शबाहत हुसैन विजेता
लखनऊ. उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड का चुनाव होते-होते फिर नहीं हो पाया. सरकार की तरफ से तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी ने चुनाव में वक्फ बोर्ड के सदस्य सैय्यद फैजी को समर्थन की घोषणा कर दी थी. इधर विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शिया वोटों का गणित ठीक करने के लिए सरकार ने चेयरमैन के चुनाव के लिए पांच सदस्यों को नामित कर दिया. चुनाव की अधिसूचना भी जारी हो गई. इलेक्टेड मेंबर तीन और नामित मेंबर पांच के बीच चुनाव तय हो गया. वसीम रिजवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनाव की अधिसूचना को चुनौती दे दी. फिलहाल चुनाव टल गया है.
उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड का मुद्दा पिछले कई साल से मौलाना कल्बे जवाद और वसीम रिजवी की जंग की मुख्य वजह बना हुआ है. मायावती की सरकार में शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बने वसीम रिजवी को अखिलेश यादव की सरकार में हटवाने के लिए मौलाना कल्बे जवाद ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया मगर वसीम रिजवी चुनाव जीतकर फिर चेयरमैन बन गए. योगी आदित्यनाथ की सरकार में भी वसीम रिजवी को हटाने के लिए मौलाना कल्बे जवाद ने काफी संघर्ष किया लेकिन वसीम रिजवी की जड़ें तब तक बीजेपी और आरएसएस तक फैल चुकी थीं.
इसी बीच वसीम रिजवी का कार्यकाल खत्म हो गया तो मौलाना कल्बे जवाद और वसीम रिजवी के बीच प्रेस्टीज इश्यू की जंग फिर तेज़ हो गई. चेयरमैन चुनाव से पहले सदस्यों के चुनाव में वसीम रिजवी और सैय्यद फैजी ने 21-21 वोट हासिल कर बाकी सदस्यों को काफी पीछे छोड़ दिया. वसीम एक बार फिर चेयरमैन बनते नज़र आने लगे तो मौलाना कल्बे जवाद फिर सक्रिय हो गए.
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सर पर हैं. सरकार को शिया वोटों की भी ज़रूरत है. ऐसे हालात में सरकार ने शिया वोटों को अहमियत देते हुए वक्फ एक्ट के नियमों की अवहेलना करते हुए सरकार ने पांच सदस्यों को नामित कर दिया. नियम यह है कि वक्फ बोर्ड का सदस्य उसी वकील को नामित किया जा सकता है जिसका नाम बार काउंसिल से तय हो लेकिन सरकार ने बार काउंसिल से सलाह तक नहीं ली और वकील शबाहत हुसैन और जरयाब रिजवी को नामित कर दिया.
नियम विरुद्ध सदस्य नामित कर मौलाना कल्बे जवाद के ज़रिये शिया वोटों में सेंध लगाने का फैसला सरकार ने यह समझते हुए लिया कि शिकार चाहे वसीम रिजवी बनें या फिर मंत्री मोहसिन रज़ा लेकिन शिया वोट सरकार को मिल जायेगा. शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड का भविष्य क्या होगा यह चुनाव के बाद तय कर लिया जायेगा.
पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी हालांकि यह तय कर चुके थे कि वह चेयरमैन का चुनाव नहीं लड़ेंगे और फैजी का समर्थन करेंगे लेकिन जब उन्होंने यह देखा कि इलेक्टेड मेंबर तो सिर्फ तीन ही हैं जबकि सरकार ने नियम विरुद्ध पांच मेंबर नामित कर दिए हैं और वह भी मौलाना कल्बे जवाद के करीबी. ऐसे में चुनाव का रुख पलटता नज़र आया.
वसीम रिजवी ने इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया और वक्फ एक्ट के खिलाफ नामित सदस्यों की जानकारी कोर्ट को दी. उन्होंने हाईकोर्ट को बताया कि सरकार द्वारा नामित वकील जरयाब रिजवी न तो सीनियर वकील हैं और न ही उत्तर प्रदेश में रजिस्टर्ड हैं. जरयाब रिजवी दिल्ली बार काउंसिल में रजिस्टर्ड वकील हैं. ऐसे में वह उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सदस्य नामित ही नहीं हो सकते.
वसीम रिजवी ने तमिलनाडु वक्फ बोर्ड का हवाला भी दिया. तमिलनाडु में वक्फ बोर्ड के हुए चुनाव में भी इलेक्टेड मेंबर कम थे और नामिनेटेड मेंबर ज्यादा थे. सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ बोर्ड का चुनाव रद्द करते हुए कहा कि इलेक्टेड मेंबर ज्यादा होने चाहिए. उत्तर प्रदेश शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड में वसीम रिजवी और सैय्यद फैजी इलेक्टेड मेंबर हैं. तीसरी इलेक्टेड मेम्बर बेगम नूर बानो (निर्विरोध निर्वाचित हैं)
हाईकोर्ट के सामने जब यह मामला पहुंचा तो हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से अधिसूचना के बारे में जानकारी माँगी. सरकार की तरफ से हाईकोर्ट में कहा गया कि सोमवार को चुनाव नहीं करा रहे हैं. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि सोमवार को सरकार इस सम्बन्ध में काउन्टर दाखिल करे.
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पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी का कहना है कि मौलाना कल्बे जवाद सरकार पर दबाव बनाकर अपने किसी रिश्तेदार को शिया वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बनवाना चाहते हैं ताकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की जो शिकायतें हैं उसकी फ़ाइल गायब कराई जा सके. इसी वजह से उन्होंने अपने रिश्तेदारों को सदस्य नामित करा लिया है.
