जुबिली स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली। भले ही सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर तमाम तरह के दावे करे लेकिन एम्स और नीति आयोग की रिपोर्ट से पता चलता है कि देश की स्वास्थ्य व्यवस्था कैसी है। इस रिपोर्ट में जो बाते कही गई वो स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलती नजर आ रही है।
एम्स और नीति आयोग की रिपोर्ट ने बताया है कि सरकार के दावों में कितनी सच्चाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 30 प्रतिशत मौते केवल इलाज की कमी और समय पर इलाज नहीं मिलने से हो जाती है। रिपोर्ट को देखने से यह भी पता चलता है कि देश के सरकारी अस्पताल कितने बीमार हैं और सुविधाओं के अभाव दम तोड़ रहे हैं।
अभी कुछ दिन पहले नीति आयोग और एम्स दिल्ली की एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें देश के 29 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के करीब 100 बड़े अस्पतालों और जिला अस्पतालों में मौजूद इमरजेंसी सुविधाओं को लेकर बताया गया है।
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इस रिपोर्ट ने सरकारी दावों की पोल जरूर खोल दी है। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि अस्पतालों के इमरजेंसी वार्ड में देश में 30 प्रतिशत मौते केवल इलाज की कमी और समय पर इलाज नहीं मिलने से होती है। कई मौकों पर विशेषज्ञ और सीनियर डॉक्टर नहीं होने से भी ऐसा होता है।
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रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि देश के ज्यादातर इमरजेंसी विभाग में रेजिडेंट्स डॉक्टर की ड्यूटी रहती है। इसलिए यहां आने वाले मरीजों को इलाज मिलने में देरी होती है। रिपोर्ट में एक बेहद चौंकाने वाली बात भी सामने आई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इमरजेंसी विभाग में अधिकांश मरीजों का इलाज ऑर्थोपेडिक सर्जन करते है । यहां पर समझने वाली बात यह है कि चोट और सडक़ दुर्घटना में घायल मरीजों के साथ-साथ अन्य बीमारी से ग्रसित लोगों को इमरजेंसी विभाग में भेजा जाता है लेकिन यहां पर उसके डॉक्टर नहीं होते हैं । इस वजह से उनका इलाज नहीं हो पाता है