उनका नाम राम नारायण तिवारी था। सुल्तानपुर के सुकुलबाजार से रोजी रोटी की तलाश में लखनऊ आये थे 1929 में। सरवाइवल के लिए शुरुआती दौर में सिर पर टोकरी लेकर गली गली चाट की फेरी लगानी शुरू की। तब पच्चीस पैसे में भर पेट चाट मिलती थी। आलू कचालू, पापड़ी चाट, सुहाल मटर, खस्ता मटर जो एक बार खा लेता उनका मुरीद हो जाता। चाट का स्वाद इतना अच्छा हुआ करता था कि लोग उन्हें दूर से देखते ही रोक लेते थे।ज्यादातर दुकानदार उनके परमानेंट ग्राहक बन चुके थे। इसके पीछे कड़ी मेहनत थी उनकी धर्मपत्नी की। सुबह चार बजे उठकर वो सारा सामान तैयार कर देती थीं। मसाले राम नारायण जी खुद कूटते पीसते थे।परिवार भी तेजी से बढ़ रहा था। कड़ी मेहनत के बाद कुछ पैसे बचे तो फिर सिर पर चढ़ी चाट को चार पहिया ठेले पर उतारा गया। फिर तो वैरायटी का भी इजाफा हुआ। दही बड़ा, आलू टिक्की, मटर टिक्की, पापड़ी चाट, पानी के बताशे को भी जगह मिली।
जिसकी जल्दी ही काफी डिमांड बढ़ गयी। शाम होते होते सारा माल बिक जाता। ये ठेला दोपहर दो बजे पुराने आरटीओ आफिस के सामने लग जाता था। नगर निगम अक्सर उनका ठेला उठाकर ले जाता।
कुछ दिन दुकान बंद रहती। फिर नये सिरे से काम शुरू होता। आये दिन मसाला पिसवाने की झंझट भी रहती तो उन्होंने अपनी मसाला पीसने की चक्की ही लगवा ली। काम बढ़ा तो गांव से लोगों को लाकर उनको प्रापर ट्रेनिंग देकर काम पर लगा दिया जाता।
बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी जी चाट के बेहद शौकीन थे। उन्हें यहां के दही बड़े बेहद पसंद थे। जब वे पत्रकार थे तो हर हफ्ते तिवारी की चाट खाने पहुंच जाते। जब ज्यादा व्यस्त हो गये तो मंगवा लेते।
चूंकि उनका लखनऊ से पुराना नाता रहा था सो गाहे बगाहे वह चाट की तलब यहीं से पूरी होती। इसके अलावा अमर सिंह, संजय दत्त, जया प्रदा, अखिलेश दास जैसे सेलिब्रिटी स्वयं यहां खड़े होकर चाट का आनन्द ले चुके हैं। अब लखनऊ में टीवी और फिल्म की आये दिन शूटिंग होती है और अक्सर इनके कलाकार टोली बनाकर आते हैं और भर पेट खाकर जाते हैं। ठेला उठाईगीरी से निजात पाने के लिए 1990 में उसी स्थान पर एक छोटी सी दुकान खोली। नगर निगम वाले अब मौका पाते ही दुकान तोड़ जाते। ये दादागीरी और तोड़ फोड़ का खेल चलता रहता।
रामनारायण जी के देहान्त के बाद उनके सात बेटों में से दो बेटों वेद प्रकाश तिवारी और चंद्र प्रकाश तिवारी ने काम सम्भाल लिया। दुकान छोटी होेने के नाते यहां बस एक ही दिक्कत थी कि बैठने की जगह की कमी के चलते चाट प्रेमियों को खड़े खड़े ही चाट का आनन्द लेना पड़ता है।
पिताजी का लगाया पेड़ अब वट वृक्ष बन चुका था। फिर एक बड़ा नुकसान हो गया। बड़े बेटे वेद प्रकाश तिवारी का देहान्त हो गया। बंटवारे का दंश भी झेला परिवार ने। वेद प्रकाश जी के बाद उनकी पत्नी श्रीमती विभा तिवारी जी अपने दोनों बेटे अनुराग तिवारी व प्रखर तिवारी के साथ वर्षों से चली आ इस परम्परा को आगे बढ़ा रही रहे थे कि फिर एक अनहोनी हो गयी। वेद तिवारी जी के बड़े बेटे अनुराग तिवारी की इसी पिछले साल हार्ट अटैक से असामयिक निधन हो गया।
विभा जी बताती हैंं कि अभी हम दही बड़े, आलू टिक्की, पाव भाजी, आलू कुलचा, खस्ता चाट, सुहाल, समोसा व आयुर्वेदिक पानी के बताशे व दही चटनी के बताशे भी बनाते हैं। सारा माल शुद्ध देशी घी में बनता है। हाल ही हमने पापड़ी चाट और बास्केट चाट अपने मेन्यू में शामिल किया है। हमारी बास्केट चाट को खाकर लोगों ने रॉयल कैफे की बास्केट चाट से कम नहीं बताया है।
इस सवाल पर कि लखनऊ में अब कई मशहूर चाट हाउस है लेकिन आप आज भी अपनी जगह बदस्तूर बनाए हुए हैं, इसके पीछे क्या राज है? इस पर उनका कहना था कि हम बाजार में बिकने वाले आलू से काफी महंगा आलू लाते हैं। लाल आलू व चिप्स सोना भी लाते हैं। हमारे मसाले आज भी हम अपने सामने चेक कर खुद खरीदते हैं। साफ करते हैं आैर सामने ही पिसवाते हैं।
दही चटनी भी हमारा खुद का होता है। हमारे रेगुलर विजिटर चाट शौकीनों की कसौटी पर खरे उतरने के लिए हमें कड़ी मेेहनत करनी पड़ती है। शुद्धता का भी विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
स्थितियां चाहे जैसी रही हों एक सिलसिला जो हमारे ससुरजी ने शुरू किया और मेरे पतिदेव ने इसे आगे बढ़ाया अब हमारे कंधों पर आ गया है। तिवारी चाट का खानदानी हुनर आगे भी रस प्रेमियों को बदस्तूर मिलता रहेगा।