आज किस्सागोई का मूड है। तो शुरू करते हैं एक अनाम लखनवी नवाब साहब की कहानी। एक नाजुक दिल नवाब साहब थे। उनकी चार बेगमें थीं। पर सबसे छोटी बेगम उन्हें बहुत ही प्यारी थीं। एक पल भी उन्हें अपनी नजरों से दूर नहीं होने देते। वे उनका पूरा ख्याल रखते। उन्हें छींक भी आ जाती तो वे रात भर सो नहीं पाते। हकीम से लेकर नजूमी तक काम पर लगा दिये जाते। बेगम के सेहतयाफता होने पर बोरों अनाज व सिक्का-ए-राएजुल वक्त का सदका उतारकर गरीबों में तकसीम किया जाता। गरीब बेगम साहिबा की तबियत नासाज रहने की दुआ करते। रईस लोग उनकी मोहब्बत के कसीदे पढ़ते।
नवाब साहब को एक ही गम था कि प्यारी बेगम साहिबा से उनकी कोई औलाद नहीं थी। विलायत तक से डाक्टर आकर जांच पड़ताल कर चुके थे। पर कोई फायदा होता दिख नहीं रहा था।
किसी ने बताया कि चिश्ती की दरगाह पर अकबर नंगे पांव गया था तो उनकी मुराद पूरी हुई थी। नवाब साहब भी कब पीछे रहने वाले थे। वो भी नंगे पांव चल पड़े।
इस आने जाने में एक महीना लग गया। वो लौट के आये तो बेगम साहिबा ने गोद हरी होने की खुशखबरी दी। बेगम साहिबा की देखरेख का जिम्मा दो दर्जन कनीजों और तजुर्बेकार दाइयों को सौंप दिया गया।
नवाब साहब का एक-एक दिन काटना मुहाल हो रहा था। जरा सी चूक पर कई कनीजों की छुट्टी तक कर दी गयी। आठ महीने जैसे-तैसे बीते। बेगम साहिबा के मुंह से जरा-सी आह निकलती नवाब साहब का कलेजा मुंह को आ जाता।
उन्हें मालूम था कि डिलीवरी में काफी तकलीफदेह होगी। उन्होंने मुनादी करा दी जो उनकी बेगम को पेनलेस डिलीवरी करायेगा उसे इनाम-ओ- इकराम से नवाजा जाएगा।
लोग यह भी जानते थे कि अगर जरा सा भी दर्द हुआ तो सिर गर्दन से अलग समझो। डिलीवरी का टाइम पूरा होने वाले थे कि शहर से दूर एक कस्बे में एक दाई ने नवाब साहब का चैलेंज एक्सेप्ट किया और उसने अपनी कुछ शर्ते रखीं।
उसने कहा कि बेगम साहिबा को मेरे घर आना होगा वह भी अकेले, और वो भी मेरी सवारी पर। नवाब साहब मजबूर थे। मान गया। समय आने पर दाई ने अपने खाविंद को एक खड़खड़ा देकर भेजा।
घोड़ी भी लंगड़ा कर चलती थी। बेगम साहिबा को खड़खड़े में रखा गया। ऊंचे-नीचे ऊबड़ खाबड़ रास्ते से खड़खड़ा हिलता-झूलता जैसे ही घर पहुंचा, बेगम साहिबा की गोद हरी हो चुकी थी। दाई की जै-जैकार होने लगी।
नवाब साहब ने वायदे के मुताबिक उसे मालामाल कर दिया। बुजुर्ग लोग बताते हैं कि बाद में सरकार ने जगह-जगह बने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के निर्माण में दाई के घर की मिट्टी का इस्तेमाल किया और उसकी सिफत से आज भी महिलाएं स्वास्थ्य केन्द्रों की चौखट पर बच्चा जनती हैं। खड़खड़े की जगह किसने ली यह तो आप समझ ही गये होंगे। और हां, इतिहासकार इस कहानी की सच्चाई के प्रमाण जुटाने की कोशिश न करें। शुक्रिया।