जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली. रूस-यूक्रेन युद्ध का असर पेट्रोल-डीज़ल के दामों पर भी पड़ा. भारत के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का दौर चल रहा था तो सरकार भी दामों पर अंकुश लगाए रही लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद सरकार ने तेल कम्पनियों को दाम बढ़ाने की खुली छूट दे दी. तेल कम्पनियों ने रोजाना दाम बढ़ाने का सिलसिला शुरू किया और सिर्फ 16 दिनों में पेट्रोल और डीज़ल पर 10-10 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी कर दी. पेट्रोल-डीज़ल पर की गई इस बढ़ोतरी से तेल कम्पनियों को अपनी तिजोरी भरने की जो आस जगी थी वह महंगाई की मार से टूटी कमर वालों की जेब ने तोड़ दी. दाम बढ़ाकर भी तेल कम्पनियों को कुछ ख़ास हासिल नहीं हुआ लेकिन इतिहास में जो सबक उन्हें पहले नहीं मिला था वह इन 16 दिनों में मिल गया होगा.
इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि पहली अप्रैल से 15 अप्रैल के बीच पेट्रोल की बिक्री में दस फीसदी और डीज़ल की बिक्री में 15.6 फीसदी की गिरावट आ गई. महंगाई की मार से कराह रहे लोगों ने इतना महंगा तेल खरीदने के बाद गाड़ी चलाना कम कर दिया. बहुत ज़रूरत पर ही लोगों ने घरों से निकलना शुरू कर दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि पेट्रोल और डीज़ल की बिक्री में कमी आ गई. सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक बात यह है कि रसोई गैस की खपत में भी 1.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.
पेट्रोल और डीज़ल की तरह ही एलपीजी सिलेंडर पर भी 22 मार्च को 50 रुपये की बढ़ोत्तरी की गई. रसोई गैस पेट भरने के लिए मजबूरी है लेकिन इसके बावजूद दामों में आग लगी तो पेट की आग को पानी डालकर शांत करने की कोशिश की जाने लगी. इसी का नतीजा है कि रसोई गैस की खपत में भी कमी आई है.
तेल कम्पनियाँ हालांकि अगर पहली अप्रैल से 15 अप्रैल के बीच हुई पेट्रोल और डीज़ल की बिक्री की तुलना पिछले साल से करें तो बिक्री में 12.1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है लेकिन जनवरी से अप्रैल के बीच की बिक्री के लगातार आंकड़ों को देखें तो गिरावट आई है. पिछले साल की तुलना में बढ़ोत्तरी की असल वजह सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ जाना है लेकिन अचानक से पेट्रोल-डीज़ल की खपत में कमी आने का सीधा सा मतलब यह है कि वाहन चलाने वालों की जेब ने अब साथ देना बंद कर दिया है.
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