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लोहिया ने मंत्री पद स्वीकार कर लिया होता तो कौन बताता कि विपक्ष भी कुछ होता है

  • 12 अक्टूबर को डॉ राममनोहर लोहिया की पुण्यतिथि पर

डा. सी पी राय

इस देश के अनोखे नेता डॉ राममनोहर लोहिया को हम याद करते है। वहीं डॉ लोहिया जिसने उस वक्त जर्मनी से अर्थशास्त्र में पीएचडी किया जब हिटलर उभर रहा था और उनके अपने विचारों के कारण उनके प्रोफेसर ने उनका पीएचडी का इन्टरव्यू समय से पहले करवा दिया की हिटलर के सत्ता में आने के पहले वे जर्मनी छोड़ दें।

वही डॉ लोहिया जो जर्मनी गए तो जर्मन नहीं जानते थे और जर्मन जाने बिना वहां छात्र नहीं बन सकते थे तो उन्होंने अपने प्रोफेसर से केवल दो महीने का समय मांगा और जब दो माह बाद वो दुबारा अपने प्रोफेसर से मिले तो जर्मन बोलते हुए मिले।

वही डॉ लोहिया जो देश के करो या मरो नारे के मुख्या चिन्तक थे और गांधी जी को इस हद तक ले जाने के लिए उन्हें पूरे एक हफ्ते तक उनके साथ रह कर तर्क करना पड़ा था।

वही डॉ लोहिया जिन्होंने 1942 में जब सारे नेता जेल चले गए थे तो भूमिगत रह कर देश की आजादी की लड़ाई को धार दिया। वहीं डॉ लोहिया जिनको लाहौर की जेल में आजादी की लड़ाई के लिए भरी यातनाएं दी गयी थी और फिर भी नहीं झुके थे।

वही डॉ लोहिया जिनको गांधी जी ने कलकत्ता बुला लिया था जब देश आजादी का जश्न मना रहा था उस वक्त रक्तपात से डूबे कलकत्ता को शांत करने के लिए ,ये अलग बात है की उनका जिक्र नहीं होता है।

वही डॉ लोहिया जिनको गांधी जी ने पहले देश के सरकार में मंत्री बनकर जिम्मेदारी लेने को कहा पर लोहिया जी की दृष्टि और चिंतन को सुनकर उन्हें 30 जनवरी की शाम को राजनीतिक चर्चा के लिए बुलाया था ,पर उस दिन जब लोहिया वहा पहुंचने वाले थे तो कुछ दूर पहले उन्हें पता लगा की बापू की फासीवादी ताकतों ने हत्या कर दिया ,वर्ना कोई राजनीतिक तस्वीर उभर सकती थी।

देश के वणिक समाज के लोग अपने कार्यक्रम में उनकी फोटो लगाते है और उनको अपने समाज का गौरव बताते है और वे ये भूल जाते है तथा इसका जिक्र भी नहीं करना चाहते कि उसी डॉ लोहिया ने इस देश में जाति तोड़ो अभियान चलाया था और तमाम लोगों ने अपने नाम से जाति का नाम हटा दिया था।

ये लोग ये भी याद नहीं रखना चाहेंगे की उसी डॉ लोहिया ने कई लाखों जनेऊ तुड़वाकर जलवा दिया था। ये तो बिल्कुल याद नहीं रखना चाहिए कि उसी डॉ लोहिया ने संसोपा ने बाँधी गांठ -पिछड़े पाए सौ में साठ- का नारा दिया था। जिसने मण्डल कमीशन की बुनियाद रखा, पर उनके नाम के साथ उनकी जाति चिपकाते हुए बताया जाता है की डॉ लोहिया भी दरअसल बनिया थे और डॉ लोहिया को शायद इससे बड़ी गाली दी भी नहीं जा सकती जो उन्हें अपने कद से बहुत छोटा बना देती है ।

कुछ दूसरे हम जैसे लोग भी उन्हें शायद याद करेंगे जो उनके चित्र से अपने ड्राइंग रूम या ऑफिस सजाते है। हम जैसे लोग उनके इतिहास को याद करने की कोशिश करेंगे। उन्हें याद करने की कोशिश करेंगे केवल एक व्यक्ति के रूप में ,एक नेता के रूप में और थोडा सा स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी शायद याद कर लें , पर उनकी बातों पर ध्यान नहीं देंगे, उनके विचारो को अपनी अलमारियों के सबसे पीछे खाने के लिए छोड़ देंगे।

डॉ लोहिया अगर चाहते तो पूरी जिंदगी सांसद रह सकते थे। वे चाहते तो नेहरु जी की सरकार से लगातार केंद्र का महत्वपूर्ण मंत्री रह सकते थे। वे चाहते तो दिल्ली के एक शानदार बंगले का सुख उठा सकते थे ।

पर फिर इतिहास चक्र कौन लिखता ,कौन सीता और सावित्री और द्रौपदी के बहाने औरतो की स्वतंत्रता की चर्चा छेड़ता । फिर  चित्रकूट में रामायण मेला लगाकर संस्कृति को सहेजता कौन? देश विभाजन के गुनाहगार की चर्चा नहीं कर सकते थे वे । राम ,कृष्ण ,शिव या केवल कृष्ण लिख कर इनके बहाने जीवन संस्कृति ,जिम्मेदारियों ,मर्यादाओ ,और न्याय की चर्चा नहीं कर पाते वे। तब कहा सगुण और निर्गुण की बात हुयी हुयी नए संदर्भो में।

