- चस्का ये चाय का मोहब्बत से भी लजीज है
- इश्क भी फीका पड़ जाए, चाय ऐसी चीज है
प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव
दुनिया भर में सिर्फ दो ही चायवाले मशहूर हुए हैं एक तो आप सब जानते ही हैं और दूसरे को रोज लालबाग के नुक्कड़ पर देखते सुनते और महसूस करते हैं। जी हां शर्माजी की चाय का नशा हर उस शख्स को अपना मुरीद बना लेता है जो भी इसे होंठों से लगाता है।
लोगों का दावा यूं ही नहीं है कि शर्माजी की जैसी चाय दुनिया में कहीं नहीं मिलती। कितने ही लोग जो बाहर से नेतानगरी में अपना काम लेकर शहर में दाखिल होते हैं तो यहां सुबह की पहली चाय और समोसा खाना नहीं भूलते।
जब से लखनऊ मेडिकल, आईएएस और पीसीएस की कोचिंग का हब बना है तो दूसरे शहर से आये छात्र भी गर्मागर्म स्वादिष्ट चाय से यहीं अपनी आंख खोलना पसंद करते हैं।
सुबह सात बजे ही काले बालों के झुंड में सफेद बाल भी पहली पहली चाय अपने हाथ में लेकर चुस्की लेने की होड़ लग जाते हैं। कमोवेश यही सीन पूरे दिन बना रहता है।
कुछ युवा सामने पार्क में गोल बनाकर ठंडी हवा के साथ गर्मागर्म चाय पर बहस करते दिख जाते हैं। ओपेन एयर टी हाउस का सा नजारा देखने को मिलता है।…
आइये इस हरदिल अजीज चाय की शुरूआत के बारे में भी जानते चलें। अलीगढ़ के हरदुआगंज से ओम प्रकाश शर्मा जी ने रोजी रोटी कमाने लखनऊ आये। उन्होंने सिर पर रखकर मसाला मटर बेचना शुरू किया। लेकिन उसमें इतनी कमाई नहीं हो पाती थी कि घर चल सके।
फिर सोचा गया कि कुछ ऐसा काम किया जाए जिसका इस्तेमाल सब लोग करते हों। बस इसी बात ने उन्हें चाय बेचने का रास्ता दिखाया। 1955 में इसी जगह चाय की एक छोटी सी शुरूआत हुई।
नतीजे उत्साहजनक निकले। पास में पुलीटिकल पार्टियों के दफ्तर व दारूलशिफा होने के चलते पार्टी वर्कर्स व नेताओं से मिलने आने वालों को बेहतरीन चाय की तलब पूरी करने के लिए धीरे धीरे यही एक मात्र टी स्टाल बन गया।
अब चाय खाली तो पी नहीं जा सकती सो बन मक्खन के साथ समोसे भी तले जाने लगे। ओम प्रकाशजी मूलत: आर्टिस्ट नेचर के मालिक थे। चाय की तरह अपने समोसों के लिए भी जाने जाएं इसलिए उन्होंने छिलके वाले आलुओं की जगह बिना छिलकों के मैशर से मसलकर, उसमें सीक्रेट मसाले डाले और तिकोने की जगह गोल शेप में ढालकर जब किंग साइज में पेश किया तो देखते ही देखते चाय की तरह समोसे भी चर्चा में आ गये।
नगर निगम का लम्बा चौड़ा स्टाफ यहीं से चाय नाश्ताकर फाइल निपटाने जाता। नाम बढ़ा तो काम भी बढ़ गया। अब उनके सुपुत्र दीप शर्मा क्लास चार में पढ़ रहे थे वह भी अपने पिताजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बिजनेस में हेल्प करने लगे। दो से चार हाथ हुए तो चाय, बंद मक्खन और समोसा के साथ सुहाल, मठरी, लड्डू, पेड़ा भी मेन्यू में अपनी आमद दर्ज कराने लगे।…
दीपजी के सुपुत्र मानव भी ग्रेजुएशन पूरा कर अपने पिताजी का हाथ बंटा रहे हैं। मानव बताते हैं कि चाय का जो टेस्ट मेरे दादाजी ने डेवलेप किया था वही आज तक बरकार है। चाय में सबसे खास होता है दूध।
चाहे जितना महंगा दूध हो जाए हम एवन क्वालिटी का फुल क्रीम दूध ही इस्तेमाल करते हैं। बन भी हम खुद तैयार करते हैं और मक्खन हम सफेद वाला अपना बनाया इस्तेमाल करते हैं। जहां तक समोसे के शेप का सवाल है तो यह हमारे दादा जी की देन है।
वह चाहते थे कि हमारी हर चीज सबसे अलग दिखे। शायद यही उनकी मार्केटिंग स्ट्रेटजी हो। समोसे में पड़ने वाला आलू भी खास किस्म का होता है और इसे मसालों के साथ देर तक मसल मसल कर भूना जाता है।
दादाजी जो वर्कर्स गांव से लेकर आये थे वे आज भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। पिताजी ने यही सिखाया है कि कभी मेहनत से न भागो। जो विरासत में मिला है अगर उसी को सम्भाल लोगे तो भी जिन्दगी पार हो जाएगी।
देखा जाए तो शायद कोई नेता व मंत्री ऐसा हो जिसने हमारी चाय न पी हो। लिस्ट को बहुत लम्बी है लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी जी, मुलायाम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव जी तक और कार्तिक आर्यन, प्रकाश झा, संतोष शुक्ला, अनूप जलोटा, आरपी सिंह, सुरेश रैना, हाल ही में अन्यया पांडे भी आयी थीं चाय पीने। हमें अफसोस है कि तीन महीने करोना की वजह से हम लोेगों की सेवा नहीं कर पाये। अब सारे प्रोटोकाल के साथ अपनी सेवाएं दे रहे हैं।…
किसी शायर ने चाय की तारीफ में क्या खूब फरमाया है कि —
इश्क और शर्माजी की चाय
दोनों देते हैं भरपूर खुशी,
हर बार वही नयापन
हर बार वही ताजगी…
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)