Wednesday - 20 November 2024 - 3:10 AM

एलयू में क्लास रूम की बेंच को तबला बना गाते थे अनूप जलोटा

बॉलीवुड में चमके लखनऊ के फनकार

उन्हें नैनीताल याद आता है जहां उनका जन्म हुआ था 29 जुलाई 1953 को। उन्हें याद आता है नरही का सहाय सिंह बालिका विद्यालय जहां उनकी बेसिक शिक्षा हुई (मेरी भी प्रारंम्भिक शिक्षा इसी स्कूल से हुई है अनूप जी मुझसे दो साल सीनियर थे)।

उन्हें लखनऊ विश्वविद्यालय के साथी दिलीप गुप्ता, गुलशन, राजू, सुशील बहुत याद आते जिनके साथ महफिलें सजतीं, गंजिंग करते और किंग आफ चाट की स्वादिष्ट टिक्की खाते शामें गुजरतीं।

भातखंडे संगीत महाविद्यालय के पीछे चाय की टपरी पर कुल्हड़ की चाय की सोंधी महक आज भी जेहन में तारी है। रह रहकर आंखों के सामने घूम जाता, विश्वविद्यालय का क्लास रूम जहां पीछे की बेंच पर बैठकर, डेस्क का तबला बनाकर अमीर खुसरो, बड़े गुलाम अली खान, रफी साहब, किशोरदा (दोस्त उन्हें प्यार से जूनियर किशोर कुमार बुलाते थे)।

मुकेश के गीतों का दर्द वह बाखूबी आवाज में घोल देते। तलत महमूद की गजलों की फरमाइश कभी खत्म नहीं होतीं। जब ‘बॉबी” फिल्म आयी और शैलेंद्र सिंह के गाये गीत फेमस हुए तो उनके कंठ पर शैलेन्द्र विराज गये।

कम मौका मिलता है लखनऊ आने का। जब कभी आते हैं तो अपने पुराने दोस्तों के साथ एक महफिल जरूर सजती है।

अनूपजी जब सात साल के थे तभी से गायन से जुड़ गये थे। वो अपने शास्त्रीय संगीत के सुप्रसिद्ध भजन गायक पिता पुरुषोत्तम दासजी जलोटा के साथ स्टेज शोज में जाते। उन्हें गायन की प्रारम्भिक शिक्षा पिताजी से मिली।

बताते हैं कि उनके पिताजी उन्हें एक स्वर का रियाज लगातार करने के लिए कमरे में बंद कर देते और कोई दरवाजा खोल न दे बाहर बैठ जाते। तीन घंटे के बाद दरवाजा खोलते। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहरायी जाती।

फिर भातखण्डे संगीत महाविद्यालय से नाता जुड़ा और गायन की विधिवत शिक्षा ली। पिताजी की सख्त हिदायत थी कि जब तक ग्रेजुएशन पूरा नहीं होता, बम्बई बच्चू भूल जाओ। और 1970 से 1973 तक एक एक दिन गिनते हुए जैसे ही ग्रेजुएट हुए जिन्दगी में संगीत के क्षेत्र में कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिये बम्बई (आज का मुम्बई) की गाड़ी पकड़ ली।

जल्द ही आकाशवाणी बम्बई में कोरस गायक के रूप में नौकरी मिली। चालीस लोगों की भीड़ में सबसे पीछे खड़े अनूपजी देखते ही देखते अग्र पंक्ति के गायक बन गये।

खर्चा चलाने के लिए स्टेज प्रोग्राम देते। 1976 की बात है किसी प्रशंसक ने स्टेज प्रोग्राम के दौरान उनका एक भजन रिकार्ड कर लिया। उन्होंने वह भजन रिकार्ड कम्पनी पॉलीडोर के इंडिया प्रभारी को सुनाया तो वह उछल गये।

जब अनूप जी को यह पता चला कि वह उसके कैसेट बनाने जा रहे हैं तो उन्होंने कहा कि मैं इसे दोबारा गा देता हूं। वो बोले नहीं आडियंस रियेक्शन भी जाएगा। अनूपजी ने कहा कि इस रिकार्डिंग में एक कमी है।

भजन में मंजीरा सबसे जरूरी वाद्य यंत्र होता है जो उसमें मिसिंग था। अलग से मंजीरे की ध्वनि डाली गयी। भजन का कैसेट बाजार में आया तो उसने तहलका मचा दिया। उनका एक भजन ‘कैसी लागी लगन” ने उन्हें भजन सम्राट बना दिया।

टिप्स कम्पनी के रमेश तोरानी ने जब अपना पहला कैसेट निकाला तो उसे अनूपजी से ही गवाया। बहुत कम लोग जानते हैं कि जब अमिताभ बच्चन जी अपनी म्यूजिक कम्पनी शुरू की तो उन्होंने भी अनूप जी का गाया पहला कैसेट रिलीज किया था।

डीडी टू का जब शुभारम्भ हुआ तो लता जी के साथ उनको भी अपनी प्रस्तुति देने का अवसर दिया गया। अनूपजी अब तक 5 हजार से ज्यादा लाइव प्रस्तुतियां दे चुके हैं। देश दुनिया में ऐसी कोई जगह बाकी नहीं है जहां उन्होंने प्रस्तुति न दी हो।