तब नहीं हुयी होती चर्चा संसद में अमीरी और गरीबी की इतनी बड़ी खाई की तीन आना बनाम छह आना की बहस के साथ। तब कौन भारत को चीन के आक्रमण से आगाह करता।

कौन होता जो तिब्बत की लड़ाई लड़ता। तब शायद गोवा की आजादी और लम्बी हो जाती और नेपाल में जागरण का सूरज देर से पहुँचता। कौन दहाड़ कर कहता की हिमालय बचाओ और जिस पानी की आज चर्चा है उसकी बुनियाद किसने रखी होती गंगा बचाओ का अभियान चलाकर और उसके बहाने सभी नदियों को बचाने की आवाज लगा कर।

तब कौन कहता की दुनिया को सात क्रांतियों की जरूरत है वो रंग भेद के खिलाफ हो ,यानि चमड़ी की हो ,वो स्त्री पुरुष के बीच भेद की हो ,वो जाती के आधार पर भेदभाव के खिलाफ हो ,वो धर्म के आधार पर भेदभाव के खिलाफ हो ,गरीबी अमीरी के भेदभाव के खिलाफ हो इत्यादि। तब कौन इबारत लिखता चौखम्भा राज की जिसके आधार पर आज का भारत गांव से देश तक चार सरकारों से संचालित होता है ।

यदि डॉ लोहिया ने सब सुख स्वीकार कर लिया होता तो कौन तोड़ता आजादी के बाद भी हमें मुह चिढाती अंग्रेजों की मूर्तियों को और महीनों इसके लिए जेल काटता राजनारायण जैसे साथियों के साथ और मूर्तियां आज भी हमारे सीने पर मूंग दल रही होती।

तब कौन लड़ाई छेड़ता अंग्रेजी हाय हाय की जिसकी एक परिणिति दिखलाई पड़ी है जब आईएएस के इम्तहान से अंग्रेजी की बाध्यता समाप्त कर दी गयी है। तब कौन लड़ता नौजवानों के लिए विश्वविद्यालयों और कालेजों में जाकर और उन्हें आने वाले समय में लोकतंत्र का मजबूत हथियार बनाता।

कौन कहता की किसान को उसकी उपज का मूल्य दो और गरीब को उसका हक । वे नहीं कह पाते, संसोपा ने बांधी गांठ और पिछड़ मांगे सौ में साठ – और आज का सामाजिक न्याय का परिदृश्य भी शायद दिखलाई नहीं पड़ता या अभी शैशव अवस्था में घुटने पर चल रहा होता।

यदि उन्होंने मंत्री पद स्वीकार कर लिया होता तो कौन बताता इस देश को कि पहाड़ जैसे सत्ता में बैठे लोगों से कैसे टकराया जा सकता है और कौन अहसास करवाता की विपक्ष भी कुछ होता है।

कौन गैर कांग्रेसवाद का सिद्धांत देकर अजेय कांग्रेस की देश में नौ सरकारें गिरा कर रास्ता दिखाता की कांग्रेस की सरकार हटाई भी जा सकती है। कौन लड़ता नेहरु जी जैसे बड़े नेता से और ये कहने का सहस करता की मै जानता हूँ की पहाड़ से टकरा रहा हूँ पर टकराते टकराते मैं दरार तो पैदा कर ही दूंगा जिसे कल कोई गिरा भी देगा ।

हां जो सब छोडऩे को तैयार होते है वही नए समाज की रचना करते है ,वही देशी की आजादी के योद्धा होते है ,वही सामाजिक और आर्थिक क्रांतियां करते है। वही समाज को रास्ता दिखाते है। वही उंच नीच के भेदभाव से लड़ते हैं।

ऐसे लोग ही होते है क्रांतिदूत , समाज परिवर्तक और महामानव । मुझ जैसे लोग लोग जो उन्हें पढ़कर और जानकर राजनीति में आ गए पता नहीं उनके अभियान को कुछ इंच भी सरका पाए या नहीं। पता नहीं समाज को बदलने की बात करते करते खुद ही बदल गए या नहीं ।

पता नहीं लोगं को न्याय दिलाते दिलाते खुद अन्याय का शिकार तो कही नहीं हो गए। लोगों को खुशहाल बनाते-बनाते खुद तो बर्बाद नहीं हो गए। पर आज मुझ जैसे उनके तमाम दीवानों का उस चिन्तक और त्यागी डॉ लोहिया को सलाम। हां, आज भी कुछ लोग उनके सपनो को याद कर कर के जमीन पर उतारने की कोशिश कर रहे है, और कोशिश कर रहे है की डॉ लोहिया सदा जिन्दा रहे और उनके सिद्धांतों की लौ जलती रहे। आइये कुछ उनके विचारों पर हम भी विचार भी कर लें। उन्हें पूरे देश का सलाम।

(स्वतंत्र राजनीतिक समीक्षक एवं वरिष्ठ पत्रकार) 

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