विपक्ष में रहते हुए तीन तीन सरकारों को एक मुद्दे पर घेर कर संसद का पूरा सत्र न चलने देने वाली भाजपा इस बार खुद ही इस जाल में फंसी नजर आ रही है।
भारत की संसद का मानसून सत्र अभी तक पेगासस जासूसी कांड की भेंट चढ़ चुका है और संसद में कमजोर दिखाई देने वाला विपक्ष बीते 7 सालों में पहली बार सदन में ताकतवर नजर आ रहा है।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व वाले 7 सालों में ये पहली बार हुआ है जब लोकसभा में प्रचंड बहुमत के बावजूद सरकार सदन में कोई काम नहीं कर पा रही।
किसी एक मुद्दे पर संसद न चला पाने का काला धब्बा अब तक पीवी नरसिंहा राव, गुजराल और मनमोहन सिंह के ऊपर लगा था लेकिन इस बार ये खतरा नरेंद्र मोदी के सर पर आ गया है।
दरअसल मोदी सरकार इस मामले पर जिस तरह का स्टैन्ड ले रही है वही उसके लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है । सरकार इस बात का जवाब नहीं दे रही है कि क्या उसने किसी भी वजह से पेगासस खरीदा था ? इस सवाल के उलट उसने सवाल पूछने को ही अन्तराष्ट्रीय साजिश करार देने का अभियान ही चला दिया।
सवालों के जवाब न देने से शक और भी पुख्ता होता है। ये पुरानी कहावत इस बार भी सही सिद्ध हो रही है। मामला अब सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका की शक्ल में पहुँच चुका है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी हमेशा की तरह इस बार भी आक्रामक है। संसद के बाहर मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा- पेगासस एक हथियार है. इजरायली सरकार इसे हथियार मानती है. ये हथियार आतंकवादियों और अपराधियों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है. प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने इस हथियार को हिंदुस्तान की संस्थाओं और लोकतंत्र के खिलाफ प्रयोग किया है. राहुल ने इसे राफेल से भी जोड़ दिया , उन्होंने कहा – सुप्रीम कोर्ट और राफेल की जांच को रोकने के लिए पेगासस का प्रयोग किया गया. गृहमंत्री को इस्तीफा देना चाहिए और नरेंद्र मोदी पर न्यायिक जांच होनी चाहिए क्योंकि इसका ऑथराइजेशन पीएम और गृहमंत्री ही कर सकते हैं.
इस मामले पर अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम ने मोदी सरकार की दिक्कतें और भी बढ़ा दी है। पेगासस बनने वाली कंपनी ने अपनी सफाई देनी शुरू कर दी है और कहा है कि उसने अपने कुछ खरीदारों की सेवाओं पर अस्थायी रोक लगा दी है।
दूसरी तरफ फ्रांस, हंगरी और मोरक्को ने अपने देश में इसकी जांच शुरू करा दी है। इन देशों का नाम भी पेगासस कांड में सामने आया था। लेकिन भारत की सरकार ने अब तक इस मामले को संज्ञान में लेना ही उचित नहीं समझा। हालांकि इस रवैये ने दुनिया भर में लोकतान्त्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों के संबंध में भारत की साख को कमजोर किया है।
लेकिन ये बात भी सही है कि निजता उलँघन और मानवाधिकारों से जुड़े मामले भारत में आम जनमानस को उस तरह के नहीं जोड़ते हैं जितना पश्चिमी देशों में। भाजपा शायद इसी वजह से अपने रवैये पर अटल दिखाई दे रही है।
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आम जनमानस में भले ही ये बड़े आंदोलन की शक्ल न पाए मगर हर मुद्दे पर अपने सटीक भाषणों से विपक्ष को जवाब देने वाले नरेंद्र मोदी को इस बार सटीक शब्द खोजने में परेशानी हो रही है।
एक तरफ तो पेगासस की तपिश और दूसरी तरफ विपक्ष को एकजुट करने की शरद पवार और ममता बनर्जी की ताज़ा कोशिशों ने मोदी सरकार को फिलहाल एक कठिन हालात ने डाल ही दिया है। अब देखने की बात ये है कि हमेशा कि तरह विपक्ष का कुनबा फिर बिखरता है या फिर पेगासस उसके एक होने की बड़ी वजह बन जाता है।