जुबिली न्यूज डेस्क
शीर्ष अदालत ने पूर्व क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ 1988 के एक रोडरेज मामले में पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।
यह याचिका इस मामले में मारे गए गुरनाम सिंह के परिजनों ये याचिका दायर की है, जिसमें उच्चतम न्यायालस ने साल 2018 में सिद्धू के तीन साल की सजा को 1000 रुपये के जुर्माने में बदल दिया था।
जस्टिस एएम खानविलकर की पीठ के सामने सिद्धू के वकीलों ने कहा कि उनका इरादा हत्या करने का नहीं था। यह झगड़ा गाड़ी पार्क करने को लेकर हुआ था, जिसमें हाथापाई में गुरनाम सिंह के चेाट लग गई और बाद में उनकी मृत्यु हो गई थी।
याचिका में यह भी कहा गया कि घटना के 38 साल बाद अब सजा बढ़ाने पर की मांग करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। अदालत को इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए।
कांग्रेस नेता सिद्धू की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता व कांग्रेस सांसद एएम सिंघवी और आर वसंत पेश हुए। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने बहस की।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने नवजोत सिंह सिद्धू से कहा कि 1988 के रोड रेज मामले में समीक्षा याचिकाओं के समय पर सवाल उठाना उचित नहीं था।
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बताते चलें कि इस मामले में सिद्धू चार साल तक पेश नहीं हुए थे। सितंबर 2018 में पीडि़तों द्वारा दायर की गई समीक्षा याचिका पर पहली बार नोटिस जारी किया गया था।
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न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और संजय किशन कौल की पीठ ने कहा, ”इस मामले का चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। जब आप नोटिस जारी होने के बावजूद हाजिर नहीं होते हैं तो आपकी ओर से टिप्पणी करना उचित नहीं है।”
वहीं सिद्धू ने अदालत से कहा कि इस मामले में उन्हें दी गई सजा की समीक्षा से संबंधित मामले में नोटिस का दायरा बढ़ाने की मांग करने वाली याचिका प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मई 2018 में सिद्धू को 65 वर्षीय बुजुर्ग को ‘स्वेच्छा से चोट पहुंचाने’ के अपराध का दोषी ठहराया था। हालांकि, उसने सिद्धू को जेल की सजा नहीं सुनाई थी और उन पर 1,000 रुपये का जुर्माना लगाया था।
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति एसके कौल की पीठ ने पहले सिद्धू से उस याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा था, जिसमें कहा गया है कि मामले में उनकी सजा केवल स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के छोटे अपराध के लिए नहीं होनी चाहिए थी।