स्वादिष्ट गर्मागर्म कचौड़ी का कारोबार करने वाले बाल किशन बाजपेयी सत्तर के दशक में रहीमनगर से लखनऊ आये। उन्होंने यहां आटा मिल में नौकरी की। उसी दौरान उन्हें पूड़ी सब्जी की दुकान का आइडिया क्लिक किया। उन्होंने अपने मालिक से कुछ जमीन उधार देने को कहा। 1976 में बाजपेयी कचौड़ी भण्डार का श्री गणेश हुआ…
लखनऊ का शायद ही कोई बाशिंदा होगा जिसने बाजपेयी की कचौड़ी न चखी हो। जब भी लखनवी जायके का जिक्र होगा तो हजरतगंज के पीछे नवल किशोर रोड पर स्थित नौ बाई पंद्रह की छोटी सी दुकान बाजपेयी कचौड़ी भण्डार का जिक्र न आये, ये सम्भव नहीं है।
शहर में शायद ही कोई पूड़ी की दुकान होगी जहां लाइन लगाकर कचौड़ी मिलती हो। गर्मी के दिनों को छोड़ दिया जाए तो सुबह सात से लेकर तीन बजे शाम तक शायद ही कभी लाइन टूटती हो।
यहां पर स्थित सिनेमा हाल, बैंक, हजरतगंज मॉल, स्कूल, कालेज, ब्रांडेड कम्पनियों के शो रूम और सरकारी दफ्तरों की वजह से हर वक्त भीड़-भाड़ बनी रहती है। कोचिंग और कालेज के स्टूडेंट्स का तो फेवरेट आटलेट है। यह भी खास बात है कि दुकान जैसी 44 साल पहले थी आज भी वैसी ही है। एकदम सिम्पल।
माताजी के हाथ के कुटे पिसे मसाले का ही जोर था कि जो एक बार कचौड़ी खाता, दोबारा खाने को पहुंच जाता। जबर्दस्त रिस्पांस देखकर बाजपेयीजी दोगुनी मेेहनत से काम में जुट गये। बाजपेयी कचौड़ी की चर्चा शहर की सीमाएं तोड़कर बाहर पहुंचने लगी। लखनऊ घूमने आने वाले भी कचौड़ी का स्वाद लेने से नहीं चूकते।
बालकिशन बाजपेयी अपनी सफलता का श्रेय सादगी और क्वालिटी को देते हैं। वे आज भी ताजे मसाले, बेहतरीन आटा, छोले और आलू का ही इस्तेमाल करते हैं। कचौड़ी के साथ कटा हुआ प्याज और स्वादिष्ट अचार भी दिया जाता है।
कचौड़ी का जायका सौंफ और सब्जी जायका उसके दर्जनों मसालों के चलते आता है। बाजपेयी जी बताते हैं कि सब्जी का मसाला वे स्वयं तैयार करते हैं। धनिया पाउडर, लाल मिर्च, काली मिर्च, खटाई, हल्दी, गर्म मसाला आदि की सामग्री वे स्वयं लाते हैं और खुद पिसवाते हैं। हां, कुछ मसाले जो छोले और आलू में डाले जाते है वो सीक्रेट हैं।
आज बायपेयी कचौड़ी वाले की तीसरी पीढ़ी काम सम्भाल रही है। बाल किशन बाजपेयी के बेटे घनश्याम बाजपेयी और अब उनके बेटे मनीष बाजपेयी कारोबार सम्भालते हैं। अब बोर्ड में बाजपेयी एंड सन्स भी जुड़ गया है।
तीसरी पीढ़ी के आला तालीमयाफता मर्चेंट नेवी को सलाम कर लौटे मनीष बाजपेयी बताते हैं कि अनेक फूड से रिलेटेड टीवी शो में हमारी दुकान के बारे में आता ही रहता है।
मीडिया ने भी हमारे बारे में अनेक बार छापा है। हमें खुशी तब ज्यादा मिलती है जब शहर के बाहर का कोई अन्या भाषा भाषी पूछता हुआ हमारी दुकान पर आता है।
उसके चेहरे पर आयी खुशी ही हमारा अवार्ड है। अनेक बॉलीवुड कलाकार जैसे अनुपम खेर, परिणिति चोपड़ा, विनोद दुआ, गुलशन कुमार आदि कलाकार तारीफ करके गये।
हमारा इरादा शहर में एक एक आउटलेट गोमती नगर, स्प्रू मार्ग, कृष्णा नगर में खोलने का है जो आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस होगा। जिसमें वातानुकूलित माहौल में लोग बैठकर हमारी कचौड़ियों का स्वाद चख सकें। अभी हम शहर भर के घर-घर में स्विगी, जुमैटो और ऊबर ईट के द्वारा पहुंचा रहे हैं।
घनश्याम बताते हैं कि हम कभी नफा नुकसान का हिसाब नहीं लगाते हैं। आज से छह साल पहले 25 रुपये में दो कचौड़ी मिलती थी आज भी उसी दाम में उपलब्ध करायी जा रही हैं। क्वालिटी के साथ हमने कभी समझौता नहीं किया।
जो स्वाद 45 साल पहले था वह आज भी वैसा ही है। वो इसलिए हो पाता है कि कुछ चीजों के दाम कम हो जाते हैं तो कुछ के बढ़ जाते हैं। बाकी सब बांके बिहारी पूरा कर देते हैं। हमारे वहां कचौड़ी सब्जी के अलावा छोले भठूरे और राजमा चावल जैसी स्वादिष्ट चीजें भी बनायी जाती हैं।
समय के साथ दुकान डेकोरेट न कराने के पीछे क्या स्टेटिजी है? इस सवाल पर उनका कहना था कि भव्यता होगी तो समाज का निचला तबका आने से हिचकिचाएगा।
हम हर वर्ग की सेवा को अपना धर्म मानते हैं। और फिर हम सिम्पल लोग हैं, दुकान भी वैसा ही होगी।आज उनकी देखा देखी उसी गली में व शहर में कई दुकानें खुलीं लेकिन बाजपेयी की कचौड़ी का स्वाद का कोई मुकाबला नहीं कर सका।