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शिवपाल, बीजेपी और सूत्रों की हकीकत

शबाहत हुसैन विजेता

लखनऊ. 19 अप्रैल को भाजपा की सदस्यता लेंगे शिवपाल यादव. अपने हज़ारों समर्थकों के साथ शिवपाल लेंगे भाजपा की सदस्यता. अमित शाह, जेपी नड्डा और धर्मेंद्र प्रधान की मौजूदगी में बीजेपी में शामिल होंगे शिवपाल : सूत्र

शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य यादव भी भाजपा में शामिल होंगे. : सूत्र

भाजपा शिवपाल यादव और उनके पुत्र आदित्य को देगी बेहद बड़ा और चौंकाने वाला पोर्टफोलियो. : मज़बूत सूत्र

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और जसवंतनगर से समाजवादी पार्टी के विधायक शिवपाल सिंह यादव को लेकर इस तरह की अटकलें तमाम व्हाट्सएप ग्रुप पर टहल रही हैं. इन अटकलों का कोई ओर छोर नहीं है. हर दावे के पीछे सूत्र हैं. यह सूत्र कौन हैं, कहां से हैं, यह बताने वाला कोई नहीं है.

साल 2016 से शिवपाल सिंह यादव वेब मीडिया, सोशल मीडिया और भारतीय जनता पार्टी के लिए हॉट केक बने हुए हैं. 2016 के आख़री महीनों में और 2017 के शुरुआती महीनों में तो चैनलों में शिवपाल सिंह यादव का इंटरव्यू करने की होड़ लगी थी. शिवपाल और अखिलेश में टकराव तेज़ होता जा रहा था. कालीदास मार्ग पर शिवपाल सिंह यादव के दरवाज़े पर समर्थकों की भीड़ जमा थी. शिवपाल के चेहरे वाली टीशर्ट छप गई थीं. मुलायम सिंह यादव चाचा-भतीजे के बीच की जंग को खत्म नहीं करवा पा रहे थे. इसी बीच रामगोपाल यादव ने जनेश्वर मिश्र पार्क में समाजवादी पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर शिवपाल सिंह को प्रदेश अध्यक्ष से हटाते हुए पार्टी से बाहर निकाल दिया था. मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष से हटाकर अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष का ज़िम्मा सौंप दिया था.

यह वह दौर था जब शिवपाल राजनीति के विलेन और अखिलेश बेचारे बन गए थे. अखिलेश को लेकर सियासी गलियारों में इतना सॉफ्ट कार्नर था कि सुनने वाले शायद ताज्जुब करें कि बीजेपी के प्रदेश मुख्यालय में शिवपाल सिंह को बुरा-भला कहा जा रहा था. बीजेपी को भी लगता था कि समाजवादी पार्टी में अखिलेश के साथ बहुत बुरा हो रहा है और शिवपाल ने बेटे जैसे भतीजे की राह में कांटे बिखेर दिए हैं. उस दौर में बीजेपी को भरोसा ही नहीं था कि उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार भी बन सकती है. वजह साफ़ थी कि अखिलेश यादव की सरकार ने पांच साल तक लगातार काम किया था.

 

चुनाव बेहद करीब आ गए और चाचा-भतीजे की जंग खत्म नहीं हुई तो बीजेपी भी चुनाव अभियान में पूरी ताकत से जुट गई. नतीजा आया तो अखिलेश 47 सीटों पर सिमट गए. अखिलेश इस बुरी तरह से हारेंगे किसी को भी कल्पना नहीं थी. इसके बाद बीजेपी को शिवपाल दोस्ती करने लायक लगने लगे. मायावती से खाली कराया गया मकान शिवपाल यादव को दे दिया गया. बीजेपी ने शिवपाल सिंह यादव के मददगार होने के नाटक खूब किये लेकिन उन्हें बीजेपी में शामिल करने के बारे में तब भी नहीं सोचा गया.

पांच साल की जंग के बाद मुलायम सिंह यादव की मध्यस्थता से शिवपाल और अखिलेश फिर करीब आये. शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाज पार्टी की हालांकि ओमप्रकाश राजभर और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के साथ गठबंधन की बात भी हुई थी लेकिन जब अखिलेश खुद चलकर चाचा के घर गए तो चाचा भी पिघल गए. उन्होंने न सिर्फ समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा बल्कि समाजवादी पार्टी को जिताने के लिए जीजान से जुट भी गए.