भजन व गजल की बारिकियों के साथ-साथ उन्होेंने सभी वाद्य यंत्रों को बजाने में महारत हासिल है। हारमोनियम व सितार उनके प्रिय वाद्ययंत्र हैं। 2015 की बात है मशहूर फिल्मकार मनोज कुमार ने एक बार उनके प्रोग्राम में शिरकत की।

भजन सुनने के बाद वे बोले-‘अच्छा गा लेते हो। मुझसे मिलो।” उन्होंने अपनी फिल्म ‘सत्य साई बाबा में न सिर्फ चार भजन गवाये बल्कि एक आध्यात्मिक गुरु का रोल भी दिया।

एक भजन में उनके साथ मोहम्मद रफी साहब ने भी गाया। बाद में उन्होंने कई फिल्मों में गीत गाये। जब उन्हें पद्मश्री से मिलने की घोषणा हुई तो उन्होंने अपनी मां को फोन पर इसकी सूचना दी,’आपके खुश होने का वक्त है मु़झे पद्मश्री मिलने वाली है।

‘हां बेटा मैं बहुत खुश हूं लेकिन एक बात का ध्यान रखना अब जरा ठीक से गाया करना। उनका शुमार उन बिरले व्यक्तियों में हैं जिनके घर में दो लोगों को एक ही क्षेत्र में पद्मश्री मिली हो। अक्सर लोग अपना बोरिया बिस्तर लेकर आ जाते और कहते हमें आपके घर पर ही रहना है।

मुझे समझा बुझा कर वापस भेजना पड़ता कि मैं आश्रम वाला संत नहीं हूं। मैं हर चीज़ खाता चीज़ खाता पीता हूं। मैं बस एक साधारण गायक भर हूं।

हर आदमी के जीवन में एक कठिन समय भी आता है। वह अनूपजी के जीवन का सबसे मुश्किल दौर था। जिस पत्नी मेधा गुजराल के लिए उनका दिल धड़कता था, डाक्टरों ने उस पत्नी के दिल को बेकार बताकर उसे ट्रांसप्लांट करने की सलाह दी।

यह भी चेता दिया कि वे अब सिर्फ एक महीने की मेहमान हैं। मेधा ने एक दिन प्यार से कहा, ‘आप मुझे स्विट्जरलैंड ले चलिए। मैं बाकी का वक्त आपके साथ बिताकर खुशी-खुशी मर जाना चाहती हूं।

अनूप जलोटा जी ने उनका हाथ अपने हाथ में लेकर शेर गुनगुनाया-‘मैं तसव्वुर भी भला जुदाई का कैसे करूं, मैंने किस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे”। फिर एक मैराथन जद्दोजहद जिन्दगी से जंग की शुरू हुई।

उन्हें इलाज के लिए अनूपजी अमेरिका ले आये और एक 20 साल के जवान का दिल उन्हें सफलतापूर्वक लगा दिया गया। पैसे की कमी न पड़े वे भारत में शोज भी करते। एक साल इलाज चला। अनूपजी महीने में चार बार उनसे मिलने जाते। एक बार उन्होंने डाक्टर से मजाक में कहा,’मैंने तो शादी एक हिन्दुस्तानी लड़की से की थी लेकिन विदेशी दिल लगने के बाद अब ये मुझे डार्लिंग कहती हैं।” 2014 में अचानक मेधा के दिल ने धड़कना बंद कर दिया। वे सबको छोड़कर चली गयीं।

अनूपजी फिर एक बार अकेले रह गये। पूर्व की दो पत्नियां सोनाली सेठ और बीना भाटिया पहले ही उनसे अलग हो चुकी थीं। अनूपजी ने पूरी तरह से अपने को संगीत व भजन में झोंक दिंया।

क्योंकि उनके दोनों बेटे आर्यमन और तुषार बड़े हो गये थे। उनकी अपनी जिन्दगी थी। अक्सर वे मेधा की फोटो के पास खड़े होकर बीते दिनों की याद कर रो पड़ते।

गायन के अलावा अनूपजी को एक्टिंग और फिल्म निर्माण का भी शौक है। उन्होंने दर्जन भर से ज्यादा फिल्मों में भिन्न भिन्न करेक्टर को पर्दे पर जीवंत किया है। पत्तों की बाजी, दादागीरी, मालिक एक, तेरे मेरे फेरे, अमन के फरिश्ते कागज की कश्ती, प्रवास, चिंतामणि सूरदास, सरफरोसे हिन्द, हम बाजा बजा देंगे, सत्य साईं बाबा आदि।

बिग बॉस सीजन 12 में 65 वर्षीय अनूप जलोटा और 28 वर्षीया उनकी शिष्या जसलीन मथारू के साथ उनकी इंट्री और इक्जिट के बाद सोेशल मीडिया में तूफान सा मच गया। अनूप जलोटा और जसलीन के पिता केसर मथारू मीडिया में सफाई देते थक से गये। सोशल मीडिया अनूप को बहुत ज्यादा ट्रोल किया। यह सब अनस्पेक्टेड था।

उन्होंने जो किया भी नहीं था उसकी सजा उन्हें मिल रही थी। वे काफी आहत हो गये। जिन्दगी से मायूस होे वे फिर एक बार मेधा की तस्वीर के आगे खड़े हो गये। मेधा तस्वीर के अंदर थीं। बाहर होतीं तो अपने आंचल में समेट कर कहतीं, ‘डार्लिंग, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। लीव इट डार्लिंग…मैं हूं ना।

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