जुबिली न्यूज डेस्क
नोबेल पुरस्कार देने वाली स्वीडेन की ऐकेडमी के प्रमुख वैज्ञानिक गोरेन हैनसन ने कहा है कि नोबेल पुरस्कार में जेंडर या नस्ल के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाएगा।
हैनसन ने कहा, “हम चाहते हैं कि लोग ये पुरस्कार सबसे महत्वपूर्ण खोज करने के लिए जीतें न कि जेंडर या नस्ल की वजह से।”
नोबेल पुरस्कार देने का सिलसिला वर्ष 1901 से यानी आज से करीब 120 साल पहले शुरू हुआ था और अब तक सिर्फ 59 महिलाएं ही इसे हासिल कर सकी हैं। इस साल भी नोबेल पुरस्कार विजेताओं में सिर्फ एक ही महिला ही शामिल हैं।
फिलीपींस की पत्रकार मारिया रेस्सा को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के लिए उनके प्रयासों को देखते हुए शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। रेस्सा ने यह पुरस्कार रूसी पत्रकार दिमित्री मुरातोव के साथ साझा किया।
प्रमुख वैज्ञानिक हैनसन ने कहा, “इतनी कम महिला नोबेल विजेताओं को देखकर बहुत दुख होता है। नोबेल पुरस्कार विजेता महिलाओं की संख्या हमारे समाज की अन्यायपूर्ण स्थिति को दर्शाता है, खासकर अतीत की अन्यायपूर्ण स्थिति, लेकिन यह अब भी जारी है और हमें इस दिशा में अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है।”
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उन्होंने कहा, “हमने तय किया है कि हम नोबेल पुरस्कार में जेंडर या नस्ल के आधार पर आरक्षण नहीं देंगे।”
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हैनसन ने यह भी कहा कि ऐसा करने का फैसला अल्फ्रेड नोबेल की आखिरी इच्छा के अनुसार ही लिया गया है।
मालूम हो स्वीडन के कारोबारी और वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी मौत से एक साल पहले वर्ष 1895 में अपनी वसीयत में नोबेल पुरस्कार की रूपरेखा तय की थी।