शिवपाल के समाजवादी पार्टी के करीब आने के बाद समाजवादी पार्टी का ग्राफ जब तेज़ी से ऊपर उठना शुरू हुआ तो बीजेपी ने फिर से शिवपाल की तरफ चारा फेंकना शुरू कर दिया. शिवपाल जब विजयरथ पर मुलायम सिंह यादव की कुर्सी के हत्थे पर बैठे नज़र आये तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर बीजेपी के केन्द्रीय नेताओं तक ने उस तस्वीर को ट्वीट कर शिवपाल सिंह के अपमान का मुद्दा उठाया. बीजेपी शिवपाल के साथ तव सबसे बड़े हितैषी के रूप में खड़ी थी लेकिन तब शिवपाल ने बीजेपी को टका सा जवाब देते हुए समाजवादी पार्टी की सरकार बनाने का दावा किया.

चुनाव परिणाम आया तो ढाई गुना सीटें बढाकर भी समाजवादी पार्टी सत्ता से बहुत दूर हो गई और बड़ी संख्या में सीटें खोकर भी बीजेपी फिर से सत्ता में आ गई. समाजवादी पार्टी ने 111 सीटें जीतीं और अखिलेश का नेता प्रतिपक्ष बनना तय हो गया. विधायक दल का नेता चुने जाने के लिए बैठक बुलाई गई तो अखिलेश ने चाचा शिवपाल को न्योता नहीं भेजा. शिवपाल को यह अपमान लगा. अपमान था भी क्योंकि शिवपाल तो समाजवादी पार्टी के ही विधायक थे. सहयोगी दलों की बैठक में शिवपाल को बुलाने की बात करना ही गलत था क्योंकि शिवपाल गठबंधन से नहीं समाजवादी पार्टी से चुनाव जीते थे.

इस बार गलती सरासर अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी की थी. इस बार शिवपाल सिंह यादव की नाराजगी भी बिल्कुल सही थी. जिसने समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में रात-दिन एक कर दिया उसमें उनका इस्तेमाल टिश्यू पेपर की तरह से किया गया. शिवपाल सिंह यादव ने विधायक दल की बैठक वाले दिन ही इटावा में एक कार्यक्रम में अपना दर्द व्यक्त किया मगर समाजवादी पार्टी को वह दर्द वाजिब नहीं लगा. इसके बाद शिवपाल ने दिल्ली जाकर मुलायम सिंह यादव से शिकायत की लेकिन तब भी अखिलेश ने आगे बढ़कर चाचा की नाराजगी दूर करने की ज़रूरत नहीं समझी.

शिवपाल दिल्ली से लौटकर विधानसभा पहुंचे और विधायक पद की शपथ लेने के बाद सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सरकारी आवास पर पहुंच गए. दोनों नेताओं के बीच 20 मिनट बातचीत हुई. मुलाक़ात के बाद न शिवपाल ने कहा कि वह बीजेपी में जा रहे है न ही मुख्यमंत्री या बीजेपी ने कहा कि शिवपाल बीजेपी में आ रहे हैं मगर शिवपाल को लेकर फिर से कयासबाजी का दौर शुरू हो गया. इस बारे में अखिलेश यादव से पूछा गया तो उन्होंने ताज्जुब जताते हुए कहा, अच्छा… मुझे तो नहीं पता.

इसके बाद तो रोज़ नई कहानी सामने आने लगी. शिवपाल सिंह यादव को बीजेपी राज्यसभा भेजेगी. जसवन्तनगर सीट शिवपाल छोड़ देंगे. उस पर उनके बेटे आदित्य यादव को बीजेपी चुनाव लड़ाएगी. इसके बाद बताया गया कि बीजेपी शिवपाल को विधानसभा उपाध्यक्ष बनायेगी. इससे एक तीर से दो निशाने सधेंगे. एक तो तकनीकी रूप से उपाध्यक्ष का पद विपक्ष के पास होता है. शिवपाल समाजवादी पार्टी के विधायक हैं, मतलब विपक्ष से हैं. दूसरे विधानसभा उपाध्यक्ष बनकर वह नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव के बिल्कुल बगल में बैठेंगे और विधानसभा में भतीजे को माकूल जवाब देते रहेंगे. पिछली बार भी समाजवादी पार्टी के विधायक नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल को बीजेपी ने विधानसभा उपाध्यक्ष बनाया था. शिवपाल राज्यसभा जाएंगे या फिर विधानसभा उपाध्यक्ष बनेंगे इस मुद्दे पर भी न शिवपाल ने कुछ कहा और न बीजेपी ने. इस बार भी सूत्र नाम का भूत ही सियासी अटकलों का संचालक रहा.

शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय और प्रादेशिक कार्यकारिणी भंग कर दी तो कुछ ही देर में शिवपाल के बीजेपी में जाने की खबरें सुनाई देने लगीं. इस बार भी शिवपाल और बीजेपी दोनों ने कुछ नहीं कहा लेकिन सूत्र चीख-चीखकर सोशल मीडिया पर बताता रहा. बड़े-बड़े पत्रकार व्हाट्सएप ग्रुप पर सूत्र नाम के भूत की बताई खबर फॉरवर्ड करते रहे. इस बार तो सूत्र ने तारीख का भी एलान कर दिया 19 अप्रैल. 15 अप्रैल की शाम को शिवपाल इटावा पहुंचे तो दरवाजे पर पत्रकारों को जमावड़ा लगा था. शिवपाल समझ गए कि सूत्रों ने पत्रकारों को भेजा है. वह सवाल पूछते इससे पहले ही शिवपाल ने पत्रकारों से सवाल दाग दिया कि यहां क्या कर रहे हैं, किसान परेशान हैं, उनकी मदद करने का काम करें.

हालांकि शिवपाल यादव को लेकर चल रही सियासी अटकलों को सुनकर शिवपाल को भी मज़ा आ रहा है. नौ अप्रैल को वह एमएलसी चुनाव में वोट देने सैफई गए तो पत्रकारों ने पूछा किसे वोट दिया. शिवपाल बोले वोट गुप्त होता है, बताया नहीं जाता. शिवपाल के इस बयान के बाद एक बार फिर अटकलें तेज़ी से दौड़ने लगीं. इसी बीच शिवपाल ने ट्वीटर पर पीएम मोदी को फालो कर इन कयासों को फिर से हवा दे दी.

सूत्रों को दरकिनार कर शिवपाल सिंह यादव के बीजेपी में जाने की चर्चाओं पर बात की जाए तो उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या के बयान पर ध्यान दिया जाना चाहिए. केशव मौर्या ने कहा था कि बीजेपी में फिलहाल कोई वैकेंसी नहीं है. यह समझने की बात है कि मौजूदा समय में शिवपाल सिंह यादव को बीजेपी आखिर क्यों लेगी. लोकसभा चुनाव में अभी दो साल का वक्त है. लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी अपने सुनील बंसल जैसे नेताओं को तरजीह देना पसंद करेगी जो जांचा, परखा, खरा वाली पोजीशन में हैं. शिवपाल मुलायम सिंह के बगैर कितनी सीटें जितवा सकते हैं यह प्रयोग तो अभी हुआ ही नहीं है.

दूसरी बात यह कि बीजेपी को अगर शिवपाल सिंह यादव को लेना ही होगा तो इससे पहले वह उनकी परीक्षा ज़रूर लेना चाहेगी. हो सकता है कि अखिलेश दवारा छोडी गई आज़मगढ़ लोकसभा सीट पर बीजेपी को जिताने का भार शिवपाल पर डाला जाए. वह भी ऐसे समय में जब बीएसपी ने गुड्डू जमाली पर दांव चल दिया है. शिवपाल की मेहनत से भले ही गुड्डू जमाली जीत जाएं लेकिन समाजवादी पार्टी हार जाए तो बीजेपी शिवपाल के बारे में कुछ बेहतर सोच सकती है.

बीजेपी को शिवपाल सिंह यादव से कोई मोहब्बत नहीं है लेकिन शिवपाल के इस्तेमाल से समाजवादी पार्टी को अगर बड़ा नुक्सान पहुंचाया जा सकता है तो बीजेपी उनका स्वागत कर सकती है. शिवपाल बीजेपी के लिए कितने काम के हैं यह परखने के लिए बीजेपी को 2024 तक इंतज़ार करना होगा.

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