जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा में नितिन अग्रवाल को लेकर समाजवादी पार्टी के साथ जो खेल खेला था, अब उसी को शिवपाल सिंह यादव के साथ दोहराने जा रही है. नितिन अग्रवाल समाजवादी पार्टी के विधायक थे लेकिन विधानसभा में बीजेपी के साथ चले गए थे. बीजेपी ने उन्हें विधानसभा उपाध्यक्ष बना दिया था. अब नाराज़ शिवपाल सिंह की ताजपोशी भी उपाध्यक्ष पद पर किये जाने को लेकर बीजेपी के अंदरखाने विमर्श चल रहा है ताकि नाराज़ चाचा विधानसभा में भतीजे के बिलकुल बगल में बैठें और भतीजे पर मानसिक दबाव बना रहे.
पांच साल की दूरियों के बाद अखिलेश और शिवपाल विधानसभा चुनाव से कुछ पहले करीब आये थे और शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर जसवंतनगर सीट से चुनाव भी जीता था. चुनाव के बाद भी नौ मार्च तक शिवपाल अखिलेश के साथ ही खड़े थे लेकिन 10 मार्च को मतगणना के बाद जब समाजवादी पार्टी सत्ता से दूर हो गई तो शिवपाल ने अखिलेश की कुछ नीतियों पर सवाल उठाये.
शिवपाल का सवाल उठाना समाजवादी पार्टी को अच्छा नहीं लगा और उन्हें नेता चयन की बैठक में नहीं बुलाया गया. अखिलेश नेता प्रतिपक्ष चुने गए और शिवपाल का विरोध मुखर हो गया. वह उसी दिन इटावा चले गए और वहां भागवत कथा में साफ़ कहा कि अपनी रणनीति वह बाद में बताएंगे.
समाजवादी पार्टी ने जब 29 मार्च को सहयोगी दलों की बैठक की और उसमें शिवपाल सिंह यादव को निमंत्रण भेजा तो वह बैठक में शामिल होने के बजाय मुलायम सिंह यादव से मिलने दिल्ली चले गए. 30 मार्च को लखनऊ लौटकर उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके आवास पर जाकर मुलाक़ात की.
इस मुलाक़ात के बाद कयासबाजी का दौर शुरू हो गया. कहा जाने लगा कि बीजेपी शिवपाल सिंह यादव को राज्यसभा भेज रही है. उनकी छोड़ी जसवंतनगर सीट से शिवपाल के बेटे आदित्य यादव को लड़ाया जायेगा.
तमाम कयासबाजियों के बाद अब यह बात सामने आ रही है कि बीजेपी शिवपाल सिंह यादव को विधानसभा में उपाध्यक्ष बनायेगी. उपाध्यक्ष क्योंकि नेता प्रतिपक्ष के बगल में बैठता है इसलिए अखिलेश यादव पर मानसिक दबाव बढ़ेगा.
शिवपाल को उपाध्यक्ष बनाकर बीजेपी एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश में है. विधानसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष के पास होता है. शिवपाल उपाध्यक्ष बनेंगे तो तकनीकी तौर पर यह पद विपक्ष के पास ही रहेगा क्योंकि वह समाजवादी पार्टी के विधायक हैं. शिवपाल नेता प्रतिपक्ष ने नाराज़ हैं इसलिए सदन में बीजेपी के मददगार बनेंगे और विपक्ष की जान सांसत में किये रहेंगे. ठीक यही रणनीति नितिन अग्रवाल को लेकर बीजेपी पहले भी अपना चुकी है.
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