Friday - 25 October 2024 - 9:29 PM

क्या कांशीराम का मूवमेंट बसपा से सपा की तरफ ट्रांसफर हो रहा है !

शबाहत हुसैन विजेता

लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी बीजेपी के अलावा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने जिस तरह से रात-दिन एक कर दिया है उस तरह का कोई जोश बहुजन समाज पार्टी ने नहीं दिखाया है. यह पहली बार हो रहा है कि बसपा ने विधानसभा चुनाव में थोड़ा सा उत्साह भी नहीं दिखाया. खुद बसपा सुप्रीमो मायावती ने विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है.

चुनाव को लेकर बसपा के उत्साह की कमी इस बार पार्टी को भारी पड़ती दिखाई दे रही है. बीएसपी के जो बड़े नेता पार्टी छोड़कर बीजेपी या दूसरे दलों में गए थे वह सभी अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहे हैं. दलितों, पिछड़ों और वंचितों को जोड़कर जो मूवमेंट कांशीराम ने शुरू किया था और जिस मूवमेंट के परिणामस्वरूप मायावती उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री बनी थीं वह मूवमेंट अब समाजवादी पार्टी की तरफ मुड़ता दिखाई दे रहा है.

इस विधानसभा चुनाव की सबसे बड़ी खासियत यही है कि जिस समाजवादी पार्टी को यादव और मुसलमानों की पार्टी कहा जाता था अब उसमें स्वामी प्रसाद मौर्या भी जा रहे हैं. इस पार्टी के साथ सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर पहले ही गठबंधन कर चुके हैं. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से ब्राह्मण राजनीति का बड़ा चेहरा माने जाने वाले हरिशंकर तिवारी का परिवार पहले ही हाथ मिला चुका है.

योगी आदित्यनाथ की सरकार को जिस दौर में ब्राह्मण विरोधी कहा जा रहा था उस दौर में समाजवादी पार्टी के साथ बड़े ब्राह्मण चेहरों का जुड़ना और समाजवादी पार्टी की सरकार गिराने की बड़ी वजह बनी घरेलू कलह का खत्म हो जाना भी सत्ताधारी दल के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में सिर्फ बहुजन समाज पार्टी ही एक ऐसी पार्टी है जिसका सबसे सॉलिड वोट बैंक माना जाता रहा है लेकिन जिस तरह से इस पार्टी के शिखर नेताओं का बिखराव हुआ है वह पार्टी के लिए मुश्किल घड़ी माना जा सकता है. बसपा के पास न अब स्वामी प्रसाद मौर्या हैं, न नसीमुद्दीन सिद्दीकी हैं, न बाबू सिंह कुशवाहा हैं, न लालजी वर्मा हैं, न राम अचल राजभर हैं, न आरपी कुशवाहा हैं, न केके गौतम हैं, न कादिर राणा हैं और न ही दारा सिंह चौहान. हरिशंकर तिवारी के बेटों को पार्टी से जाते देखकर मायावती ने पहले ही उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था.

बसपा से कद्दावर नेताओं के बिखराव का असर उसके वोटबैंक पर भी ज़रूर पड़ेगा. लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर बसपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन इस अच्छे प्रदर्शन के बावजूद चुनाव के फ़ौरन बाद मायावती ने अखिलेश यादव के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया था. वह गठबंधन और वैसे ही रिश्ते बने रहे होते तो शायद सपा-बसपा का गठबंधन विधानसभा चुनाव में एक नये रिकार्ड की तरफ बढ़ता दिखाई दे रहा होता लेकिन हकीकत यह है कि इस विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव जिस तरह से छोटे-छोटे दलों के साथ छोटे-छोटे गठबंधन कर रहे हैं और जिस तरह से दलितों, पिछड़ों और वंचितों के नेता समाजवादी पार्टी से जुड़ रहे हैं उससे कांशीराम का मूवमेंट बसपा से सपा की तरफ ट्रांसफर होता दिखाई दे रहा है.

यह भी पढ़ें : यूपी में BJP उसे देगी टिकट जो कमल खिला सके

यह भी पढ़ें : … तो ओमिक्रान का पूरा परिवार कर रहा है कोरोना का विस्तार

यह भी पढ़ें : साइकिल सवार चोरों के पास मिला 77 लाख का सोना

यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : … क्योंकि चाणक्य को पता था शिखा का सम्मान

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com