ही इससे बेरोजगारी बढ़ती है।”
उनके विचारों को रोहित मोहन, प्रबंध निदेशक, एस्सार बेकरी ने भी दोहराया। उन्होंने उद्योग जगत की प्रतिबद्धता की सराहना करते हुए कहा कि “यह उद्योग के लिए एक जीत की स्थिति है।
उन्होंने कहा, भारत में रिकॉर्ड गति से बढ़ रहा डिब्बाबंद खाद्य उद्योग हमारे देश के लिए एक स्वस्थ खाद्य प्रणाली के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार है। इससे विदेशी बाजारों में हमारे उत्पाद की स्वीकार्यता में भी सुधार होगा और हमारे निर्यात की मात्रा में वृद्धि होगी। लेकिन इन सबसे ऊपर यह हमारे भविष्य के बाजार के स्वास्थ्य और कल्याण को सुरक्षित करेगा।”
देश भर के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं और उपभोक्ता संरक्षण समूहों ने सांसदों को पत्र लिखकर देशवासियों की स्वास्थ्य की भलाई के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की है। कार्यक्रम में तक़रीबन 150 लोग भारत के कई राज्य से शामिल हुए|
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इस कार्यक्रम का आयोजन पीपल, मानवाधिकार जन निगरानी समिति, सावित्री बाई फुले महिला पंचायत, जल जन जोड़ो अभियान, इम्पैक्ट एंड पालिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट और आईकांगो के सहयोग से किया गया|
चिली, ब्राजील, मैक्सिको और अर्जेंटीना जैसे देशों में अपने अनुभव के बारे में बोलते हुए, ग्लोबल हेल्थ एडवोकेसी इन्क्यूबेटर (जीएचएआई) की दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय निदेशक डा वंदना शाह ने कहा, “भारत के पास सबसे प्रभावी डबल ड्यूटी एक्शन में से एक को पेश करने का अवसर है – एक प्रभावी एफओपीएल सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार की दिशा में सक्षम है। चेतावनी लेबल अब तक का सबसे प्रभावी FOP लेबलिंग सिस्टम है। वे उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य के लिये हानिकारक उत्पादों को त्वरित और सरल तरीके से पहचानने में मदद करते हैं और उन्हें खरीदने के लिए हतोत्साहित करते हैं। उदाहरण के लिए चिली में, ‘हाई इन’ ब्लैक अष्टकोणीय आकार के चेतावनी लेबल के परिणामस्वरूप डिब्बाबंद पेय पदार्थों की खरीद में तेजी से गिरावट आई है।”
इस कार्यक्रम में जल जन जोड़ो अभियान के श्री संजय सिंह, फियान तमिलनाडु के श्री डी गुरुस्वामी, इंडियन रोटी बैंक के विक्रम पाण्डेय, डॉ पुलकित माथुर, विभागाध्यक्ष, फ़ूड और न्यूट्रिशन, लेडी इरविन, दिल्ली विश्विद्यालय, फिवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गिरीश गुप्ता, आईकांगो के जेरोनिनिओ अल्मीडा ने इस कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी करके बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण अधिकारों की रक्षा के लिए एफओपीएल पर तत्काल नीति बनाकर लोगो को जागरूक किया जाय| कार्यक्रम की प्रस्तावना श्रुति नागवंशी और संचालन लेनिन रघुवंशी में किया|