कृष्णमोहन झा
विगत दिनों देश के जिन पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव हेतु मतदान सम्पन्न हुआ था उनमें पंजाब एक ऐसा राज्य था जहां शुरू से ही आम आदमी पार्टी के पक्ष में माहौल दिखाई दे रहा था और मतदान की तिथि नजदीक आते आते तो ऐसा प्रतीत होने लगा था कि पंजाब में बाकी राजनीतिक दल पहले से ही हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं. यही नहीं, मतदान समाप्ति के तत्काल बाद घोषित विभिन्न समाचार चैनलों के एक्जिट पोल के नतीजों में भी पंजाब विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिलने की भविष्यवाणी की गई थी. एक चैनल ने तो पंजाब में आम आदमी पार्टी की सुनामी आने की भविष्यवाणी कर दी थी. मतगणना के शुरुआती रुझानों से ही पंजाब के बारे में सभी समाचार चैनलों के एक्जिट पोल के नतीजे सच साबित होने लगे. पंजाब में आम आदमी पार्टी की आंधी में सभी राजनीतिक दल उड़ गए. मात्र दस साल पहले अस्तित्व में आए एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल ने 138 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी से इस तरह सत्ता छीनी कि केवल कांग्रेस ही नहीं बल्कि दूसरे राजनीतिक दल भी हक्का बक्का रह गए. आम आदमी पार्टी ने पंजाब में सचमुच ही इतिहास रच दिया है.
मुझे आज भी याद है कि जब आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था उस समय प्रकाशित मेरे एक लेख का शीर्षक शायद यही था कि ‘नया इतिहास रचने की कोशिश में जुटे मुट्ठी भर लोग.’ पंजाब विधानसभा के इन चुनाव परिणामों ने मेरे उस आंकलन को भी सच साबित कर दिया है. इसमें कोई संदेह नहीं कि पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनावों में दस साल के बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस पार्टी ने अपनी इस शोचनीय पराजय की पटकथा लगभग 6 माह पूर्व खुद लिखी थी जब पार्टी के बड़बोले नेता और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की मांग पर कैप्टेन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंप दी थी, और नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठा दिया था. खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए आतुर सिद्धू प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में जो बयान बाजी करते रहे. उसकी कीमत इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी को चुकानी पड़ी.
कांग्रेस पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व शायद यह भूल गया कि कैप्टेन अमरिंदर सिंह की राजनीतिक सूझबूझ और लोकप्रियता के बल पर ही 2017 में पार्टी को दस सालों के बाद शानदार बहुमत के साथ सत्ता में लौटने का सौभाग्य मिला था. उस विजय में गांधी परिवार की कोई भूमिका नहीं थी. कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने कैप्टेन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाकर उनको जिस तरह नीचा दिखाया उसका खामियाजा पार्टी को इन विधानसभा चुनावों में शर्मनाक पराजय के रूप में भुगतना पड़ा है. इन चुनाव परिणामों का संदेश यही है कि आम आदमी पार्टी पंजाब में कांग्रेस का विकल्प बन चुकी है. पंजाब विधानसभा चुनाव में आप आदमी पार्टी ने प्रचंड बहुमत हासिल करने के बाद फूली नहीं समा रही आम आदमी पार्टी के अंदर कांग्रेस का राष्ट्रीय विकल्प बनने की महत्वाकांक्षा जाग उठी है और अब वह अपना पूरा ध्यान 2024 के लोकसभा चुनावों पर केंद्रित करेगी.
जिन पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव गत दिनों सम्पन्न हुए उनमें पंजाब के अलावा गोवा में भी उसने अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद लगा रखी थी परन्तु वहां उसकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है लेकिन पंजाब में मिली ऐतिहासिक सफलता के आगे गोवा में मिली निराशा उसके लिए कोई मायने नहीं रखती.
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आम आदमी पार्टी से काफी पहले रिश्ता तोड़ चुके विख्यात कवि कुमार विश्वास ने पंजाब में मतदान से दो दिन पहले यह आरोप लगाकर सनसनी फैलाने का प्रयास किया था कि अतीत में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर में खालिस्तानी आतंकवादियों की बैठक हुई थी. कुमार विश्वास के इस आरोप पर यह आश्चर्य व्यक्त किया गया था कि उन्होंने केजरीवाल पर यह आरोप लगाने के लिए मतदान के दो दिन पहले का समय क्यों चुना और अभी तक वे मौन क्यों साधे रहे.
पंजाब के पराजित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने भी कुमार विश्वास के इस आरोप को चुनावी मुद्दा बनाने की मंशा से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से इस आरोप की जांच कराने का अनुरोध किया था जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया परंतु इन चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिले प्रचंड बहुमत से यही साबित होता है कि पंजाब के मतदाताओं ने कुमार विश्वास के आरोप को कोई तवज्जो नहीं देते हुए उसे नजरंदाज कर दिया.
पंजाब विधानसभा के ताजे चुनावों में शिरोमणि अकाली दल के साथ भाजपा ने गठबंधन किया था जबकि अकाली दल ने बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा परंतु दोनों ही गठबंधनों तथा कांग्रेस पार्टी की उम्मीदों पर आम आदमी पार्टी की सुनामी ने पानी फेर दिया. कांग्रेस पार्टी ने 2017 के चुनावों में राज्य विधानसभा की 117 सीटों में से 77 सीटों पर जीत हासिल कर सत्ता हासिल की थी परन्तु इन चुनावों में आम आदमी पार्टी ने 90 सीटों पर जीत हासिल कर सबको हक्का बक्का कर दिया है.
अमरिंदर सिंह की कांग्रेस सरकार के पहले दस साल तक भाजपा के साथ मिल कर सत्तारूढ रहे अकाली दल ने नए कृषि कानूनों के विरोध में भाजपा से नाता तोड़कर किसानों के बीच अपना खोया हुआ समर्थन फिर से जुटाने का प्रयास किया था परंतु उसे भी निराशा हाथ लगी. भाजपा को तो शायद पहले से ही यह अंदेशा था कि केंद्र सरकार द्वारा नए कृषि कानून वापस लेने के बावजूद इन चुनावों में उसे किसानों का समर्थन शायद ही मिल पाए.
बहरहाल, पंजाब में पहली बार आम आदमी पार्टी की जो सरकार बनने जा रही है उसके मुख्यमंत्री के रूप में भगवंत सिंह मान के नाम की घोषणा पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने चुनावों के पहले ही कर दी थी. पंजाब के नए मुख्यमंत्री मान के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि उन्हे खुद को अरविंद केजरीवाल के समान सक्षम मुख्यमंत्री साबित करना होगा. कदम-कदम पर मुख्यमंत्री के रूप में उनके प्रदर्शन की तुलना अरविंद केजरीवाल से की जाएगी. जाहिर सी बात है कि अरविंद केजरीवाल उनके रोल मॉडल होंगे और उनके मार्गदर्शन में ही उन्हें मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारियों का निर्वहन करना है.
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