वसीम रिजवी ने बताया कि मौलाना कल्बे जवाद से उन्होंने वक्फ सज्जादिया और वक्फ गुफरानमआब का हिसाब-किताब माँगा था जो उन्होंने मुहैया नहीं कराया. उनका कहना है कि इन दोनों वक्फ में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है. वसीम रिजवी के दोबारा चेयरमैन बनने से उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है. विधानसभा चुनाव करीब है. चुनाव से पहले सरकार पर दबाव बनाकर उन्होंने मर्जी का चेयरमैन बनवाने की तैयारी की थी जिस पर आज हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है.
शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के चुनाव में सबसे दिलचस्प बात यह है कि अल्लामा ज़मीर नकवी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चुनाव मामले में शुरू से ही मौलाना कल्बे जवाद के साथ थे. अल्लामा ज़मीर नकवी को चेयरमैन बनवाने का लिखित वादा भी किया गया था लेकिन जब सदस्य नामित कराने का वक्त आया तो मौलाना कल्बे जवाद के रिश्तेदारों को सदस्य नामित करवा दिया गया. अब अल्लामा ज़मीर नकवी भी खुलकर मौलाना कल्बे जवाद के खिलाफ खड़े हो गए हैं. अल्लामा ज़मीर नकवी क्योंकि पिछले कई साल से वक्फ बोर्ड मामले की पैरवी कर रहे थे इसलिए उनके पास वक्फ बोर्ड के चुनाव से सम्बंधित तमाम महत्वपूर्ण जानकारियों के अलावा गंभीर भ्रष्टाचार से सम्बन्धित तमाम जानकारियाँ हैं. वह भी इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटा चुके हैं. सोमवार को इस मामले की सुनवाई भी होनी है.
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रामपुर में 86 बीघा दो बिस्वा शत्रु सम्पत्ति को वक्फ सम्पत्ति में परिवर्तित करने के बाद जब सांसद रामपुर मोहम्मद आज़म खां ने वसीम रिजवी के द्वारा मसूद खां उर्फ़ गुड्डू खां को मुतवल्ली बनवाकर जौहर यूनीवर्सिटी के नाम पर हड़प लिया गया. अल्लामा ज़मीर नकवी के दवारा 19 अगस्त 2019 को थाना अज़ीम नगर में मुकदमा अपराध संख्या 312/ 2019 के अंतर्गतधारा 420, 467, 468, 409, 471, 441, 201, 120 बी और तीन आईपीसी के तहत दर्ज करवाया. इसके परिणाम स्वरूप इसी मुकदमे में मोहम्मद आज़म खां, अब्दुल्ला आज़म खां, गुलाम सैय्य्दैन रिजवी को आज तक ज़मानत नहीं मिल पा रही है. इस मुकदमे में विवेचना के दौरान अल्लामा ज़मीर नकवी द्वारा अंकित किये गये बिंदु नम्बर सात की जब विवेचना की गई तो पाया गया कि रामपुर कलेक्ट्रेट के सम्बन्धित मुहाफ़िज़खाने में भी कुछ दस्तावेज़ में ओवर राइटिंग करते हुए पीरपुर हाउस लखनऊ से सम्बन्धित ही कोई व्यक्ति शामिल है. जिसके विरुद्ध मुकदमा अपराध संख्या 126/ 2020 सिविल लाइन कोतवाली रामपुर में डीएम ने पंजीकृत कराया है.
अल्लामा ज़मीर नकवी द्वारा प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को साक्ष्यों सहित प्रार्थना पत्र दिया गया. जिसमें यूपी मंत्रीमंडल के सदस्य मोहसिन रज़ा पर भी गंभीर आरोप लगाए. इन्होंने भी अपनी पाकिस्तान गई रिश्तेदार शाहजहाँ बेगम व सैय्यदा बेगम की शत्रु सम्पत्ति को आलिया बेगम वक्फ में शामिल करके उसे बेच दिया. जिसमे मोहसिन रज़ा के नाना की कब्र भी थी. जिसके परिणाम स्वरूप मोहसिन रज़ा के वक्फ का कार्यभार लेकर कैबिनेट मंत्री को दे दिया गया था. लेकिन शिया वक्फ बोर्ड का सही प्रकार से गठन न हो सके इस मंशा के तहत मोहसिन रज़ा को मुख्यमंत्री द्वारा पत्रावली सौंप दी गई. यही वजह है कि कैबिनेट मंत्री दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहे हैं. क्योंकि मोहसिन रज़ा की एक गलती पिछली बार मंत्रिमंडल के सामने आ चुकी थी, जिसमे मोहसिन रज़ा ने कैबिनेट को बाईपास करते हुए शिया वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉ. नसीर हसन को उनके मूल विभाग में वापस कर दिया गया था. इस वापसी के षड्यंत्र में मौलाना कल्बे जवाद और डॉ. नसीर हसन के दामाद शमील शम्सी खुद शामिल थे लेकिन कैबिनेट मंत्री नन्द कुमार गुप्ता नन्दी के विरोध के बाद मोहसिन रज़ा द्वारा कैबिनेट मंत्री को बाईपास करने वाला आर्डर निरस्त किया गया. इसमें मोहसिन रज़ा की काफी बदनामी हुई. इस बार भी सरकार की यही मंशा है कि वक्फ बोर्ड के गठन में अगर कोई ऊंच-नीच या भ्रष्टाचार पाया जाए तो उसका शिकार स्वयं मोहसिन रज़ा हो जाएं.