जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी ने सिर्फ जिंदगी ही नहीं छीनी है बल्कि लोगों को भीख मांगने तक के लिए मजबूर कर दिया है। कोरोना संक्रमण रोकने के लिए हुई तालाबंदी की वजह से करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। रोजी छिनने की वजह से लोग भीख मांगने को मजबूर हो गए हैं।
ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि एक स्टडी में ऐसा दावा किया गया है। यह दावा दिल्ली सरकार के लिए इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट (आईएचडी) की एक स्टडी में किया गया है।
स्टडी के अनुसार, जहां 55 फीसदी लोगों के पास सिर छुपाने के लिए छत नहीं है तो वहीं 20 फीसदी लोग खाली समय में भीख मांगते हैं।
जहां 11 प्रतिशत लोग वंशागति भिखारी हैं और 11 फीसदी अस्थाई तौर पर बेरोजगार हैं। हालांकि, इनमें 80 फीसदी लोग ऐसे भी हैं, जो अपनी जीविका चलाने के लिए दूसरा विकल्प मिलने की स्थिति में भीख मांगना बंद करना चाहते हैं।
स्टडी में यह भी बताया गया है कि दिल्ली के 11 जिलों में 20,719 लोग भीख मांगने से जुड़े काम में लिप्त हैं। इनमें 55 वयस्क शादीशुदा हैं। 21 प्रतिशत सिंगल (शादी नहीं हुई) हैं। 24 फीसदी विधवा या फिर अलग हो चुके हैं। 70 फीसदी पढ़े-लिखे हैं। 22 फीसदी प्राइमरी स्तर की शिक्षा हासिल करने वाले, जबकि आठ प्रतिशत सेकेंड्री या उससे अधिक की शिक्षा पाने वाले हैं।
वहीं राजधानी दिल्ली के पूर्वी जिले में सबसे अधिक भिखारी पाए गए। वहां उनकी संख्या 2797 है, जबकि सबसे कम उत्तरी जिला में हैं। वहां यह संख्या 627 है।
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स्टडी में यह भी कहा गया है कि भीख मांगने से जुड़े काम में 46 फीसदी महिलाएं हैं, जिनकी संख्या 9,541 है। वहीं, 53 फीसदी पुरुष हैं। उनकी संख्या 10,987 है, जबकि एक फीसदी ट्रांसजेंडर्स हैं।
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इनके मामले में यह आंकड़ा 191 है। करीब 67 प्रतिशत ऐसे लोगों में प्रवासी हैं, जो कि मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं।
इसी साल फरवरी से अप्रैल के बीच की गई आईएचडी की यह स्टडी सामाजिक न्याय मंत्रालय के उस पायलट प्रोजेक्ट का हिस्सा थी, जिसके तहत 10 शहरों में भिखारियों के लिए पुर्नवास योजना बनाना मकसद है। आईएचडी ने हाल ही में अपनी अंतिम ड्राफ्ट रिपोर्ट सामाजिक न्याय विभाग को सौंप दी है, जिसका फिलहाल निरीक्षण किया जा रहा है।