पुराने लोग बताते हैं कि फूलवाली गली में नन्दू जी की दूध दही की दुकान थी। उनके छह भाई थे। सभी अपनी सेवाएं दुकान पर देते थे। शाम को ज्यादातर व्यापारी अपनी दुकान बंद कर दूध पीने आते थे। बड़े से कढ़ाव में दूध खौलता रहता था। एक भाई दूध की मलाई को छानकर कढ़ाव के ऊपरी हिस्से में चिपकाता जाता था। लोग आते और कहते कि भाई एक सेर दूध देना। सेर यानी पाव भर।
कुल्हड़ में दूध दिया जाता था ऊपर से मलाई और रबड़ी मारके। फिर नन्दू जी के एक भाई हरि प्रसाद गुप्ता चौक मेन चौराहे पर 90 स्क्वायर फिट की एक छोटी सी दुकान पर आ गये। यहां पर बड़े बड़े नेता दूध पीने आते।
उसके बाद उनके सुपुत्र रमेश चंद्र गुप्ता ने लस्सी को भी जोड़ा। गुप्ता जी की खुद की भैंसे थीं। लालजी टण्डन, अटल बिहारी बाजपेयी कच्चा दूध पीने आते थे।
उन दिनों कच्चा दूध पीने का काफी चलन था। लोगों में कुशती का शौक था। लोग मेहनती थे पैदल चलते थे सो पचा लेते थे। जब चौक का सुन्दरीकरण हुआ तो चौराहे की सभी दुकानें तोड़ दी गयीं।
फिर 1983 में कमला नेहरू मार्ग पर चौक कोतवाली के सामने आ गये। रमेश चंद्रजी के दो बेटे नितिन और रोहित भी अब बड़े हो रहे थे। यह जगह बड़ी और सेंटर में थी।
यहां बैठने का भी इंतजाम किया गया। लोग लस्सी और छोला भठूरे खानेे आते। यहां के छोले भठूरे जो एक बार चख लेता फिर उसे किसी और का छोला भठूरा कम जंचता।
इनके छोले में 36 तरह के मसाले पड़ते। यह सारे मसाले रमेश चंद्र जी स्वयं खरीदकर लाते उसे धोते सुखवाते और समाने ही पिसवाते। चौक की दुकान पर काउंटर पर बैठे नितिन बताते हैं कि इस मुकाम तक पहुचने के लिए हमारे बुजुर्गों के साथ हम सबने बहुत मेहनत की है। बचपन के दिनों को याद कर वह बताते हैं कि दुकान छोटी होने के चलते लोग थोड़ी दूर पर गाड़ी पार्क कर वहीं लस्सी और छोले भठूरे मंगवाते। हम बच्चे दौड़ दौड़कर उनका आर्डर पहुंचाते। कई बार प्लेट गाड़ी की छत पर रह जाती और गाड़ी चल देती तो हम पीछे से मैराथन दौड़ लगाकर बर्तन इकट्ठा करते।
कभी पैसे वापस करने के पहले ही गाड़ी चल देती तो उसके बार बार स्पीड बनाते हुए पैसे लौटकर ही दम लेते। चौक पार्क में अक्सर मेले और सर्कस लगते।
तब तो हमें सांस लेने की भी फुर्सत नहीं मिलती। पैर थककर चूर हो जाते। लेकिन इसका भी अपना ही मजा था। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हम प्रचार में एक भी पैसा नहीं खर्च करते।
हम क्वालिटी पर खास ध्यान देते हैं। हमें चाहे घटा ही क्यों न हो लेकिन स्वाद की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करते। यही कारण है कि लोग अपने मुंह से हमारा प्रचार करते नहीं थकते।
हम लहसुन प्याज का कोई इस्तेमाल नहीं करते। शुद्ध रिफाइंड में सारा सामान तैयार करते हैं। यूं तो काफी बालीवुड के कलाकार हमाारे यहां की लस्सी पीने आते ही रहते हैं।
लेकिन जिन्हें मैं पहचानता हूं उनमें गुलशन कुमार, रजनीकांत, जाह्नवी कपूर आ चुके हैं। पिताजी ने एक ही बात सिखायी कि कभी बासी माल मत परोसना और क्वालिटी व ईमानदारी को अपना भगवान मानना।